आइये जानते हैं एक अमृत योग के रहस्य को, जिसने हमें ध्यान,ज्ञान,मान,साधना,विधि,विधान,तपस्या,आत्मज्ञान का अनूठा अवसर प्रदान किया है। इतना ही नहीं इस योग में विशिष्ट उद्देश्य भी पूरे किए जाते हैं। हम सभी साधक,जिसके लिए सम्पूर्ण मनोयोग से राह देखते रहते हैं।
इस योग के अवसर का उपयोग कर, विशेष संकल्प से व्यक्ति अपने दुर्भाग्य को भी बदल सकता है,इस दिन व्यक्ति को - धन प्राप्ति,चांदी,सोना,नये वाहन, बही-खातों की खरीदारी अत्याधिक लाभ प्रदान करती है।
ऐंसे नक्षत्रों के राजा जिनका स्थान 27 नक्षत्रों में 8वे क्रम का है, जिसका नाम पुष्य नक्षत्र है। और नवग्रह में जिनका विशेष स्थान है,जिनके बिना व्यक्ति कभी भी सुरक्षा को प्राप्त नहीं हो सकता,जिनके बिना अध्यात्म अधूरा है,हमारे आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रतिनिधि ग्रह,और नवग्रह में 5वें स्थान के ग्रह गुरु ग्रह हैं।
जब सौरमंडल में यह गुरु ग्रह, पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तो एक अमृत का जन्म होता है इस कारण हम इस योग को,बड़े श्रद्धा से
"गुरु पुष्यामृत योग" के नाम से जानते हैं।
अब आइये मिलकर इस योग के गहरे रहस्य में उतरें-
क्यों है यह गुरु पुष्य नक्षत्र का योग सर्वश्रेष्ठ :-
आइये इसके पीछे के कारण को जानते हैं,जो कि यह है कि :- गुरु पुष्य नक्षत्र की प्रकृति ब्रह्मांड के सबसे बड़े ग्रह गुरु जैसी है और इसका स्वामी ब्रह्मांड का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह शनि है।
भारतीय शास्त्रों में ‘गुरु’ ग्रह को :- पद-प्रतिष्ठा, सफलता और ऐश्वर्य,आशीर्वाद,कृपा,अध्यात्म,सुरक्षा,आत्मबल का कारक माना गया है।
वहीं ‘शनि’ को वर्चस्व, न्याय और श्रम,स्थायित्व का कारक माना गया है।
इसीलिए पुष्य नक्षत्र की उपस्थिति में महत्वपूर्ण कार्य करने को शुभ माना जाता है।
इसलिए गुरु पुष्यामृत योग के दिन किया जाने वाला:- मन्त्र जाप,तपस्या,ध्यान,भजन,प्रार्थना,किसी विशिष्ट संकल्प की पूर्ति पूर्ण होती ही है और उसका स्थायित्व हमेशा बना रहता है।
गुरु पुष्य अमृत योग पर करने योग्य अनूठे कुछ उपाय :-
1. मोती शंख
मोती शंख एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का शंख माना जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार यह शंख बहुत ही चमत्कारी होता है। दिखने में बहुत ही सुंदर होता है। इसकी चमक सफेद मोती के समान होती है।
विधि:- मोती शंख में जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज लक्ष्मी जी को प्रिय मन्त्र :- श्री महालक्ष्मै नम: 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।
मोती शंख के लाभ:-
यदि आपको घर में सुख और शांति चाहिए तो मोती शंख स्थापित करें। सुख और शांति होगी तभी समृद्धि बढ़ेगी। मोती शंख हृदय रोगनाशक भी माना गया है।
यदि अभिमंत्रित मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है।
यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।
रात्रि में इसमें जल भरकर रख दें और सुबह उससे चेहरे पर मसाज करने से चेहरे के दाग धब्बे खत्म हो जाते हैं और चेहरा कांतियुक्त हो जाता है।
रात को अभिमंत्रित मोती शंख में बीज भरकर छोड़ दें, अगले दिन ये बीज खेत में बोने से फसल की दोगुनी पैदावार होती देखी गयी है।
रोगी व्यक्ति को इसमें रखा जल पिलाने से वो शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करता है।
शंख खरीदने के समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखें:-
खरीदने के समय शंख की भली प्रकार से जांच कर लें, कि शंख कंही से टूटा हुआ, या टूट जाने पर मसाला लगा कर मरम्मत किया हुआ तो नहीं है।
निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात टूटा हुआ या रंगीन शंख गुणदायक नहीं होता।
गुणों वाला शंख ही प्रयोग में लाना चाहिए। अन्यथा कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा।
जानकारी न होने पर किसी बड़ी, प्रचलित व भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड कंपनी से खरीद कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
बाजार में मोती शंख की कीमत:-
यह शंख बाजार में आपको 280 रुपए से 16,000 रूपए तक शंख की प्रकर्ती व नाप के अनुसार मिलेगा
2. दक्षिणावर्ती शंख
परिचय :- शंख भिन्न-भिन्न आकृति व अनेक प्रकार के होते हैं। शंख संहिता के अनुसार सभी प्रकार के शंखों की स्थापना घरों में की जा सकती है।
मुख्य रूप से शंख को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
वामावर्ती, दक्षिणावर्ती और मध्यावर्ती।
वामावर्ती बजने वाले शंख होते हैं इनका मुंह बाईं ओर होता है। दक्षिणामुखी एक विशेष जाति का दुर्लभ अद्भुत चमत्कारी शंख दाहिने तरफ खुलने की वजह से दक्षिणावर्ती शंख कहलाते हैं। इस तरह के शंख आसानी से नहीं मिल पाते हैं।
इसकी विधि इस प्रकार है-
गुरु पुष्य के दिन सुबह नहाकर साफ वस्त्र धारण करें और शुभ मुर्हूत में अपने सामने दक्षिणावर्ती शंख को रखें। शंख पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र जप के लिए स्फटिक की माला का उपयोग करें।
मंत्र :-
ऊं श्रीं ह्रीं दारिद्रय विनाशिन्ये धनधान्य समृद्धि देहि देहि नम:।।
इस मंत्रोच्चार के साथ-साथ एक-एक चावल इस शंख में डालते रहें। चावल टूटे न हो इस बात का ध्यान रखें।
दूसरा प्रयोग :- यदि ऊं श्रीं ह्रीं दारिद्रय विनाशिन्ये धनधान्य समृद्धि देहि देहि नम:।।
इस तरह दीपावली की रात तक रोज एक माला मंत्र जप करें। पहले दिन का जप समाप्त होने के बाद शंख में चावल रहने दें और दूसरे दिन एक डिब्बी में उन चावलों को डाल दें। इस तरह एक दिन के चावल दूसरे दिन एक डिब्बे में डालकर एकत्रित कर लें। जब प्रयोग समाप्त हो जाए तो चावल व शंख को एक सफेद कपड़े में बांधकर अपने पूजा घर, फैक्ट्री, कारखाने या ऑफिस में स्थापित कर दें।
लाभ :-
इस प्रयोग से आपके घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होगी।
एक और प्रयोग विधि :-
असली दक्षिणावर्ती शंख जिसे महालक्ष्मी शंख के नाम से भी जाना जाता है जिसकी प्रयोग विधि :-
२४ घंटे तक दक्षिणावर्ती शंख (महालक्ष्मी शंख) में भर कर रखा गया साधारण जल भी पवित्र नदियों के जलों के समान ही पुण्य देने वाला बन जाता है। इसलिए भगवान को स्नान कराने के लिए भी, अभिमंत्रित महालक्ष्मी शंख में जल भरकर ही प्रयोग करने के लिए शास्त्रों में बताया गया है। महालक्ष्मी शंख में जल भरकर सूर्य भगवान पर भी चढ़ाया जाता है।
दक्षिणावर्ती शंख (महालक्ष्मी शंख) के लाभ:-
अभिमंत्रित दक्षिणावर्ती शंख (महालक्ष्मी शंख) में रात के समय जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं।
नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है।
दक्षिणावर्ती शंख (महालक्ष्मी शंख) धनदायक तथा आर्थिक समृद्धि कारी होता है, क्योंकि यह समुद्र मंथन से निकला हुआ शंख है इसलिए ऐसी मान्यता है कि जिस घर में अभिमंत्रित दक्षिणावर्ती शंख (महालक्ष्मी शंख) की पूजा होती है वहां लक्ष्मी जी का वास होता है। तथा लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर पूजा करने वालों की आर्थिक अव्यवस्थाओं को दूर करके उन्हें धनवान तथा आर्थिक समृद्धि कारी बना देती है।
दक्षिणावर्ती शंख खरीदने के समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखें:-
खरीदने के समय दक्षिणावर्ती शंख की भली प्रकार से जांच कर लें, कि शंख कंही से टूटा हुआ, या टूट जाने पर मसाला लगा कर मरम्मत किया हुआ तो नहीं है,
निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला दक्षिणावर्ती शंख असली होता है जबकि अशुद्ध अर्थात टूटा हुआ या रंगीन दक्षिणावर्ती शंख असली नहीं होता। असली वाला दक्षिणावर्ती शंख ही प्रयोग में लाना चाहिए।
अन्यथा कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। जानकारी न होने पर किसी बड़ी, प्रचलित व भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड कंपनी से खरीद कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
3. पारद लक्ष्मी
लक्ष्मी की पारद से बनी मूर्ति खरीदना भी बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है माता लक्ष्मी सुख और ऐश्वर्य की देवी है।
लक्ष्मी उपासना में पारद लक्ष्मी का स्मरण अपार खुशहाली देने वाला है।विशेष रूप से यह आर्थिक परेशानियों को दूर करने वाला है। व्यवसाय में बढ़ोत्तरी और नौकरी में पदोन्नति के लिए पारे से बनी लक्ष्मी प्रतिमा के पूजन का विशेष महत्व है।
अब पारद लक्ष्मी जी की पूजन विधि इस प्रकार है-
गुरु पुष्य योग के दिन पारद लक्ष्मी की प्रतिमा (पारे से बनी मूर्ति) उपासना के दौरान एक विशेष मंत्र का जप करने से हर तरह का आर्थिक संकट दूर होता है।
इस योग वाले दिन शाम को इच्छुक व्यक्ति को सबसे पहले स्नान कर खुद को पवित्र बनाना चाहिए।
इसके बाद पारद लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए।
मां लक्ष्मी को लाल चंदन, अक्षत, लाल वस्त्र और दूध से बने पकवान चढ़ाने चाहिए।
इसके बाद माता को 108 लाल रंग के फूल अर्पित करें। हर बार फूल चढ़ाते हुए एक मंत्र बोला जाना चाहिए।
मंत्र है :-
ऊंं श्री विघ्नहराय पारदेश्वरी महालक्ष्यै नम:।
इस तरह सारे फूल चढ़ाने के बाद माता लक्ष्मी की आरती पांच बत्तियों वाले दीप से कर अपने आर्थिक संकट दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
इस मूर्ति का दिपावली के दिन तक रोज पूजन करना चाहिए। फिर इसे तिजोरी में स्थापित करना चाहिए।
4. एकाक्षी नारियल
परिचय :- एकाक्षी नारियल भी नारियल का एक विशेष प्रकार है। लेकिन इसका प्रयोग अधिकांश रूप से तंत्र प्रयोगों में किया जाता है। इसके ऊपर आंख के समान एक चिह्न होता है। इसलिए इसे एकाक्षी (एक आंख वाला) नारियल कहा जाता है। इसे धन स्थान अथवा पर कहीं पर भी रख सकते हैं।
एकाक्षी नारियल को साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। ध्यान रखें कि - गुरु पुष्य के दिन यदि इसे विधि-विधान से घर में स्थापित कर लिया जाए तो उस व्यक्ति के घर में कभी पैसों की कमी नहीं रहती है।
इसकी विधि इस प्रकार है-
सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
किसी शुभ मुर्हूत में अपने सामने थाली में चंदन या कुंकुम से अष्ट दल बनाकर उस पर इस नारियल को रख दें और अगरबत्ती व दीपक लगा दें।
शुद्ध जल से स्नान कराकर इस नारियल पर पुष्प, चावल, फल, प्रसाद आदि रखें।
लाल रेशमी वस्त्र ओढ़ाएं।
इसके बाद उस रेशमी वस्त्र को जो कि आधा मीटर लंबा हो बिछाकर उस पर केसर से यह मंत्र लिखें-
ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं महालक्ष्मीं स्वरूपाय एकाक्षिनालिकेराय नम: सर्वदिद्धि कुरु कुरु स्वाहा।
इस रेशमी वस्त्र पर नारियल को रख दें और यह मंत्र पढ़ते हुए उस पर 108 गुलाब की पंखु़ि़ड़यां चढ़ाएं यानी हर पखुंड़ी चढ़ाते समय इस मंत्र का उच्चारण करते रहें-
मंत्र- ऊं ऐं ह्रीं श्रीं एकाक्षिनालिकेराय नम:।
इसके बाद गुलाब की पंखुडिय़ां हटाकर उस रेशमी वस्त्र में नारियल को लपेटकर थाली में चावलों की ढेरी पर रख दें और इस मंत्र की 1 माला जपें-
मंत्र-
ऊं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं एकाक्षाय श्रीफलाय भगवते विश्वरूपाय सर्वयोगेश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकार्य प्रदाय नम:।
सुबह उठकर पुन: 21 गुलाब से पूजा करें और उस रेशमी वस्त्र में लिपटे हुए नारियल को पूजा स्थान पर रख दें। इस प्रकार एकाक्षी नारियल को घर में स्थापित करने से धन लाभ होता है।
आइये जाने भगवान शिव का संक्षिप्त रहस्य जानने के लिए क्लिक here
5. लघु नारियल
लघु नारियल एक प्रकार का नारियल आम नारियल से बहुत छोटे होते है,तंत्र-मंत्र में इसका खास महत्व है।
इस तरह के नारियल को श्रीफल भी कहते हैं,तात्पर्य देवी लक्ष्मी का फल।
इसकी विधि-विधान से पूजा कर लाल कपड़े में बांधकर ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां किसी की नजर इस पर न पड़े। इस उपाय से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं।
इसकी विधि इस प्रकार है-
गुरु पुष्य योग के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। किसी भी शुभ मुर्हूत में लघु नारियल का केसर व चंदन से पूजन करें और माता लक्ष्मी व भगवान विष्णु का ध्यान करें। उनसे घर में समृद्धि बनाए रखने के प्रार्थना करें, फिर 108 बार निम्न मंत्र का जप करें-
मन्त्र है:- श्रीं
इस प्रयोग की समाप्ति के बाद लघु नारियल को धन स्थान पर रखें।
ध्यान रखिये इस योग की विशेष साबधानियाँ :-
योग सम्राट आचार्य श्री महेंद्र मिश्र जी के मतानुसार - सभी शुभ कार्यों को इस दिन संपन्न किया जा सकता है, केवल एक को छोड़कर वह है- 'विवाह संस्कार' शास्त्रों में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता । विवाह में पुष्य नक्षत्र सर्वथा वर्जित तथा अभिशापित है। अतः पुष्य नक्षत्र में विवाह कभी भी नहीं करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप :- माता सीता का प्रभु राम से विवाह इसी योग में हुआ था। तो आगे क्या हुआ हम सभी परिचित हैं।
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