माँ की ममता | माँ के लिए कुछ शब्द |Heart Touching माँ के लिए शायरी इन हिंदी| mother's love| poem mothers smile|mother's day |
{" माँ "}
मेरी सारी तकलीफों को नज़र
लगा दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस
ला दे " माँ "
सन्नाटों में शोर बहुत है, ख़ामोशी चिल्लाती है
सारे रास्ते मुझसे डरते, मंजिल ऑंख दिखाती है
आकर ममतामयी आँचल में तू मुझे छुपादे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस ला दे " माँ "
भागदौड़ और शोर शराबे से
बचकर जब आता हूँ
घर आते ही खोजूँ "
माँ ", पर तुझको कहीं न पता हूँ,
टूटा, बिखरा, हारा हूँ मैं, आकर मुझे सुला दे "
माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस
ला दे " माँ "
प्यार, मोहब्बत, रिश्ते-नाते अब सब झूठे लगते हैं
बाहर से मजबूत मगर अंदर
से टूटे लगते हैं
आकर सच्चे रिश्तों का
मतलब इन्हें बता दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस
ला दे " माँ "
अरसा बीता आँख मिचौली
खेले, तेरे संग में " माँ "
भूल गया मैं बचपन अपना ढल
के सब के रंग में " माँ "
जीवन के वो प्यारे दिन
मुझको फिर से लौटा दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस
ला दे " माँ "...
- पवन दीक्षित नि: शब्द, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश
कविता क्रमांक 2
माँ की मुस्कान शायरी
हजारों गम हो, फिर भी ख़ुशी से फूल
जाता हूँ ।
याद रखना दुनिया में सबकुछ मिल जाता
है,
जब
हंसती है माँ मेरी, तो हर गम भूल जाता हूँ।।
मगर माँ-बाप नहीं मिलते।
मुरझाकर एक बार जो गिर गए
डाली से,
ये ऐसे फूल हैं जो फिर
नहीं खिलते।
कविता क्रमांक 3
माँ का स्नेह भरा आंचल
जो अपने में मेरा सारा
दुख दर्द समेट लिया करता
था
माँ की आँखों से बहते
आँसू
जो एहसास दिला दिया करते
थे
कि मैं अपने दुख में
अकेली नहीं हूँ
माँ की मुस्कुराहटें
जो मेरी हर खुशी शामिल हो कर
खुशी को दुगना कर दिया करती थी
सिर पर रखा, माँ का स्नेह भरा हाथ
जो हजारों लाखों दुआयों के बराबर हुआ करता था
माँ के जाने के बाद
यह एहसास यह नजारा
दुबारा कभी देखने को न मिला मुझे
अब जब अश्रुपूरित आँखो से
आसमां के तारों के बीच माँ को ढूंढा करती हूँ
तब लगता है कि आकाश से उतर कर
दुआयों का एक दायरा
मेरे चारों तरफ़ लिपट जाता है।
स्वरचित लेखक ईन्दु पॉल
कविता क्रमांक 4
माँ बताती थी,
कि किस तरह
लिपट जाता था मैं उनसे
धूल मिट्टी से सना
मैदान में खेल कूद कर
घर आने के बाद....।
बांध लेती थी वह भी
बिना हिचकिचाहट के
बड़ी आतुरता से मुझे
अपने *आलिंगन* में....।
देती थी
अपने आँचल का स्नेह
स्पर्श,
पौंछती थी
मेरा पसीने से लथ-पथ बदन,
बदलती थी
मेरे मिट्टी से सने
वस्त्र
और
खिलाती थी गोद में बिठा
कर
अपने हाथों से
रूखे सूखे मगर लज़ीज़ कौर
।
बताती थी माँ,
कि अक्सर ही मैं
खाते-खाते ही सो जाता था
उनकी गोद में..
और वह भी
मुझे छाती से चिपटाये
हुए
आहिस्ता से लेट जाती थी
जमीन पर बिछी चटाई पर..।
ताकि,
खुल न जाये मेरी नींद
इक हल्की सी आहट से..।
सच में,
उस *आलिंगन* के
मीठे और सोंधे एहसास
भुलाए नही भूलते..।
पालथी में लिटा कर,
सीने से चिपटा कर
उनका थपथपाना/गुनगुनाना
सारी थकान मिटा देता
था...।
दूसरे दिन के लिए
मुझमें फिर से
नया उत्साह जगा देता था।
दौड़ने के काबिल बना देता
था।
सच में!!
उस मर्मस्पर्शी *आलिंगन*
से छिटक कर
जब से फँसा हूँ मैं
*माया के आलिंगन* में..
माँ बहुत याद आती है..।
और अब तो
मखमली बिछोनों पर भी
करवट बदलते रात कट जाती
है ।
सच में !!
माँ के *आलिंगन* की
पूर्ति
कोई भी *आलिंगन* नही कर
पाता है..।
उसके झुर्रियों भरे
हाथों का
खुरदुरा मगर प्यार से
लबरेज़ स्पर्श
आज भी याद आता है....। मन में जीने का उत्साह जगाता है..।
लेखक : - चरनजीत सिंह
कुकरेजा,भोपाल
जरूर पढ़िए ':- इस अत्यंत ही कीमती विषय को जरूर पढ़िये,आइए शिक्षा का आधार बदलें,आइए मन बदलें।
कविता क्रमांक 5
मूगंफली का हलवा
माँ के लिए बनाई थी.......
राखी के बहाने
माँ से मिल आई थी !!
सुना है,
अडोसी-पडोसियों से स्मृति शेष अवस्था में
कपडे वह धोती हैं
आत्मनिर्भर बन
बहुत कुछ छुपा लेतीं हैं??
नाज नखरे करतीं नहीं,
कुछ भी खा लेती हैं,
विनम्रतापूर्वक संधर्ष माँ कैसे कर लेतीं हैं!!
"सोचती हूँ मैं भी"
'अपना बूढ़ापा कैसे काटूगी.....
बदल रहे परिवेश में,
अपनी फरमाईश कैसे मारुंगी'
रूंधे-रुंधे आंखों से
अधिकार कैसे भुलूगी.....
अपने ही घर में,
क्या पूरानी अलमारी बन
जाऊगी??
माँ हूँ मैं भी......
क्या बेटियों के हाथ का हलवा,
मैं भी खाऊगी??
उतराधिकारी बेटो की माँ मैं कहलाऊगी??
भावनाओं के सागर में,
हाय-विधाता
विधि का विधान,
कैसा रचा है!!
लेखिका :- अभिलाषा नंदनी
नोट :- अगर आपको यह काव्य
" माँ
" को समर्पित पसंद आया है तो इसे शेयर करना ना
भूलें और मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे Whatsup group में join हो और मेंरे Facebook page को like जरूर
करें।आप हमसे Free Email Subscribe के
द्वारा भी जुड़ सकते हैं। अब आप instagram में भी follow कर सकते हैं
।
काव्य पढ़ने के बाद अपने विचारों से
मुझे जरूर अवगत करायें। नीचे कमेंट जरूर कीजिये, आपका विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण है।
0 टिप्पणियाँ