शिखा देवपुरा बाहेती जी, जो कि भीलवाड़ा (राजस्थान) से हैं जिनकी रचनाऐं जरूर आप सभी ध्यान से पढियेगा।
जागो महिलाओं..
जागो महिलाओं एकजुट होकर,
अधिकारों की माँग करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
अधिकारों की माँग करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
जागो महिलाओं.....
दकियानूसी रूढ़िवाद के,
परिणामों को हम हैं देख चुके....
पक्षपात और असमानता के,
दंशों को हम हैं झेल चुके...
परिणामों को हम हैं देख चुके....
पक्षपात और असमानता के,
दंशों को हम हैं झेल चुके...
बहकर नई विचारधारा में,
आओ खुद को आबाद करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
आओ खुद को आबाद करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
जागो महिलाओं.....
घर के चूल्हे चौके में,
खुद को था हमने झौंक दिया....
समझौता कर जीने का,
कफ़न था हमने ओढ़ लिया....
खुद को था हमने झौंक दिया....
समझौता कर जीने का,
कफ़न था हमने ओढ़ लिया....
तोड़ गुलामी की जंजीरें,
आओ खुद को आज़ाद करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
आओ खुद को आज़ाद करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
जागो महिलाओं.....
शिक्षा के पथ पर चलकर हम,
आगे को बढ़ते जाएँगे....
सफलता की हर सीढ़ी पर,
परचम अपना फहराएँगे....
स्वर्ण अक्षरों में अंकित हम,
आओ अब अपना नाम करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
आगे को बढ़ते जाएँगे....
सफलता की हर सीढ़ी पर,
परचम अपना फहराएँगे....
स्वर्ण अक्षरों में अंकित हम,
आओ अब अपना नाम करें....
बहुत सह लिया अब न सहेंगे,
मिलकर हम सिंहनाद करें....
जागो महिलाओं.....
गर्व करो खुद के अतीत में नारीयों
नारी शक्ति की बात
नारी मन है एक,
पर तेरे रूप अनेक।
जब तेरी शक्ति पर उठे प्रश्न,
साधारण नारी बन आती धरा पर।।
नारी मन है एक,
पर तेरे रूप अनेक।
जब तेरी शक्ति पर उठे प्रश्न,
साधारण नारी बन आती धरा पर।।
सत्यवान था अल्पायु,
जानकर भी सावित्री ने चुना वर,
छीन लाईं पति के प्राण,यमराज
से सौ पुत्रों का वरदान मांग कर।।
जानकर भी सावित्री ने चुना वर,
छीन लाईं पति के प्राण,यमराज
से सौ पुत्रों का वरदान मांग कर।।
पति का अपमान,
नही किया बर्दाश्त।
शिव की सती थी तुम,
हो गई हवन कुंड मे भस्म।।
नही किया बर्दाश्त।
शिव की सती थी तुम,
हो गई हवन कुंड मे भस्म।।
महलो का सुख त्यागकर,
पति संग गई वनवास।
दूभर कंटक पथ तयकर,
पूर्ण किया चौदह वर्ष का वनवास।।
पति संग गई वनवास।
दूभर कंटक पथ तयकर,
पूर्ण किया चौदह वर्ष का वनवास।।
तुम थी सक्षम,कर सकती
थी रावण को भस्म।
पिता,पति का रखा मान,
पढ़ाया नारी धर्म का पाठ।।
थी रावण को भस्म।
पिता,पति का रखा मान,
पढ़ाया नारी धर्म का पाठ।।
चरित्र पर जब उठे सवाल,
लिया कठोर निर्णय उसी वक्त।
राजधर्म का पाठ पढ़ाकर,
किया वन की ओर गमन।।
लिया कठोर निर्णय उसी वक्त।
राजधर्म का पाठ पढ़ाकर,
किया वन की ओर गमन।।
नही हुआ जब बर्दास्त,
आई सबके सम्मुख।
धरा मे समाकर सिया ने,
दिया सभी को उत्तर।।
आई सबके सम्मुख।
धरा मे समाकर सिया ने,
दिया सभी को उत्तर।।
अद्वितीय सौंदर्य की मल्लिका,
जी सकती थी ऐश्वर्य जीवन।
आन-बान-शान की खातिर,पद्मावती ने
देह कर दिया अग्नि कुंड मे अर्पित।।
जी सकती थी ऐश्वर्य जीवन।
आन-बान-शान की खातिर,पद्मावती ने
देह कर दिया अग्नि कुंड मे अर्पित।।
धाय मां होकर भी,
किया पुत्र बलिदान।
बचाया राजकुल दीपक,
जगाया नारी का स्वाभिमान।।
किया पुत्र बलिदान।
बचाया राजकुल दीपक,
जगाया नारी का स्वाभिमान।।
मेहंदी महाबर ना छूटा अभी,हाड़ी रानी ने
अपना सिर किया धड़ से अलग,
याद कराया पति को फर्ज।
देश की रक्षा सर्वप्रथम,
जब दस्यु ने किया आक्रमण।।
अपना सिर किया धड़ से अलग,
याद कराया पति को फर्ज।
देश की रक्षा सर्वप्रथम,
जब दस्यु ने किया आक्रमण।।
झांसी पर जब आई आंच,
रानी निकली घोड़े पर होकर सवार।
पुत्र को पीठ पर लिया बांध,
गोरो को गाजर मूली सा डाला काट।।
रानी निकली घोड़े पर होकर सवार।
पुत्र को पीठ पर लिया बांध,
गोरो को गाजर मूली सा डाला काट।।
नारी शक्ति की उठे जब बात,
बन जाती तुम देश की मिसाल।
हर क्षेत्र में खड़ी डटकर,
चाहे धरा हो या हो गगन।।
बन जाती तुम देश की मिसाल।
हर क्षेत्र में खड़ी डटकर,
चाहे धरा हो या हो गगन।।
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