दत्तात्रेय जी का रहस्य | दत्तात्रेय जी का तप | mistry of Dattatreya

दत्तात्रेय जी का रहस्य | दत्तात्रेय जी का तप | mistry of Dattatreya

      तपस्वी व्यक्ति के जीवन मे तप की एक लय बनती है ,उस लय से  तप की गहराई चरम पर होती है, तप की गहराई से ऊर्जा बनी,धीरे-धीरे क्षण-क्षण ऊर्जा के स्वयं के एकीकरण से जीव समस्त विद्दाओं का ज्ञाता बनने लग जाता है,और अप्रत्यक्ष गुरु उसका निर्देशन करने लगते हैं। कुछ ऐंसा ही हुआ श्रेष्ठ तपस्चर्या से सराबोर विभूति श्री दत्तात्रेय जी के साथ।तप से प्राप्त ऊर्जा से दत्तात्रेय जी ने जो भी पाया सब कुछ बांटते गए ।

आइये दत्तात्रेय जी के बारे में जानते हैं

   दत्तात्रेय जी के आलावा 2 और भाई थे,जिनकी दत्तात्रेय जी पर  विशेष कृपा थी  :-

महर्षि अत्रि और माता अनसूया की 3 सन्तानें थीं जिनमें क्रमशः 

1)महर्षि दुर्वासा,
2)चन्द्रमा,
3) दत्त। 

अब जानते हैं श्री दत्तात्रेय जी की तपस्चर्या

    चन्द्र और दुर्वासा जन्म के कुछ समय बाद माता पिता से अपने संकल्पित कार्य में रत होने की आज्ञा मांगी। यह सुनकर महर्षि अत्रि और देवी अनसूया को बहुत दुख हुआ,लेकिन चन्द्र और दुर्वासा ने आश्वासन दिया कि हम अपने अंश को दत्त के पूर्ण अंश में छोड़ जाते हैं। दत्त ही दत्तात्रेय के नाम से जाने गए और तीनों देवता एक स्वरूप आ गए। यह सुन माता पिता भी अति आनंदित हो गए।

    दत्त ने कई वर्षो तक आश्रम में रहकर एक दिन अपने माता पिता से तीर्थाटन की अनुमति मांगी। माता-पिता थोड़ा दुःखी हुए। तब दत्तात्रेय ने कहा कि आप जब मुझे स्मरण करेंगे उसी क्षण मैं उपस्थित हो जाऊंगा।

     भगवान दत्तात्रेय आठ मास भ्रमण करते और चार महीने तपस्या। भिक्षा के लिए उनका विशेष स्थान है "करवीर क्षेत्र"। भोजन व शयन का स्थान माहुरगढ और ध्यान के लिए जूनागढ़ एव गुरू शिखर। राजस्थान के आबू पर्वत पर गुरू शिखर पर वे जब तपस्या कर रहे थे, तब उनके माता पिता ने उनको याद किया तो दत्तात्रेय उनको भी गुरु शिखर पर ले आए। 

गुरु शिखर पर दत्तात्रेय जी का अद्भूत शिवलिंग निर्माण

   यहां दत्तात्रेय जी के द्वारा स्थापित "श्री भसमेश्वर महादेव" जी का प्राचीन शिव लिंग है। यहां मान्यता है कि

 जिनकी संतान नहीं होती है, यहां के दर्शन से लाभ मिल जाता है।

   

महर्षि अत्रि और देवी अनुसुइया की 3 संतानों में इस दत्त अर्थात दत्तात्रेय के नाम की संतान का क्या कहना,ये तो तप को इतने गहराई से जी ने लगे थे, कि श्री दत्तात्रेय जी ने एक दो नहीं कई वैदिक मंत्रों के साक्षात द्रष्टा बने।

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दत्तात्रेय जी का परिवार

    दत्तात्रेय जी की पत्नी श्रीमति लक्ष्मी जी थीं। दत्तात्रेय जी के सुपुत्र निमि थे,और निमि के पुत्र श्रीमान थे। 

     त्रिपुरा रहस्य नाम का ग्रन्थ भारत में उपलब्ध है, उसमें भगवान विष्णु के अंश अवतार महामुनि दत्तात्रेय जी को योगेश्वर भी माना गया है। जैसा कि पूर्व में ही हम जान चुके हैं इनकी प्रव्रत्ति शांत है।

श्री विद्या के परम आचार्य :- 

     क्या आप जानते हैं तन्त्र के क्षेत्र में श्री विद्या रहस्य अद्भूत है ??? जिससे संपूर्ण जीवन मे, श्री से सम्पन्न हुआ जा सकता है,यह जानकर पाठक गणों को खुशी होगी, कि श्री दत्तात्रेय जी श्री विद्या के परम आचार्य हैं।

विशेष मान्यताएं :-

     यह मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय जी ने अनेक विद्याएँ दी थी। 

    मान्यतायें हैं कि ये दत्तात्रेय जी श्री विद्या के परम आचार्य होने के कारण कश्यप ऋषि ने परशुराम जी को, श्री दत्तात्रेय जी की शरण में जाने के लिए कहा।

    परशुराम जी को दत्तात्रेय जी ने अधिकारी जानकार "श्री विद्या" का उपदेश किया था।

महर्षि परशुराम ने मां त्रिपुर सुंदरी की साधना भी इन्हीं से हासिल की। 

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सिद्धों के परम आचार्य दतत्तात्रेय

      दत्तात्रेय जी की परा-विद्या का उपदेश त्रिपुरा रहस्य-माहात्म्य-खण्ड के नाम से प्रसिद्ध है,इसलिए स्वयं दत्तात्रेय जी सिद्धों के भी परम आचार्य कहे गये हैं।

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गुरु दत्तात्रेय जी ने अनासक्ति योग सिखाया

      भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय जी को ही जाता है।

दत्तात्रेय जी के अद्भुत चमत्कार हैं :-

    अवधूत दर्शन और अद्वैत दर्शन के जरिये श्री दत्तात्रेय जी ने मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति हेतु स्वयं की स्वयं से तलाश का रास्ता दिखाया। 

   दत्तात्रेय जी का वास होने के कारण गूलर का वृक्ष आज भी पूजित है। 

    बनारस के पुराने "ब्रह्माघाट" के मंदिर में दर्शन मात्र से हुए चमत्कारों की कथा सुनाते,इस मंदिर के भक्त गण अघाते नहीं हैं। उनका कहना है कि ये वो जगह है जहां मन मांगी मुराद मिलती है।

दत्तात्रेय जी की कृपा इन्हें मिली

   मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या दत्तात्रेय जी की कृपा से ही प्राप्त हुई थी।

    गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग श्री दत्तात्रेय जी की भक्ति से प्राप्त हुआ।

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दत्तात्रेय जी ने श्रेष्ठ जीवन्त ज्ञान को व्यक्ति की योग्यता के अनुरूप उपदेशित किया

     सीखने की कुशल अभीप्सा से भरे श्री दत्तात्रेय जी ने जो कुछ भी स्वयं की साधना और गुरुओं के आशीर्वाद से प्राप्त किया। उस श्रेष्ठ जीवन्त ज्ञान को व्यक्ति की योग्यता के अनुरूप जरूर प्रदान किया उनके शिष्य निम्न हैं :- 

कार्तिकेय
श्री गणेश, 
प्रहलाद, 
यदु, 
अलर्क, 
राजा पुरूरवा,
 आयु, 
परशुराम 
 हैहयाधिपति कार्तवीर्य आदि को योग विद्या एवं अध्यात्म विद्या का उपदेश दिया था।

  यह भी पढिये :- श्री दत्तात्रेय जी ने स्वयं को ज्ञान से युक्त कर श्रेष्ठ शिष्यों को निर्मित कर सदगुरु के रूप में उन्हें अनुग्रहित किया। जाने क्या होती है एक शिक्षक की  किसी के जीवन मे आवश्यकता?? कैसे स्नेह का भाव शिक्षक के साथ जुड़ा होता है??

परम भक्त वत्सल हैं दत्तात्रेय

    श्री दत्तात्रेय जी की कृपा और आशीर्वाद से ज्ञान की शुक्ष्म स्थिति को प्राप्त करने वाले शिष्य निम्न हैं :-

श्री शंकराचार्य, 
श्री गोरक्षनाथ 
सिद्ध नागर्जुनादि ने प्राप्त किया । श्री दत्तात्रेय जी परम भक्त वत्सल कहे गये हैं।  

दत्तात्रेय की आश्चर्य जनक सीखने की कुशलता का वर्णन

    भागवत महापुराण में अवधूतोपाख्यान के रूप में अपने अन्तिम दिनों में भगवान श्री कृष्ण ने उद्धव से दत्तात्रेय और महाराजा यदु के इस संवाद का उल्लेख किया है। इसका विवरण एकादश स्कन्ध के सातवें और आठवें अध्याय में मिलता है। इसमें अधिकाधिक दत्तात्रेय जी के 24 गुरु के बारे वर्णन है।

जब जीवन ध्यान में गहरा,और स्नेहियों का प्यारा,और गुरु का शिष्यभाव मे डूबा हुआ होता है तो उसका जन्म दिन एक उत्सव के रूप में हो जाता है। जाने कैसे?? एकाग्रता से पढ़िये 

दत्तात्रेय तन्त्र व योग के कुशल व उर्जामय प्रयोग कर्ता

      तपस्वी निमि के पिता भगवान अवधूत दत्तात्रेय जी की परम्परा योग और तंत्र दोनों में पायी जाती है। दत्तात्रेय जी की अनूठी प्रतिभा के कारण सिद्धों की परम्परा में भी तंत्र और योग दोनों का समागम देखा जाता है। 

    श्री दत्तात्रेय जी को, तंत्र मार्ग का श्रेष्ठतम जानकार कहें या चाहे भारत के दक्षिण की तन्त्र पद्धति हो, चाहे वैदिक तन्त्र पद्दति हो उन सारी पद्धतियों के शोधक,चिंतक,और कुशल प्रयोगकर्ता हैं।

     श्री दत्तात्रेय जी ,इतना ही नहीं उन्होंने भगवान शिव से प्राप्त मन्त्र से जड़ी को अभिमन्त्रित करने की विद्या तथा इन वनस्पतियों को किस मुहुर्त व किन नक्षत्रों के आकाशमण्डल पर रहने से वनस्पतियों को चेतन किया जाए, इस विद्या को ग्रहण किया,इतना ही नहीं उन्होंने भगवान शिव से मन्त्रों की लय व उन मन्त्रों से एक खास समय में यन्त्र को जाग्रत करने की विद्या में माहिरी प्राप्त की थी।

      इससे पूर्व लेख में स्पष्ट है कि दत्तात्रेय जी के 24 गुरु थे,जिनके माध्यम से  दिव्य भावपूर्ण शिक्षा लेकर श्री दत्तात्रेय जी ने विरक्ति का अनुभव किया । 

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कैसे बदलता है।

विवाह,न तो अध्यात्म विकास में बाधा है और न ही ब्रम्हचर्य में 

      दत्तात्रेय जी का अध्यात्म विकास इतना गहरा था कि वे कभी भी ईश्वर से चुके नहीं । यदि ऐंसा कहें तो अतिशयोक्ति न होगी कि उनसे ईश्वर बहता था। उन्होंने देवी लक्ष्मी से विवाह भी किया,निमि नामक श्रेष्ठ तपस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति भी की।

श्री दत्तात्रेय जी की विशेषता 

    श्री दत्तात्रेय जी की विशेषता यह है कि भक्त के स्मरण करते ही वे तत्क्षण उनके पास पहुंच जाते हैं, इसीलिये इन्हें-‘स्मृतिगामी’ तथा ‘स्मृतिमात्रानुगन्ता’ भी कहा गया है।

पुराणों की बात की जाए तो

     भारत में पुराणों में पद्मपुराण के भूमि खण्ड के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि श्री दत्तात्रेय जी को भगवत धर्म का साक्षात्कार हुआ था। इसीलिये ये ‘धर्मविग्रही’ भी कहलाते हैं।

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दत्तात्रेय के नाम पर भगवत प्राप्ति हेतु अलग-अलग सम्प्रदाय निर्मित हुए :-

     जिंसमें 

दासोपन्त, 
महानुभाव, 
गोसाईं , 
गुुरू चरित्र 
इत्यादी अनेक सम्प्रदाय हैं। 

दत्तात्रेय जी का विशेष प्रसिद्ध सम्प्रदाय

     श्री दत्तात्रेय जी का दत्त-सम्प्रदाय दक्षिण भारत में विशेष प्रसिद्ध है। अद्भुत है यह भारत भूमि जहां पर ‘गिरनार’ , श्री दत्तात्रेय जी का सिद्धपीठ है। त्रिपुरा रहस्य ग्रँथ के अनुसार इनका एक आश्रम गन्धमादन पर्वत पर भी है।

 दत्तात्रेय जी की चरण पादुकाएं 

    गुरू चरण पादुकाएं वाराणसी तथा आबू पर्वत आदि कई स्थानों में हैं। 

श्री दत्तात्रेय जी को याद करने का अचूक बीज मंत्र

    आइये दत्तात्रेय जी को अपने पास बुलाएं , उनके बीज मंत्र से खुद को रमा लें,वह दत्तात्रेय जी के स्मरण करने का बीज मंत्र ‘द्राँ’ है।

क्या आप जानते हैं श्री दत्तात्रेय जी का एक प्रचलित जयघोष है ‘अलख निरंजन’ का क्या अर्थ होता है :- 

    अलख निरंजन का भावार्थ क्या है?? अंजन से तात्पर्य अज्ञान से लिया जाता है। अज्ञान का नष्ट होना यानी निरंजन होना इसलिए निरंजन का अर्थ है अज्ञान की कालिमा से मुक्त होकर ज्ञान में प्रवेश करना। लक्ष का तात्पर्य देख पाने की शक्ति से है। अलक्ष यानी ऐसा जिसे हम सामान्य नेत्रों से देख ही न पाएं। सामान्य बुद्धि जिसे समझ ही न पाए। वह इतना चमकीला इतना तेजस्वी है कि उसे देख पाना सहज संभव नहीं।

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आइये अलख निरंजन को और समझते हैं :-

    ‘अलक्ष’ शब्द का अपभ्रंश है ‘अलख’। तो ‘अलख निरंजन’ का भाव हुआ, ज्ञान का ऐसा प्रकाशमान तेज, जिसे देख पाना संभव न होते हुए भी उसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है।

अलख का अर्थ है अगोचर, जो देखा न जा सके।

     निरंजन परमात्मा को कहते हैं। 'अलख निरंजन' का अर्थ यह भी हुआ- परमात्मा जिन्हें देखा न जा सके पर सब जगह व्याप्त हैं।

अलख-निरंजन ईश्वर को स्मरण करने का शब्द

अलख-निरंजन गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रचारित ईश्वर को स्मरण करने के शब्द हैं।

      क्या आपको पता है ?? दत्तात्रेय जी के दर्शन अभी भी मिलते हैं???? चिरंजीवी होने के कारण इनके दर्शन अब भी भक्तों को होते हैं। ऐसे विष्णु के अवतार अब तो भक्त वत्सल दत्तात्रेय जी को अपने बुलाकर ही रहिये , श्री दत्तात्रेय जी को कोटिशः वन्दन है। 

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1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत-बहुत बधाई माधुरी जी बहुत ही सुंदर लेख आप बधाई के पात्र हैं इतने अच्छे तरीके से इस लेख को लिखने हेतु कुछ एक तो अद्भुत जानकारियां मिली यह मुझे नहीं मालूम है कि लक्ष्मी जी के साथ दत्तात्रेय जी का विवाह संपन्न हुआ प्रतिदिन की पूजा में दत्तात्रेय जी स्नान ध्यान पूजा के लिए महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी की
    पूजा करते हैं विश्राम सहयाद्री पर्वत
    मैं करते हैं

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