कोरोना संक्रमण की वजह से इंदौर को मिला सौभाग्य
साल 2020 में जब आचार्य विद्यासागर इंदौर आये तो कोरोना की वजह से ओके लगा। इस वजह से इंदौर की जनता को गुरु का यह प्रेम मिल गया। जैन समाजजन कहते हैं कि गुरु के प्रति अपार स्नेह की वजह से यह सौभाग्य मिला।
चंद्रगिरि तीर्थ में देहलोक
छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि तीर्थ (चंद्रगिरि डोंगरगढ़ जैन मंदिर) में शनिवार देर रात 2:35 बजे श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य ने पूर्ण जागृति अवस्था में आचार्य पद का त्याग कर दिया। इसके बाद तीन डिविज़न और अनोखे मौन खड़े हो गए। इसके बाद उन्होंने प्राण त्याग दिया। उनके देह त्यागने की खबर मिलने के बाद जैन समाज के लोगों ने डोंगरगढ़ में त्यागना शुरू कर दिया। आज दोपहर 1 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा।
संपूर्ण जैन समाज के लिए आज का दिन सबसे कठिन है। समाज के वर्तमान विद्या के महावीर कहे जाने वाले आचार्य सागर महाराज ने देह त्याग दिया और पूरी विधि के साथ समाधि ली। बता दें कि रात 2.35 बजे उनकी देह इस दुनिया को छोड़ गई थी। वह आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे। जब आचार्य ज्ञानसागर ने समाधि ली थी तब उन्होंने अपने आचार्य पद मुनि विद्यासागर को समाधि ली थी। ऐसे में मुनि विद्यासागर मोहन 26 साल की उम्र में ही 22 नवंबर 1972 को आचार्य बन गये थे।
अगले शिक्षक कौन हैं?
ठीक इसी तरह आचार्य विद्यासागर महाराज ने भी सबसे पहले तीन बार अपना पद त्याग किया था और उनके सबसे पहले मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर को पुनः प्राप्त किया था। बताया जा रहा है कि 6 फरवरी को ही उन्होंने मुनि समयसागर और मुनि योगसागर को एकांत में जिम्मेदारियां दी थीं। बता दें कि ये दोनों मुनि समयसागर और योगसागर अपने ग्रहस्थ जीवन के ऋषि भाई हैं।
कर्नाटक राशि में हुआ था जन्म
हाल ही में 11 फरवरी को आचार्य सागर महाराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। ।।
जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर जी को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, उनके घर के से लोग संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ, शांतिनाथ और महावीर जी ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी, मुनि उत्कृष्ट सागर जी कहलाये।
आचार्य श्री विद्यासागर जी की शिक्षा
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
आचार्य श्री विद्या सागर जी का रोचक रहस्य
"सम्पूर्ण आचार्य जीवन मे कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया।"
आचार्य श्री विद्यासागर त्याग की गजब की मूर्ति थे
आजीवन चीनी का त्याग,आजीवन नमक का त्याग,आजीवन चटाई का त्याग आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग, अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन।
आचार्य श्री एक ऐंसे सन्त जो
एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर किसी भी मौसम में।
पुरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय ।।
पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है
प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण,
आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किआ और स्वीकृति लेकर माने
ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे
और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे ।
आचार्य भगवंत जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है वरन मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है ।
शरीर का तेज ऐसा जिसके आगे सूरज का तेज भी फिका और कान्ति में चाँद भी फीका है
ऐसे हम सबके भगवन चलते फिरते साक्षात् तीर्थंकर सम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी के चरणों में शत शत नमन नमन नमन
हम धन्य है जो ऐसे महान गुरुवर का सनिध्य हमे प्राप्त हो रहा है।।
प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति सभी के पद से अप्रभावित साधना में रत गुरुदेव ।।
हजारो गाय की रक्षा,गौशाला समाज ने बनाई, हजारो बालिकाओ को संस्कारित आधुनिक स्कूल ।
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