दिल को छूने वाली प्रेम की कहानी | love story

              दिल को छू गई

धड़कने आज़ाद हैं,
     पहरे लगाकर तो देख लो..
प्यार छुपता ही नहीं ,
     तुम छुपाकर तो देख लो.. !!

दिल को छूने वाली प्रेम की कहानी | love story

इन्ही भावों के साथ आज यह कहानी को पढ़िए जिसमें दिल को छूने वाली प्रेम की कहानी | love story प्रेम का बहुमूल्य समय,आपके सामने प्रस्तूत होने जा है। आइये पढ़ें :-

    अंतिम वर्ष का,अंतिम समय, जब राकेश, अपने ऑफिस में बैठा, सुबह से ही फाइलों में उलझा हुआ था, कि तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई और राकेश का फाइलों से थोड़ा ध्यान हटा,तभी चपरासी ने आकर बताया कि बाहर कोई मेरा इंतजार कर रहा है। कहीं ना कहीं राकेश जानता था,कि कौन होगा,किन्तु उसको, बहुत संशय था, इसलिए, फिर भी यह जानने को बहुत ज्यादा उत्सुक था, कि कौन होगा???

    अब राकेश कुर्सी से उठा,और तेज कदमों से चलता हुआ,office के रिसेप्शन तक पहुंचा ही था,कि वहां राकेश ने देखा कि रश्मि बैठी हुई थी, यह देखकर हौले से मुस्कुराई अरे वाह रश्मि!

   नीले रंग की साड़ी में गजब की खूबसूरत लग रही हो,मानो सफेद दूधिया आसमान में नीलाभ लिए तारे। ऐंसा कह राकेश ने, एक हल्की सी मुस्कान दी और थोड़ा सा दूर से ही 'हाय' कहा। 

   ओहो दिल तो चाह रहा था कि हाथ मिलाकर 'हेलो' किया जाए, लेकिन जो अभी तक नहीं हुआ, वह होने से कहीं व्यवस्था खराब ना हो जाए, यह सोच कर खुद को रोक लिया मैंने। 

   मैंने धीरे से रिसेप्शनिस्ट से कुछ कहा और उसे 5 मिनट इंतजार करने के लिए बोलकर, अपने ऑफिस में जाकर अपना सामान ले आया।

अगले 2 मिनट के बाद हम दोनों मेरे ऑफिस से बाहर खड़े थे।

वो मेरी तरफ़ पलटी और बोली -

"तो! राकेश कैसा लगा मेरा सरप्राइज...?"

मेने कहा :- 

सुनो ना, रश्मि
जब मर्णिकर्णिका के घाट पर,
 मेरे शरीर का अन्तिम पल होगा,
तब तुम प्रेम का आवरण,
चढ़ा कर गंगा बनकर, 

बहती रहना,
 और हे रश्मि , मुझे छु जाना,
अन्तिम क्षणों में तब मैं,
पा जाऊंगा मोक्ष 

और

जन्मों जन्मो तक जलते 
दिये की तरह,
 रोशनी करूंगा । तेरे ही
 दिल के मन्दिर में।


वाह जी वाह उत्तम

  "कमाल हो यार तुम राकेश !! एक साल पहले किया हुआ वादा तुम्हें याद रहा रश्मि...."


रश्मि ने कहा "हां! याद रहा.... जानते हो न तुम, मुझे वादा तोड़ना नहीं आता।"


राकेश ने कहा - "हां! जानता हूं, वह तो मेरा काम है न...."

 ऐंसा मैंने उसका मूड ठीक करने की कोशिश करते हुए कहा।


रश्मि ने कहा - 

"कहां लेकर चलोगे.....?" उसने पूछा???


   राकेश ने कहा "जो आपका हुकुम हो मेरे आका। अब पर्सनल गाड़ीवाले तो हम हैं नहीं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाले हैं। जहां आप बोलोगी ले चलूंगा। बताओ कहां चलोगी....?" 


  राकेश ने उसकी चमकती गहरी आंखों में देखते हुए पूछा। 

उसने अपनी नज़रें घुमा लीं।


"यहां पास में कोई कैफे है....?"  रश्मि ने पूछा।


राकेश ने कहा - "हां! यहां से थोड़ी ही दूरी पर एक बहुत अच्छा कैफे है। चलोगी....?"


उसने बोली "हां! चलो....!"


   हमने एक ऑटो रोका और बैठ गए।

साल का आखिरी दिन और दिसंबर का भी। तापमान काफी गिरा हुआ था। 

   सन-सन करती हवा ऑटो में दोनों तरफ से आ रही थी, और वह ठंड से बचने की कोशिश करते हुए खुद में ही सिमटती जा रही थी।

      यार रश्मि कम से कम आज तो जींस पहन लेती। थोड़ा-सा ठंड से तो बचती और ऐसे मौसम में भी ये साड़ी....मैं मन ही मन उसको डांट रहा था।

   खैर, कैफे बहुत दूर नहीं था। अगले 6,7 मिनट में हम लोग कैफे पहुंच गए और अंदर जाकर एक टेबल पर बैठ गए।

वह मेरे सामने बैठी थी।

राकेश ने कहा - "देखो! सारे कपल्स एक-दूसरे के साथ बैठे हैं कितने पास-पास और तुम कितना दूर बैठी हो मुझसे।"

रश्मि ने कहा - यार "हम कपल्स थोड़ी हैं!"

   ऐसा लगा, जैसे सर्दी से लाल गालों पर किसी ने जोरदार थप्पड़ रख दिया हो। 

राकेश ने विचार किया -

  पता नहीं उस की बात सही थी या नहीं लेकिन यह एक विचारणीय मुद्दा था इसलिए मैंने इस पर आगे बात करना ठीक नहीं समझा। वैसे भी वह कभी गलत बोलती ही कब थी, हर बात का उसके पास एक सही और सटीक जवाब होता था।

"क्या लोगी....?"  राकेश ने पूछा।


रश्मि ने बोला 

"चाय...."  और हमने दो कप चाय और सैंडविच ऑर्डर कर दिए।


राकेश ने कहा -

"अच्छा लगा.... आज तुम आईं।"


रश्मि ने कहा -

"जानते थे....मैं आऊंगी....?" 


राकेश ने कहा -

"पूरी तरह तो नहीं! लेकिन याद था मुझे....तुम्हारा वादा, जो आज ही के दिन किया था तुमने। मैं भूल भी जाऊं लेकिन मेरा दिल नहीं भूल पाया। कहीं ना कहीं इसे उम्मीद थी कि तुम आओगी।"

राकेश आगे कविता के रूप में चाय पीते हुए रश्मि से कहता है:-


एक लहर आपके ख्याल की
मेरे वजूद को भीगों जाती है।

एक बूंद आपकी याद की,
मुझे इश्क के दरिया में डुबो जाती है।

हर आहट पे आपकी ही तलाश है,
आँखों को आपकी सूरत की प्यास है।

ना याद आओ हमें इतना की
दिल हमेशा पूछे धड़कन किस के पास है...!!

इस काव्य के बाद

रश्मि ने बोला -वाह राकेश "सच बोल रहे हो....?"


राकेश ने बोला - "हां! अगर यकीन मानो....तो!

सुबह से जाने कितनी बार ऑफिस की खिड़की से सड़क पर झांकते हुए, तुम्हारा इंतजार किया है मैंने। लेकिन रश्मि, तुम बिल्कुल नहीं बदलीं।

"क्यों....कैसे....?"

"अरे! अगर आ ही रही थी, तो मुझे बता देती न। अभी हफ्ते भर पहले तो बात हुई थी हमारी।"

रश्मि ने बोला- "डिसाइड नहीं था।" 

राकेश ने कहा :- "मैं नहीं मान सकता। तुम्हारा हर काम प्री डिसाइडेड होता है।"

रश्मि ने कहा :-

"अच्छा....?"

राकेश ने कहा

"हां! और क्या....."

रश्मि ने कहा :- 

"लेकिन मैं बता देती और अगर कहीं ना आ पाती तो.....?"

"दिल टूट जाता....."

  "जानती थी। इसी लिए नहीं, बताया वरना दिल टूटने का इल्जाम मेरे सिर आता।" कहते-कहते उसके होठों पर हल्की-सी मुस्कान और आंखों में शरारत तैर गई।

  राकेश ने कहा - "तुम बिल्कुल नहीं बदलीं। अपनी बातों में ऐसा फंसाती हो कि सामने वाले के पास हारने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता। लेकिन, एक बात बताओ.... अगर मैं आज लीव पर होता तो.....?"

रश्मि ने कहा :- 

"तो.....मेरा दिल टूट जाता!"

उसने घबराई-सी आंखों से मुझे देखते हुए कहा।

"और यह दिल टूटने का इल्जाम मैं अपने सिर पर नहीं लेना चाहता थी....."

   हम दोनों अपनी-अपनी चाय पी चुके थे। अब इस कैफे से विदा होने की बारी थी,

राकेश मन मे सोच में पड़ गया...

  और हमारे जुदा होने की भी। जब इस समय को सबसे धीरे चलना चाहिए, तभी ये इतनी तेज रफ्तार से क्यों भागता है...?


  जी भरकर बातें भी न हो पाई थीं अभी....मैं मन भर कर देख भी न पाया था उसे.... अभी तो उसके कानों की बालियों, सुर्ख होठों की लाली को आंखों में बसाना था, मुझे.... उसकी जुल्फों की खुशबू को सीने में कैद कर लेना था.... उसके आंचल की हवाओं को 

  अपनी सांसो में बसा लेना था अब, जब वह नहीं होगी.... उसकी ये सौगातें ही तो होंगी मेरे पास....अभी मेरा शायर-मन ख्यालों के पुलिंदे सजा ही रहा था कि वह मेरे चेहरे के सामने हाथ हिलाते हुए बोली- "कहां खो गए... ऑल ओके..?"


  "हां! हां! सब ओके..."  मैं जैसे हड़बड़ा कर किसी नींद से जागा। और बोला - "यह मुलाकात याद रहेगी...."


रश्मि बोली

"और मैं नहीं.....?"


राकेश ने बोला:- 

"फिर से तुम्हारी वही चतुर वाकपटुता!"  मैं झुंझलाते हुए बोला।


रश्मि ने कहा:- 

"अच्छा! अच्छा! सॉरी...." वह हंसकर बोली तो राकेश की सारी झुंझलाहट फुर्र हो गई।


"कह देते कि तुम याद रहोगी.... तो अच्छा लगता!"


  "भूलती ही कहां हो तुम...जो तुम्हें याद करने की जरूरत पड़े...." कहते-कहते मन भीतर ही भीतर पिघलने-सा लगा।

    मन हुआ कि उसका हाथ अपने हाथों में थाम लूं लेकिन एक बार फिर कुछ सोच कर रुक गया।

  "कितनी सर्दी है.... देखो, मेरे हाथ कितनी ठंडे हैं.... देखो तो...." कहते हुए अपनी दोनों हथेलियां रश्मि ने मेरे सामने रख दीं।

    मेरे लिए यह उसकी तरफ से आने वाले नए साल के किसी तोहफे से कम नहीं था। राकेश ने झट से अपने दोनों हाथ उसकी हथेलियों पर रखे और उन हाथों को थाम लिया। लगा.... जैसे किस्मत मुट्ठी में हो गई हो।

   कुछ पल तक राकेश, उसके हाथों को यूं ही अपने हाथों में लिए बैठा रहा।

  "यह आनेवाला नया साल तुम्हारे लिए ढेर सारी खुशियां लाए....तुम खूब आगे बढ़ो....खूब तरक्की करो....हमेशा खुश रहो....." रश्मि बोल रही थी और मैं केवल उसके होंठों को हिलते हुए देख रहा था। 

हमेशा खुश रहो..... केवल यही आखिरी शब्द थे, जो राकेश के कान सुन पाए।


राकेश ने कहा -

  "यकीनन! अब तुम्हारा साथ और हाथ जो मिल गया....." मैं बस इतना ही कह पाया।

कहना तो बहुत कुछ चाहता था तुम्हें। गले से लगाकर तुम्हें नए साल की दुआएं देना चाहता था मैं.... लेकिन नहीं कर पाया। 

फिर एक बार हम जुदा हो गए, जाने कब तक के लिए। 


   ये जनवरी.....जिस उतावलेपन से दिसंबर से गले मिलती है, दिसंबर, जनवरी को उतना ही इंतजार क्यों कराता है.... फिर उस से मिलने के लिए.... वहीं कैफे के बाहर खड़ा हुआ। मैं सोच रहा था और उसे जाते हुए देख रहा था।

ए मोहब्बत -
दुनिया जिसे कहते हैं 
     जादू का खिलौना है,,
मिल जाए तो खुशबू से भरी मिट्टी है 
    खो जाए तो सोना है।।

लेखक :- रूचिका राणा 

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