प्रेम पत्र | एक प्रेम पत्र जिसने मुझसे एहसाह जगाया |पहला लव लेटर |romantic love letter prem patra

मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधर उधर देखे जा रही थी क्योंकि वह मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था या यों कहें कि वह कहीं छिप गया था,वहां से दूर भाग चुका था. शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने उस से किताब ले ली थी. सच कहूं तो वह काफी समय से मुझे इंप्रेस करने में लगा हुआ था.ek prem patr love letter in hindi

     हालांकि कभी कुछ कहा नहीं था, और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस विषय की किताब की जरूरत है तो न जाने कहां से फौरन उस किताब को अरेंज कर के मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था।

प्रेम पत्र | एक प्रेम पत्र जिसने मुझसे एहसाह जगाया |पहला लव लेटर |romantic love letter prem patra

     मैं ने उस समय तो वह किताब पकड़ ली थी, लेकिन अब उस के छिप जाने या गायब हो। जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था,कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?? मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बैंच पर बैठ गई. वहां पर कुछ लोग जौगिंग कर रहे थे और वे मेरे आसपास ही घूम रहे थे।


   मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देख कर वे सब मेरे और करीब आ रहे हैं. खैर, हर तरफ से मन हटा कर मैं ने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफेद प्लेन पेपर मेरे हाथों के पास आ कर गिर पड़ा, न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इस में. फिर भी झुक कर उसे उठाया और खोल कर चैक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था।



   मैं खुद को ही गलत कहने लगी। वह तो एक समझदार लड़का है और मेरी हैल्प करना चाहता है, बस. मैं ने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफेद प्लेन पन्ना सरक कर गिर पड़ा। इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी,पार्क में मौजूद आधे लोग पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे और बचे खुचे लोग भी अपनी सेहत पर ध्यान देने के बजाय मेरी ओर निहार रहे थे।


    "क्या हुआ सौम्या?" अचानक से आशीष दौड़ कर मेरे पास आ गया। वह मेरे चीखने की आवाज सुन कर काफी घबराया हुआ लग रहा था.


   "कुछ नहीं, बस इस घास के कीड़े से डर गई थी. यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था, " उस ने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा।


   "तुम बहुत डरती हो सौम्या. इस नन्हे से कीड़े से ही डर गईं. देखो, वह तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया," आशीष मुस्कुराते हुए बोला - सौम्या भी थोड़ा झेंपते हुए मुस्कुरा दी.


"तुम अभी तक कहां थे आशीष, मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचानक कहां से आ गए?"अरे पागल, मैं तो यहीं पर था,जोगिंग कर रहा था।


"ओह, तो क्या तुम यहां रोज आते हो?"



और क्या, तम्हें क्या लगा??? आज तम्हारी वजह से पहली 

बार आया हूं?"


"नहीं - नहीं. ऐसा नहीं है, मैं ने यों ही पूछा."


   "चलो, अब मैं घर आ जा रहा हूं,तुम आराम से इस किताब को पढ़ कर वापस कर देना," आशीष बिना कुछ कहे व रुके वहां से चला गया.


   ''कितना बुरा है आशीष, बताओ उस ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि तुम साथ चल रही हो?' उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किताब दे कर उस पर कोई एहसान कर के गया है।


   मैं उदास हो घर की तरफ वापस चल पड़ी। मन में उस के लिए न जाने क्या-क्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला।


   घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा। कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती ही रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा।


    ओह, यह, आज मेरे मन को क्या हो गया है। उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं।अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी । थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा।


वह मां के पास आ कर बैठ गई।


तुम आ गई सौम्या बेटा?"


"हां मा."


   "बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कॉपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है। वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई।


   लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की। उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं,शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं।


  सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए।


  आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. पीले रंग की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब उसे ही देख रहे थे. उसे लगा आज तो पक्का आशीष उस से बात करेगा। लेकिन पूरी पार्टी निकल गई पर आशीष ने एक बार भी उसे की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा। अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था।


" गुस्से और रोने के समय अकसर सौम्या के चेहरे पर लालिमा आ जाती है,जो उस की सुंदरता में इजाफा कर देती है, वह यों ही कालेज से बाहर निकल कर आ गई. अचानक से लगा कि कोई उस के पीछे आ रहा है. कौन हो

 

   मुझे,थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा,वह एकदम से सौम्या के सामने आ गया ।


   "ओह आशीष तुम, मैं तो एकदम घबरा ही गई थी," उस का दिल वाकई में घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था।


     वह कुछ नहीं बोला, फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए कहा, "यह सर ने आप के लिए भिजवाया है."


"क्या है इस में?"


"आप की ड्रेस के लिए शायद बैस्ट कौंप्लिमैंट्स हैं. "


   उस के चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वह सच ही कह रहा है, क्योंकि उस के चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिस से लगे कि वह मजाक कर रहा है। उस वक्त अचानक से उस के मन में यह खयाल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो।


   "सौम्या, अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं? आज मैं अपने पापा की कार ले कर आया है," आशीष ने उसे जाते देख कर कहा.


   उस ने बिना देर किए फौरन सिर हिला दिया था क्योंकि  वह आशीष के , थोडी देर का साथ भी गंवाना नहीं चाहती थी. डाइविंग सीट पर बैठे 


   अनुमान भी लगाया जा सके कि उस के दिल में कोई कोमल भावना भी है।


   सौम्या का घर आ गया था और वह उतर गई। उस ने आशीष से कहा, "आशीष घर के अंदर नहीं आओगे?"


   "नहीं, आज नहीं फिर कभी। आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है."ओह, कितना खड़ूस है यह, इस की नजर में उस की कोई वैल्यू ही नहीं. मैं ही पागल हूं, जो इस से एक तरफा प्यार कर रही हूं. आज से इस के बारे में सोचना बिलकुल बंद.' उस ने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था। चाहे कैसे भी हो, मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा। 


   चलो, अब कभी उस का नाम ले कर उसे याद नहीं करूंगी. मैं मुस्कुराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गई । आईने के सामने खड़े हो कर खुद को निहारा. मन में उदासी का भाव आया. उस की वजह से ही तो इतना सज संवर के गई थी. खैर, अब छोड़ो, उस के द्वारा हाथ में पकड़े लिफाफे को बैड पर रखा और कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने लगी.


   'चलो, पहले इस लिफाफे को ही खोल कर देख लूं, सर ने न जाने क्या लिखा होगा?' बेमन से उस को खोला..


उस में से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा. ओह, यह तो . आशीष की बदतमीजी है. आज उसे फोन कर के कह ही देती हूं कि मुझे इस"तरह का मजाक पसंद नहीं है।


   गुस्से में आ कर वह फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गई.


   वह निकाल कर पढ़ने के लिए खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई. मम्मी को भी अभी ही आना था।


"बेटा, जरा मार्केट तक जा रही हूं, कुछ मंगाना तो नहीं है मम्मी, कुछ नहीं चाहिए.'।


  "चलो, ठीक है."


   मम्मी के जाते ही उस ने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया, 'प्रिय सौम्या, के संबोधन के साथ शुरू हुआ वह पत्र तुम्हारा आशीष के साथ खत्म हुआ. उस के बीच में जो लिखा था वह उसे खुशी से झुमाने के लिए काफी था. वह भी मुझे उतना ही प्यार करता था. वह भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था. वह भी कुछ कहने को तरसता था. वह भी मेरा साथ पाना चाहता था. लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूं. उस के प्यार को अस्वीकृत न कर दूं।


    वाकई वह मुझे सच्चा प्यार करता है, तभी तो कभी उस ने मेरे हाथ तक को एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आए थे. वह खुशी से झूम * उठी. एक बार खुद को आईने में निहारा और अब वह खुद पर ही मोहित हो गई, उस के मुंह से अचानक  निकल पड़ा. "आई लव यू आशीष।


     और अब वह शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ कर के जमीन को देखने लगी थी। आखिर, उस के सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गई थी…


लेखिका :- सीमा पांडे जी

62, Shantikunj Bungalows, Vimal Park Society, Hanspura, GIDC Naroda, Ahmedabad


उपरोक्त लेटर को पढ़ने के बाद अपने अनुभव को comment करके जरूर बताऐं।


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2 टिप्पणियाँ

  1. सुश्री सीमा पाण्डेय जी, श्री राधे राधे। कुछ लोग हमारे जीवन में आते हैं और अपनी अमिट छवि को छोड़ कर चले जाते हैं कभी नहीं भुलाने के लिए। मै बहुत छोटा था चार या पांच साल का,श्यायद सन् साठ के आसपास की बात होगी मेरा मित्र रामू था, मेरे घर मेरे साथ रहता, खेलता, भोजन करता,हम लोग गरमी में पूज्य नानाजी के यहां गए हुए थे गरमी में।गरमी में वर्षा हुई थी जिससे नालेमे पानी था।रामूमांरामू के पीछे-पीछे खेत जारहा था, मां का ध्यान नहीं था उस पर।नाले पर बहुत छोटा पूल बना था और उस पूल को पार करते-करते नालेके बहते पानी में गिर पड़ा और अनंत ज्योति में विलीन हो गया। दूसरी मेरी बहुत प्यारी सी, विलक्षण प्रतिभा की धनी पुत्री सुश्री श्वेता २१ अप्रैल १९८१ को आई । बचपन से कलेक्टर बनने का सपना है बताकर पाॅलिटेक्निक,बी.ई.और फिर आई.ए.एस.करने का सपना संजोए पाॅलिटेक्निक के छटवें सेमेस्टर में प्रवेश करने ही वाली थी कि स्वास्थ्य खराब हुआ और सेक्टर ९ अस्पताल भिलाई में १ मार्च २००१ की सुबह ११.१५ बजे मुस्कुराते हुए हमेशा के लिए अपनी आंखें बन्द करली। और तिसरा व्यक्ति है मेरे छोटे मामाजी का बड़ा पुत्र सचिन वह भी मुझे बहुत अच्छा लगता परंतु एक दुर्घटना का शिकार हो कर उसने अंतिम बिदाई ले ली ।इन तीनों की अमिट छवि मेरे हृदय पटल पर अंकित हो गई है।पता नहीं क्यों आपश्री से दुखत बात साझा करने का मन हुआ,श्यायद आप श्री से पूर्व जन्म में बहन-बेटी का रिश्ता रहा हो। श्री राधे, श्री राधे, श्री राधे।आजके अप्रतिम आनंद के लिए हृदय की अनंत गहराइयों से सभी दैवीय शक्तियों से भावभरी विनम्र प्रार्थना, भावभरा विनम्र निवेदन। मंगलमय अनंत हार्दिक शुभकामनाओं सहित शुभाकांक्षी-लक्ष्मीनारायण पशीने-.९८२७१.७६९७०.

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