होली की कविता | happy holi | holi ki shayari

होली की कविता | happy holi | holi ki shayari

सतरंगी रंग से सजी हैं होली।
        सतरंगी रंग से सजी रंगोली।

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सात रंग से इन्द्रधनुष सजा है।

       सतरंगी ओढ़नी किरणों ने पहनी।

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सात रंग, फूलों की दुनिया।

       सात रंग, खग विहग तितलियाँ ।

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सतरंगी जीवों की दुनियाँ।

         सतरंगी निर्जीवों की दुनियाँ।

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सात रंगों से धरती सजी है।

          नदियां पहाड़ मैदान बनी हैं।

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सात रंग से दुनियाँ सजी हैं।

          सात रंग से दुनियाँ बनी हैं।

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सात रंग मन के भावों के।

         सात रंग सुख दुख धागों के।

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यही रंग जीवन में रंग भरते।

        पल पल जीवन रंग बदलते।

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सतरंगी  रंग से डोली सजी हैं।

        सतरंगी रिश्ते नातेदारी  बनी  हैं।

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सतरंगी भाषा और बोली,

       सतरंगी लोगो की जीवन शैली।

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एक रंग की नही हैं दुनियाँ।

       एक रंग नहीं किसी की दुनियाँ।

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एक रंग में जीवन रहेगा तो,

       जीवन का रागरंग कैसे बहेगा?

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इसलिए होती सतरंगी होली।
        इसीलिए सजती सतरंगी होली।
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होली की कविता | happy holi | holi ki shayari

                       *होली के रंग*

होली के हुड़दंग में, 
     उड़े कबीर गुलाल।
ढोल बजे महफ़िल सजे, 
     ठोंके फगुआ ताल।।


रंगों के संग सब रंगे, 
     बच्चे बूढ़े जवान।
भेद उमर का मिटि चला, 
     सबही छेड़े तान।।


बहू बहुरिया सास संग, 
     खेलि रहीं हैं होली।
रिश्तों का  भेद मिटाकर, 
‌‌     बनीं आज हमजोली।।


पूड़ी और पकवान की, 
     हो चौतरफा भरमार।
सब के मन में हो खुशी, 
     इस होली के त्यौहार।।


गले मिलें गहे हाथ, 
     छुएं पांव को धाय।
होली के रंगों में, 
     हर शिकवे मिट जांय।।


रंग रंग के रंग में, 
     खुशियां छुपी अपार।
रिश्तों के रख रंग, 
     मनाएं होली का त्यौहार।।

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होली की कविता | happy holi | holi ki shayari

बैगन जी की होली-


टेढ़े-मेढ़े बैगन जी

होली पर ससुराल चले।


बीच सड़क पर लुढ़क-लुढ़क

कैसी ढुलमुल चाल चले

पत्नी भिण्डी मैके में

बनी-ठनी तैयार मिलीं।


हाथ पकड़ कर वह उनका

ड्राइंगरूम में साथ चलीं

मारे खुशी, ससुर कद्दू

देख बल्लियों उछल पड़े

लौकी सास रंग भीगी।


बैगन जी भी फिसल पड़े

इतने में उनकी साली

मिर्ची जी भी टपक पड़ीं

रंग भरी पिचकारी ले

जीजाजी पर झपट पड़ीं

बैगन जी गीले-गीले

हुए बैगनी से पीले।।

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होली की कविता | happy holi | holi ki shayari

रंग में रंग मिल गए
मन से मन मिल गए,

होली में सब रंग खिल गए।

सब के मन खिल गए
दिल से दिल मिल गए,
होली में सब घुल मिल गए।

पिचकारियों में रंग भर गए
रंग गुलाल उड़ गए,
होली में सब घुल मिल गए


तन-मन सब रंग बिरंगे हो गए
बच्चे बूढ़े सब मस्त हो गए,
होली में सब घुल मिल गए।


गरीब अमीर सब एक हो गए
जाति धर्म सब भूल गए,
होली में सब घुल मिल गए।

एक दुसरे के संग यु झूम गए
वर्षो पुरानी दुश्मनी भूल गए,
होली में सब घुल मिल गए

बिछड़े हुए सब यार मिल गये,
सब रिश्तेदार मिल गए,
होली में सब घुल मिल गए।

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होली की कविता | happy holi | holi ki shayari
शुभकामना होली की


रंग रंगीली आई होली 


नन्ही गुड़िया माँ से बोली

माँ मुझको पिचकारी ले दो

इक छोटी सी लारी ले दो

रंग-बिरंगे रंग भी ले दो

उन रंगों में पानी भर दो।।


मैं भी सबको रग डालूँगी

रंगों के संग मज़े करूँगी

मैं तो लारी में बैठूँगी

अन्दर से गुलाल फेंकूँगी।।


माँ ने गुड़िया को समझाया

और प्यार से यह बतलाया

तुम दूसरो पे रंग फेंकोगी

और अपने ही लिए डरोगी।।


रँग नहीं मिलते है अच्छे

हुए बीमार जो इससे बच्चे

तो क्या तुमको अच्छा लगेगा

जो तुम सँग कोई न खेलेगा।।


जाओ तुम बगिया मे जाओ

रंग- बिरंगे फूल ले आओ

बनाएँगे हम फूलों के रन्ग

फिर खेलना तुम सबके संग।।


रंगों पे खरचोगी पैसे

जोड़े तुमने जैसे तैसे

उसका कोई उपयोग न होगा

उलटे यह नुकसान ही होगा।।


चलो अनाथालय में जाएँ

भूखे बच्चों को खिलाएँ

आओ उन संग खेले होली

वो भी तेरे है हमजोली।।


जो उन संग खुशियाँ बाँटोगी

कितना बड़ा उपकार करोगी

भूखा पेट भरोगी उनका

दुनिया में नहीं कोई जिनका।।


वो भी प्यारे-प्यारे बच्चे

नन्हे से है दिल के सच्चे

अब गुड़िया को समझ में आई

उसने भी तरकीब लगाई।।


बुलाएगी सारी सखी सहेली

नहीं जाएगी वो अकेली

उसने सब सखियों को बुलाया

और उन्हें भी यह समझाया।।


सबने मिलके रंग बनाया

बच्चों सँग त्योहार मनाया

भूखों को खाना भी खिलाया

उनका पैसा काम में आया

सबने मिलकर खेली होली

और सारे बन गए हमजोली।।


Holi ki shubhkamnaye


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होली की कविता | happy holi | holi ki shayari

सांझ से ही आ बैठी


मन मे भर उल्लास,मुट्ठियां भर भर रंग लिये

सांझ से ही आ बैठी, होली मादक गंध लिये


एक हथेली मे चुटकी भर ठंडा सा अहसास

दूजे हाथ लिये किरची भर नरम धूप सौगात

उजियारे के रंग पूनमी मटियाली बू-बास

भीगे मौसम की अंगड़ाई लेकर आई पास


अल्हड़-पन का भाव सुकोमल पूरे अंग लिये

सांझ से ही आ बैठी होली मादक गंध लिये


लहरों से लेकर हिचकोले,पवन से अठखेली

चौखट-चौखट बजा मंजीरे, फिरती अलबेली

कहीं से लाई रंग केसरी, कहीं से कस्तूरी

लाजलजीली हुई कहीं पर खुल कर भी खेली


नयन भरे कजरौट अधर भर भर मकरंद लिये

सांझ से ही आ बैठी ,होली मादक गंध लिये।।


होली शुभकामनायें


खुशियों का स्वागत करेहर आँगन हर द्वार।
कुछ ऐसा हो इस बरसहोली का त्यौहार।।

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