बसन्त पँचमी की कविता | माँ सरस्वती | basant panchami kavita hindi poems

   

  वसंतोत्सव एवं माँ शारदे प्रकटोत्सव 

की बात ही निराली है, जब सम्पूर्ण संसार मे माँ आदि शक्ति भगवती के ज्ञान के मूल स्रोत का जन्म हुआ,जिसके बिना मानवीय जीवन आनन्द हीन,अव्यवस्थित हो जाता है । आज के दिन देवी सरस्वती जी को जीवन मे भक्ति के माध्यम से आत्मसाद करना होगा। 
बसन्त पँचमी की कविता | माँ सरस्वती |  basant panchami kavita hindi poems

       जिससे भगवती हमे,हमारी ज्ञान की,वाणी की,जीवन मे बौद्धिक व मानसिक तेज की ,नित नई प्रेरणा की, दैनिक रूप से नित नवीन होने की,विभिन्न कुशल कलाओं की क्षमता प्रदान करे।

      इस हेतु आपके लिए यह कविताओं का संग्रह , मां सरस्वती जी को भाव की शक्ति की भावना से अभिव्यक्ति देने हेतु निम्न पँक्तियों के साथ भगवती महासरस्वती जी को समर्पित कर रही हूँ। 


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आइये पढ़कर अपने आनन्द की शक्ति को बढाएं

    खुशी-खुशी निम्न काव्य को पढ़ देवी सरस्वती जी के  आनन्द ,में मग्न हो गायें।

आइये प्रथम काव्य पाठ से देवी माँ के समीप जाने हेतु भक्ति की लहर में डूबें--

बसन्त पँचमी की कविता | माँ सरस्वती |  basant panchami kavita hindi poems

जय माँ शारदे

कुछ ऐसा सुखद उजास हुआ ।
अम्बर धरती के पास हुआ।।

उर में आनंदित लहर उठी, 
बह रही सुरभि भी कल्याणी।
क्या उतर रही है शिखरों से ,
अब श्वेत कमल वीणा पाणी।
सुरभित ,कुसमित है भूमंडल ,
नख-शिख तक यह आभास हुआ ।।

कुछ ऐसा सुखद उजास हुआ ।
अम्बर धरती के पास हुआ।।

छँट जायेगी हर आँगन से ,
तम की छाया काली-काली ।
पुलकित होगी नव-सुमनों से ,
वन -उपवन की डाली-डाली ।
माँ की अनुकम्पा से जग में ,
अवतरित अटल विश्वास हुआ।।

कुछ ऐसा सुखद उजास हुआ ।
अम्बर धरती के पास हुआ।।

शारद-वीणा झंकारों से,
सब ज्ञानदीप जल जायेंगे ।
रजनी के माथे पर क्षण में ,
सिंदूरी रज मल आयेंगे
इन विमल धवल परिधानों से,
सच कहती हूँ मधुमास  हुआ।।

कुछ ऐसा सुखद उजास हुआ ।
अम्बर धरती के पास हुआ।।

हर एक दिशा भय के बादल ,
अब डोल रहे काले-काले ।
संस्रति में अजगर घूम रहे ,
उर में विनाश का विष पाले ।
मिट जायेगी माँ गहन निशा ,
तम असुरो को संत्रास हुआ ।।

कुछ ऐसा सुखद उजास हुआ ।
अम्बर धरती के पास हुआ।।

बसन्त पँचमी की कविता | माँ सरस्वती |  basant panchami kavita hindi poems
बरसा दो मेघ-सुधा माँ तुम ,
मानस-घट हैं रीते-रीते ।
अन्तर-मन सबके झूम उठें ,
विचलित हैं दुख पीते-पीते ।।
किंचित करुणा से ही *माधुरी* 
जन-जीवन में उल्हास हुआ ।।

कुछ ऐसा सुखद उजास हुआ ।
अम्बर धरती के पास हुआ ।।



(वसन्तोत्सव माँ सरस्वती को समर्पित कविता क्रमांक 2)


शुभदा सुखदा ज्ञानदा,हे वाणी! वरदान।
ज्ञान गिरा वाक्येश्वरी, ग्रंथो  की सोपान।। 

भाषा ब्राह्मी भारती,वेदों का शुचि सार।
वाचा मेधा बुद्धिदा,नमो:नमः शत बार। 

श्वेता संध्या सात्विका,सरला सुखद अपार।
शुभ्रा आद्या सारिका, सकल सृजन साकार। 

पद्माक्षी सुरपूजिता,परा पद्मजा रूप।
त्रिगुणा चित चित्राम्बरा,चित्रा चित्र अनूप।।

(देवी सरस्वती जी समर्पित कविता क्रमांक 3)

बसन्त पँचमी की कविता | माँ सरस्वती |  basant panchami kavita hindi poems

"सरस्वती वंदना"

हे मां वीणा वादिनी ऐसा तू वरदान दे, 
ज्ञान से झोली तू भर दे,ज्ञान का आकाश दे।

ज्ञान की गंगा बहे, ज्ञान का भंडार दे
ज्ञान की चाशनी में, मां तू हमको पाक दे।

ज्ञान की सरगम सजें, ज्ञान का संगीत हो
ज्ञान के नूपुर बजें, ज्ञान के ही साज़ हो।

ज्ञान से सजें लेखनी, ज्ञान की स्याही तू दे।
ज्ञान के पन्नों पर माँ तू, ज्ञान अमृत बांट दें।

ज्ञान का आंगन सजें, ज्ञान की ही धूप दे,
ज्ञान की पवन बहे, ज्ञान की बरसात दे।

ज्ञान से हृदय भरा हो, ज्ञान ही बस में सुनूं,
ज्ञान ही मैं मुख से बोलूं, ऐसा दीपक वाल (जला)दें।

ज्ञान से हर भाव समझूं, ज्ञान से ही भाव लिखूं,
सार्थक साहित्य की करूं मैं सेवा, ऐसा तू आशीष दे।

हस्त (हाथ) जोड़े मै खड़ी मांँ, सुन लो मेरी प्रार्थना
ज्ञान के सागर से मोती, मेरे आंचल में तू डाल दे।

ज्ञान का करार दे मां, ज्ञान का श्रृंगार दे,
ज्ञान की थपकी तू दे माँ, आके हमको थाम लें।

हर सखा के दिल की समझूं,ऐसा तू आशीष दे,
हर बात सरलता से मै लिख दूं,ऐसा तू वरदान दे।

परिवार संग शरण मैं तेरी, अब तो हाथ थाम ले,
अज्ञान का तिमिर हटाकर, ज्ञान का आलोक दे।

ज्ञान की निष्ठा दे माँ, ज्ञान के चक्षु तू दें, ज्ञान शंशाक माथे सजा हो,बसन्त ऋतु में मां तू,हम सभी पाठक को भी तार दे।

(माँ महा सरस्वती जी को समर्पित कविता क्रमांक 4)

"शारदे वर देना"

बुद्धि नहीं कोई हर पाए,
बस यही शारदे वर देना।
अज्ञान मिटाओ तिमिरों के,
माँ सरस्वती दुख हर लेना।

लेकर वीणा रंजित कर में
तुम मंद मंद मुस्काती हो
भाषा का देती ज्ञान हमें
सुर छंद तुम्हीं सिखलाती हो
ज्यों मधुर कहीं संगीत बजे
अनुराग भरा जीवन देना।

बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।

मधुरस बोली में भर देना
स्वर लहरी कंठ सुनाते हों
वेदों का अविरल पाठ करें
सभी मंत्र सुरों में गाते हों
सब ब्रह्मज्ञान उपनिषदों पर
अधिकार हमें सुंदर देना।

बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।

यह कलम सृजन हेतु चलकर
छंदों में अपनी बात कहे
भावों की बहाओ वैतरणी
गीतों में मृदु रसधार बहे
नित नए प्रखर दे बिंब मुझे
सदृश तुक अनुपम लय देना।

बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।

वागीशा, विराजो वाणी में
आना तुम हंसों पर चढ़कर
मधुमास में तेरा पूजन कर
हो पीत वसन पुलकित मधुकर
कुछ पुष्प चढाऊँ मैं कुमति
स्वीकार जरा तुम कर लेना।

बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।


अंतिम कविता

हे माँ ! 

तुमसे सौम्य सुंदरी माता , नेह भरा है नाता ।
ज्ञानदायिनी बुद्धिदायिनी ,तुम सौभाग्य प्रदाता।।

हे माँ!
मस्तक मेरा, कर हों तेरे    ,तुम ही शुभफल दाता ।
ज्ञान मान वैभव पाये जो ,शरण आपकी आता ।।

ओ मेरी प्यारी मैया!
गीतों छंद ग़ज़ल को गाती , में तुम्हे रिझाती।
पीत पुष्प का हार बनाकर ,कंठ तुम्हें पहनाती।।
हंस वाहिनी वीणा धारी,मेरी भाग्य निर्मात्री ।
स्तुति तेरी गाकर मैया,ये माधुरी तुम्हें सजाती ।।

[मिटे अंधकार जीवन में हो प्रकाश,
         माँ देना ऐंसा साथ ,अब चिंता हुई मेरी समाप्त ।।]

जय माँ शारदे, जय माँ महासरस्वती।

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