हिन्दू नव वर्ष | नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं | nav varsh ki shubhkamnaye in hindi

             भारतीय नव वर्ष

   हिंदू नववर्ष में हम सभी भारत वासीयों की  मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की संरचना की थी। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष का प्रारम्भ होता है,जिसे हम सभी धूम धाम से मनाते हैं।

भारत मे नव वर्ष को निम्न नामों से जाना जाता है -

हिन्दू नव वर्ष,
संवत्सरारंभ, 
विक्रम संवत् वर्षारंभ,
वर्षप्रतिपदा, 
युगादि, 
गुडीपडवा 

आइये जानते हैं कि नव वर्ष का कैसे नाम पड़ा गुड़ी पड़वा

  गुड़ी पड़वा (मराठी-पाडवा) के दिन हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। 

  'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका' होता है। कहते हैं शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। 

नव वर्षारंभ का अतिरिक्त विशेष महत्व

   चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है।

 अब जाने नव वर्ष में कैसे होता है प्रकृति में परिवर्तन

खुशियों से भरा नव वर्ष रहे, हर आशा पूरन हो मन की,
जो बीत गया वह अतीत गया,अब आशा सब को शांति की।।

नव वर्ष के शुभ आरम्भ में,पेड़ों में नई कोपल उठती हो,
हरे भरे, होते वृक्ष सभी,कोयल भी कुहू कुहू करती हो।
ब्रम्हा से निर्मित हुई सृष्टि,
ब्रम्हांणी मंगल करतीं हो।।
           ब्रम्हांणी मंगल करतीं हो।।
इस धरा के सब जन आनन्दित,हर भावना पूरन हो जन की ।।
जो बीत गया वह अतीत गया,अब आशा सब को शांति की।।

   प्रकृति के लिहाज से देखें तो चैत्र शुक्ल पक्ष आरंभ होने के पूर्व ही प्रकृति नववर्ष आगमन का संदेश देने लगती है। प्रकृति की पुकार, दस्तक, गंध, दर्शन आदि को देखने, सुनने, समझने का प्रयास करें तो हमें लगेगा कि प्रकृति पुकार-पुकार कर कह रही है कि नवीन बदलाव आ रहा है, 

   नववर्ष दस्तक दे रहा है। वृक्ष-पौधे अपने जीर्ण वस्त्रों को त्याग रहे हैं, जीर्ण-शीर्ण पत्ते पतझड़ के साथ वृक्ष शाखाओं से पृथक हो रहे हैं, वायु के द्वारा सफाई अभियान चल रहा है, प्रकृति के रचयिता अंकुरित-पल्लवित-पुष्पित कर बोराने की ओर ले जा रहे हैं, मानो पुरातन वस्त्रों का त्याग कर नूतन वस्त्र धारण कर रहे हैं।

  पलाश खिल रहे हैं, वृक्ष पुष्पित हो रहे हैं, आम बौरा रहे हैं, सरसों नृत्य कर रही है, वायु में सुगंध और मादकता की मस्ती अनुभव हो रही है। 

    इस प्रकार के समृद्ध नववर्ष को छोड़कर यदि हम किसी और तरफ भागते हैं तो इसे हमारी अज्ञानता के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता है। जरूरत है इस अज्ञानता से सरकार के साथ-साथ आम जनमानस भी प्रकाश की ओर बढे, तभी हिन्दू नववर्ष की सार्थकता पुनः स्थापित होगी और इस सार्थकता के साथ समृद्धि, खुशहाली और विकास अपने पूर्ण रूप में प्रकाशमान होंगे।

भारत मे नव वर्ष भिन्न भिन्न राज्यों में

   पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से १३ अप्रैल को मनाया जाता है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार १४ मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। 

   आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। 

   तमिलनाडु में पोंगल १५ जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है।

   कश्मीरी कैलेंडर नवरेह १९ मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। 

    मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। 

   इस दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है।लेकिन यह व्यापक नहीं है। अक्टूबर या नवंबर में आता है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी १४ या १५ अप्रैल को आता है।

भारत से बाहर पश्चिम देश में नव वर्ष

   नव वर्ष उत्सव 4,000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। यह दिनांक  प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी।

हिब्रू में नव वर्ष

    हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक ५ सितम्बर से ५ अक्टूबर के बीच आता है।

अब जानते हैं चैत्र प्रतिपदा के वर्षारंभ के दिन अर्थात नववर्ष क्यों मनाए?

1) ब्रह्मांड की निर्मिति का दिन

   ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड को निर्मित किया । उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ। सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से -सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया।

सृष्टि के निर्माण का दिन

   ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया। इसलिए ब्रह्मदेवद्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा।

साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक

   चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढ़े तीन मुहूर्त होते हैं। इन साढ़े तीन मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य करने के लिए मुहूर्त देखना पड़ता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है।

2) सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।

3) प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।

4) शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।

5) पंजाब में विशेष रूप से सिखो के समुदाय में सिखों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।

6) स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया।

7) सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।

8) राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। विक्रम संवत की स्थापना की ।

9) युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।

10) संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।

11) महर्षि गौतम जयंती

आइये भारतीय नववर्ष धूम धाम से निम्न तरीके से मनाएँ :-

1) हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें , झंडे, बैनर....आदि लगावे ।

2) आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।

3) इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहराएँ।

4) आपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ।

5) घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।

6) इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।

7) प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें।

8) इस दिन के महत्वपूर्ण देवताओं, महापुरुषों से सम्बंधित प्रश्न मंच के आयोजन करें।

9) वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजन संध्या , महाआरती आदि का आयोजन करें।

10) चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम।



आप सभी को नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ