नव शक्ति का औषधीय रहस्य | life change medicine in aayurved | usefull medicine in aayurved
शक्ति की आराधना मार्कण्डेय जी द्वारा कुछ समय तल्लीन भाव से की गई,और उनके आंतरिक शोध के बाद शक्ति का साक्षात हुआ,तदुउपरान्त माँ दुर्गा के आशीर्वाद से मार्कण्डेय ऋषि को ब्रम्हा जी से औषधीय तत्वों का ज्ञान प्राप्त हुआ और इस ज्ञान में कुशल होने हेतु उन्होंने निरन्तर अनुसंधान किया,इस गहरे अनुसँधान में उन्होंने पाया कि नव ऐंसी ओषधियाँ हैं,जिसमें सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड की अलग-अलग शक्ति समाहित है,और इन्हीं शक्तियों के आभाव से इस जगत के प्राणीयों को भिन्न-भिन्न रोगों से गुजरना पड़ता है। नव शक्ति का औषधीय रहस्य life change medicine in aayurved ।
माँ दुर्गा जी की आज्ञा व उनकी कृपा प्रसाद से मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति का जन्म हुआ,यह पद्धति जीवन को निरोगी और शांत होना सिखाती है-यह कहती कि जीवन मे इन नव औषधीयों के अंदर छुपे हुए रहस्य को जो ठीक ठीक समझ जाये तो उसका सदैव ही शरीर स्वस्थ होगा ही,इसलिए यह पद्धति कहती है कि जब शांत मन होने लगे तब इस मन को माँ की भक्ति में लीन करना होगा। वैसे तो यह चिकित्सा पद्धति ने हर सूक्ष्म पहलुओं में काम करने की कोशिश की है।
अपनेपन के स्पर्श का जादू मिलेगा,जल्दी करो खिल खिलाती हुई प्रकृति का सानिध्य मिलेगा।
मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति इस लिए अनूठी है,क्योंकि इसका जन्म - ऐंसा भक्त जिसकी भक्ति चरम पर है,ऐंसा साधक जिसकी साधना हर अंदर के पट को खोल चुकी है,एक अनुसन्धानकर्ता जो पूर्ण जीवन भक्ति और औषधीय अनुसन्धान की हर छोटी से छोटी जानकारी को एकत्रित किये हुए है। उसके द्वारा सम्पन्न हुआ है। इतना वेशकीमती औषधीयोँ का रहस्य किसी को प्राप्त हो जाये तो वह इनका सेवन तो करेगा ही।इसी कारण तो नव शक्ति का औषधीय रहस्य का जन्म हुआ।usefull medicion in ayurved।
इसी संदर्भ में मैने भी एक छोटी कोशिश की है कि इस "मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति " के अनुसन्धान से पाठक गण भी लाभान्वित हों तो निश्चित ही ये ओषधीयाँ आपको लाभान्वित कर सकती हैं । आगे इन औषधियों के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तूत किया गया है जो आपके लिए रोचक होने वाला है आइए आगे पढ़ते हैं-
1) प्रथम शक्ति शैलपुत्री
"हरड़"
माँ जैसे पोषण व सुरक्षा प्रदान करने वाली "हरड़" औषधी है।
पहचान (Identifications) :-
गुण (qualities):-
उपयोग :-
चलिए एक प्रयोग कीजिये
आइए जानें बदलाब तब दिलचस्प हो जाता है-जब बदलाब की दिशा सकारात्मक दिशा हो,स्वयं के जीवन को आकर्षक बनाइये,जीवन मे अपनों का साथ पाइए ।
2 द्वितीय ब्रह्मचारिणी
"ब्राह्मी"
पहचान (Identifications) :-
ब्राह्मी के फूल के तीन रंग :-
गुण (qualities):-
उपयोग :-
1)तीव्र बौद्धिक क्षमता-
2)अनिद्रा (नींद न आना) -
एक दिलचस्प विषय शब्दों के रहस्य को जरूर पढ़िये।
3)तृतीय चंद्रघंटा
" चन्दुसूर"
अब होगा मोटापे का नाश यदि होगी यह औषधी "चन्दुसूर" आपके पास।
नवदुर्गा की नव शक्तियों में तीसरी शक्ति के रूप में इस अखिल ब्रम्हाण्ड की शक्ति को "माँ चंद्रघंटा" के नाम से हम जानते हैं। ऋषि मार्कण्डेय के अनुसार यह शक्ति "चन्दुसूर" नामक औषधी में स्थायी रूप से विद्दमान रहती है।
पहचान (Identifications) :-
नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा को औषधीय रूप से विराजमान औषधी को चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है।
गुण (qualities):-
1)चन्दुसूर औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं।
2)जीवनीय शक्ति को बढ़ाने वाली,
3)हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।
अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को माँ चंद्रघंटा की उपासना करना चाहिए।
जल्दी लेख पर पहुंचे :- इस नवरात्री में मां के पास पहुंचने के रहस्य की अनूठी प्रस्तूती - इसे जान लिया तो मन और तन निश्चित ही आराधना में हो जाएंगे संलग्न। आइए शक्ति के साथ हो जाएं,आइए लेख और आप एक हो जाएं ।
4)चतुर्थ कुष्माण्डा
"पेठा/कुम्हड़ा"
नवदुर्गा की नव शक्तियों में चोंथी शक्ति के रूप में इस अखिल ब्रम्हाण्ड की शक्ति को हम "माँ कुष्माण्डा" के नाम से हम जानते हैं। ऋषि मार्कण्डेय के अनुसार यह शक्ति "पेठा" नामक औषधी में स्थायी रूप से विद्दमान रहती है।
पहचान (Identifications) :-
पेठा औषधी को भिन्न-भिन्न नामों से भी जाना जाता है जिसमें से विशेषकर पेठा / कुष्माण्ड / कुम्हड़ा/winter melon / इत्यादि । पेठा का वानस्पतिक नाम : बेनिनकेसा हिस्पिडा (Benincasa hispida),पेठा एक बेल पर लगने वाला फल है, जो सब्जी की तरह खाया जाता है। यह हल्के हरे वर्ण का होता है और बहुत बड़े आकार का हो सकता है। पूरा पकने पर यह सतही बालों को छोड़कर कुछ श्वेत धूल भरी सतह का हो जाता है।
गुण (qualities):-
1)आयुर्वेद में पेठा का गुण बताया गया है कि यह
लघु, स्निग्ध, मधुर, शीतवार्य, बात, पित्त, क्षय, अपस्मार, रक्तपित्त और उनमाद नाशक, बलदायक, मूत्रजनक, निद्राकर, तृष्णाशामक और बीज कृमिनाशक आदि कहा गया है।
2) इसके सभी भाग-फल, रस, बीज, त्वक् पत्र, मूल, डंठल-तैल बनाने में विशेष रूप से उपयोगी होते हैं।
कुष्मांड के फलों के खाद्य अंश के विश्लेषण से प्राप्त आंकड़े इस प्रकार हैं।
आर्द्रता 94.8; प्रोटीन 0.5; वसा (ईथर निष्कर्ष) 0.1; कार्बोहाइड्रेट 4.3; खनिज पदार्थ 0.3;कैल्सियम 0.1; फास्फोरस 0.3% लोहा 0.6 मि.ग्रा./,100 ग्र. विटामिन सी, 18 मिग्रा. या 100 ग्रा.।
उपयोग :-
2)इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है।
3)मानसिकरूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है।
4)यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है।
5) कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है।
इस तरह की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डादेवी की आराधना करना चाहिए।
6)इसके मुरब्बे, पाक, अवलेह, ठंढाई, घृत आदि बनते हैं। इसके फल में जल के अतिरिक्त स्टार्च, क्षार तत्व, प्रोटीन, मायोसीन शर्करा, तिक्त राल आदि रहते हैं।
7)कुम्हड़ा के बीजों का उपयोग खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है।
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5) पंचम स्कंदमाता
"अलसी"
पहचान (Identifications) :-
गुण(qualities):-
सँस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है कि -
"अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।"
कफ,पित्त इत्यादि के रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।
अलसी की तीन उपजातियाँ होतीं हैं-
उपयोग :-
बहुत ज्यादा सेंकने या फ्राई करने से अलसी के औषधीय गुण नष्ट हो सकते हैं और इसका स्वाद बिगड़ सकता है।
6)षष्ठम कात्यायनी
"मोइया"
पहचान (Identifications) :-
उपयोग /गुण/सेवन विधि :-
7)सप्तम कालरात्रि
"नागदौन"
पहचान (Identifications) :-
गुण(qualities):-
उपयोग :-
3)मासिक रक्तस्राव अधिक हो तब भी यह प्रयोग किया जा सकता है| इसके तीन छोटे पत्ते काली मिर्च के साथ पांच दिन तक खा लें या फिर एक चम्मच रस सवेरे खाली पेट लें|
8)अष्टम महागौरी
"तुलसी"
माँ नवदुर्गा की नव शक्तियों में अष्टम शक्ति के रूप में इस अखिल ब्रम्हाण्ड की शक्ति को "माँ महागौरी" के नाम से हम जानते हैं। ऋषि मार्कण्डेय के अनुसार यह शक्ति "तुलसी" नामक औषधी में स्थायी रूप से विद्दमान रहती है।पहचान (Identifications) :-
इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है। इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं।
गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है।
तुलसी के प्रकार -
तुलसी सात प्रकार की होती है-1)सफेद तुलसी,
2) काली तुलसी,
3)मरुता,
4) दवना,
5)कुढेरक,
6)अर्जक
7)षटपत्र।
ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।"
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
तुलसी की प्रजातियाँ पाई जाती हैं-
1) ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
2)ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
3)ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
4) आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
5)ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
6)ऑसीमम सैक्टम
7) ऑसीमम विरिडी।
उपयोग :-
2)ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
3)आयुर्वेद में तो तुलसी को उसके औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया गया है। तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
4)सुंदरता से भरे हुए चेहरे की चमक में उपयोगी होती है "तुलसी" । "तुलसी" त्वचा संबंधी बीमारियों के लिए फायदेमंद है। इसका इस्तेमाल करने से चेहरे पर कील-मुहांसे खत्म हो जाते हैं और चेहरा एकदम साफ हो जाता है।
5)तुलसी सर्दी-जुकाम के साथ बुखार में भी फायदा पहुंचाती है। काली मिर्च और तुलसी को पानी में उबाल कर काढ़ा बनाएं, इसमें मिश्री डालें। हर आधा-आधा घण्टे में 3 से चार बार इसको पीने से बुखार में राहत मिलती है।
6)जुकाम होने पर तुलसी को पानी में उबाल कर भाप लेने से भी फायदा होता है।
7)तुलसी पेट संबंधित परेशानियों में भी लाभ पहुंचाती है। लूज मोशन होने पर तुलसी को जीरे के साथ पीस लें और दिन में तीन से चार बार इस मिश्रण को खाएं। इससे दस्त की समस्या समाप्त होती है।
9)नवम सिद्धिदात्री
"शतावरी"
पहचान (Identifications) :-
यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है।
गुण(qulities):-
शतावरी में विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन बी 6, फोलेट, आयरन, कैल्शियम, फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होते हैं।1)गर्भाशाय में शतावरी के बहुत उपयोगी हैं ।
2)शतावरी किडनी (Kidney Health) के लिए भी फायदेमंद है। शतावरी मूत्र विसर्जनं के समय होने वाली जलन को कम करने का गुण बड़ा ही उपयोगी है।
3)UTI Remedies,के लिए शतावरी अच्छी मानी जाती है।
4) इसके अलावा शतावरी का इस्तेमाल है,Hangover को दूर करने में भी किया जाता है।
5)सतावर का एक ऐंसा गुण है जिससे दर्द कम करने में सहायता मिलती है।
6)महिलाओं में स्तन्य (दूध) की मात्रा बढ़ाने का यह गुण सतावर में अद्भुत है।
7)सतावर के पौधे का एक गुण ऐंसा है जिससे कि कम भूख लगने व अनिद्रा की बीमारी में भी लाभ होता है।
"शतावरी" स्त्रियों के लिए यह एक जबरदस्त टॉनिक माना जाता है।
उपयोग :-
1)बहुत से लोगों को नींद ना आने का रोग होता है। ऐसे लोग 2-4 ग्राम शतावरी चूर्ण को दूध में पका लें। इसमें घी मिलाकर खाने से नींद ना आने की परेशानी खत्म होती है। कहने का मतलब यह है कि शतावर चूर्ण अनिद्रा की बीमारी में बहुत ही लाभकारी हैं।2) बहुत सी स्त्रियों को मां बनने के बाद स्तनों में दूध की कमी का रोग होता है। ऐसी स्थिति में महिलाएं 10 ग्राम शतावरी के जड़ के चूर्ण (shatavari powder) को दूध के साथ सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। इसलिए डिलीवरी के बाद भी शतावरी के फायदे महिलाओं को मिलना उनके सेहत के लिए अच्छा होता है।
3)यदि भोजन ठीक से नहीं पच रहा है, तो निश्चित ही शतावरी का उपयोग (satawar ke fayde)करना लाभ पहुंचाता है। 5 मिली शतावर के जड़ के रस को मधु,और दूध के साथ मिला लें। इसे पिलाने से अपच जैसी परेशानी से शान्ति मिलती है।
4)शतावरी सिर दर्द से भी आराम दिलाता है। शतावर की ताजी जड़ को कूटकर, रस निकाल लें। इसमें रस के बराबर ही तिल का तेल डालकर उबाल लें। इस तेल से सिर पर मालिश करें। इससे सिर दर्द, और अधकपारी (आधासीसी) में आराम मिलता है।
इन सभी रोगों से पीड़ित रोगी यदि चाहे की उसे रोग मुक्त होना है तो उसे शतावरी का उचित अनुपात में सेवन के साथ साथ उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर करने के लिए सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।
आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धती के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए । इस प्रकार प्रत्येक शक्ति के रहस्य में जिन औषधीयों में वे उपस्थित हैं उनको समझ लिया जाए,सेवन विधि और उचित अनुपात में परिचित हो जाये तो निश्चित ही वह लंबे समय तक निरोगी रह सकता है।
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3 टिप्पणियाँ
धन्यवाद आपने बहुत ही उपयोगी जानकारी दिए हो ।,,,,,👌✍️🙏
जवाब देंहटाएंThx.for very useful information
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद।।
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