वसंतोत्सव एवं माँ शारदे प्रकटोत्सव
जिससे भगवती हमे,हमारी ज्ञान की,वाणी की,जीवन मे बौद्धिक व मानसिक तेज की ,नित नई प्रेरणा की, दैनिक रूप से नित नवीन होने की,विभिन्न कुशल कलाओं की क्षमता प्रदान करे।
इस हेतु आपके लिए यह कविताओं का संग्रह , मां सरस्वती जी को भाव की शक्ति की भावना से अभिव्यक्ति देने हेतु निम्न पँक्तियों के साथ भगवती महासरस्वती जी को समर्पित कर रही हूँ।
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आइये पढ़कर अपने आनन्द की शक्ति को बढाएं
खुशी-खुशी निम्न काव्य को पढ़ देवी सरस्वती जी के आनन्द ,में मग्न हो गायें।
आइये प्रथम काव्य पाठ से देवी माँ के समीप जाने हेतु भक्ति की लहर में डूबें--
जय माँ शारदे
अम्बर धरती के पास हुआ।।
बह रही सुरभि भी कल्याणी।
क्या उतर रही है शिखरों से ,
अब श्वेत कमल वीणा पाणी।
सुरभित ,कुसमित है भूमंडल ,
नख-शिख तक यह आभास हुआ ।।
अम्बर धरती के पास हुआ।।
तम की छाया काली-काली ।
पुलकित होगी नव-सुमनों से ,
वन -उपवन की डाली-डाली ।
माँ की अनुकम्पा से जग में ,
अवतरित अटल विश्वास हुआ।।
अम्बर धरती के पास हुआ।।
सब ज्ञानदीप जल जायेंगे ।
रजनी के माथे पर क्षण में ,
सिंदूरी रज मल आयेंगे
इन विमल धवल परिधानों से,
सच कहती हूँ मधुमास हुआ।।
अम्बर धरती के पास हुआ।।
अब डोल रहे काले-काले ।
संस्रति में अजगर घूम रहे ,
उर में विनाश का विष पाले ।
मिट जायेगी माँ गहन निशा ,
तम असुरो को संत्रास हुआ ।।
अम्बर धरती के पास हुआ।।
मानस-घट हैं रीते-रीते ।
अन्तर-मन सबके झूम उठें ,
विचलित हैं दुख पीते-पीते ।।
किंचित करुणा से ही *माधुरी*
जन-जीवन में उल्हास हुआ ।।
अम्बर धरती के पास हुआ ।।
(वसन्तोत्सव माँ सरस्वती को समर्पित कविता क्रमांक 2)
ज्ञान गिरा वाक्येश्वरी, ग्रंथो की सोपान।।
वाचा मेधा बुद्धिदा,नमो:नमः शत बार।
शुभ्रा आद्या सारिका, सकल सृजन साकार।
त्रिगुणा चित चित्राम्बरा,चित्रा चित्र अनूप।।
(देवी सरस्वती जी समर्पित कविता क्रमांक 3)
"सरस्वती वंदना"
(माँ महा सरस्वती जी को समर्पित कविता क्रमांक 4)
"शारदे वर देना"
बस यही शारदे वर देना।
अज्ञान मिटाओ तिमिरों के,
माँ सरस्वती दुख हर लेना।
तुम मंद मंद मुस्काती हो
भाषा का देती ज्ञान हमें
सुर छंद तुम्हीं सिखलाती हो
ज्यों मधुर कहीं संगीत बजे
अनुराग भरा जीवन देना।
बस यही शारदे वर देना।
स्वर लहरी कंठ सुनाते हों
वेदों का अविरल पाठ करें
सभी मंत्र सुरों में गाते हों
सब ब्रह्मज्ञान उपनिषदों पर
अधिकार हमें सुंदर देना।
बस यही शारदे वर देना।
छंदों में अपनी बात कहे
भावों की बहाओ वैतरणी
गीतों में मृदु रसधार बहे
नित नए प्रखर दे बिंब मुझे
सदृश तुक अनुपम लय देना।
बस यही शारदे वर देना।
आना तुम हंसों पर चढ़कर
मधुमास में तेरा पूजन कर
हो पीत वसन पुलकित मधुकर
कुछ पुष्प चढाऊँ मैं कुमति
स्वीकार जरा तुम कर लेना।
बस यही शारदे वर देना।
अंतिम कविता
ज्ञानदायिनी बुद्धिदायिनी ,तुम सौभाग्य प्रदाता।।
मस्तक मेरा, कर हों तेरे ,तुम ही शुभफल दाता ।
ज्ञान मान वैभव पाये जो ,शरण आपकी आता ।।
गीतों छंद ग़ज़ल को गाती , में तुम्हे रिझाती।
पीत पुष्प का हार बनाकर ,कंठ तुम्हें पहनाती।।
हंस वाहिनी वीणा धारी,मेरी भाग्य निर्मात्री ।
स्तुति तेरी गाकर मैया,ये माधुरी तुम्हें सजाती ।।
माँ देना ऐंसा साथ ,अब चिंता हुई मेरी समाप्त ।।]
जय माँ शारदे, जय माँ महासरस्वती।
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