शरद पूर्णिमा का अनोखा रहस्य
अखिल ब्राम्हण की दसों दिशाओं में 16 कलाओं युक्त चंद्रमा आपके-हमारे मन में शीतलता की गहराइयों में तन्मयता लाते हुए,ऊत्तम स्वास्थ्य और बौद्धिक कौशल,यश , कीर्ति,धनधान्य से परिपूर्ण होकर, यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा समस्त क्लेशों का विध्वंस करते हुए,पूर्णता की परिचायक बनकर सजगता से जीवन कौशल का निर्वाह करने का सन्देश देती है। यूं तो साल में 12 पूर्णिमा तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि अत्यंत ही उपयोगी है। इस दिन ऋषियों ने मानवीय शरीर मे पित्त शांति हेतु स्वास्थ्यवर्धक उपाय भी बताया है।शरद पूर्णिमा का अनोखा रहस्य
विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस दिन धन बैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी जी की पूजन भी की जाती है। इसी प्रकार आगे भी हम इस जीवन वरदायक पूर्णिमा को समझते हैं -
थोड़ा शरद ऋतु के बारे में जानते हैं :-
भाद्रपद एवं अश्विन ये शरद ऋतु के 2 महीने हैं। शरद ऋतु स्वच्छता के बारे में सावधान रहने की ऋतु है, अर्थात इस मौसम में स्वच्छता रखने की खास जरूरत है ।
"रोगणाम शारदीय माता।"
ग्रीष्मकाल में गर्मी के कारण शरीर तप्त होता है। वर्षाकाल में शरीर ठंडक का अभ्यस्त होने लगता है। इन दोनों ऋतु में शरीर में संचित पित्त शरद ऋतु में कुपित हो जाता है।
अब जब पित्त कुपित हो जाता है तो शरीर मे क्या होता है :-
नेत्र रोग, त्वचा संबंधी बीमारियाँ होने की ज्यादा आशंका बनती है। शरीर को सूखा रखें,पेट मे गैस बनना ,शरीर में जलन,आंखों की लालिमा,ह्रदय,पेट मे जलन,गर्मी ज्यादा लगना, त्वचा गर्म रहना,फोड़े फुंसी निकलना,मल-मूत्र व नेत्र पीला होना,कंठ सूखना व कंठ में जलन होना,मुंह का स्वाद कड़वा या खट्टा होना, खट्टी डकारें,उल्टी जैसा अनुभवः होना,पतले दस्त होना, थोड़ी सी मेहनत में पसीना निकलना। और भी अनेक रोग होते हैं।
पढ़िये,समझिए,और सम्पूर्ण मनोयोग से मनाए गणेश उत्सव
क्योंकि गणेश उत्सव ,विवेक का उद्भव है।
इस प्रकुपित पित्त के शांति के लिए उपाय
तीन रस का सेवन
1) मधुर(मीठा)
2)तिक्त(चटपटे)
3)कसाय(कसैला)
पित्त शांति के लिए मनिषियों की खाद्य पदार्थ योजना
1)दूध-चावल खीर का सेवन,(जो कि शीतल और सात्विक है।)
2)घी का हलवा
3) गुड़ एवं घुघरी सेवन (उबाली हुई ज्वार- बाजरा आदि)
4)निर्मल,स्वच्छ वस्त्र पहनकर, रात्री में सुगन्धित फूलों की सुगंध लेना ।
5)कपूर चंदन द्वारा पूजन मन शांत होकर पित्त दोष का समन इत्यादि
6),केवड़े का शर्बत
7)नीबू की शिकंजी
8)सब्जियों का सूप
जाने कौंन से फलों के सेवन से भी पित्त शांत होता है।
1)हरा आंवला
2)केला
3)तरबूज
4)पानी वाला नारियल
5)शहतूत
6)सेब
7)आलू बुखारा
मेवा के सेवन से भी पित्त शांत होता है जिसमे
1)मेवा
2)गुलकंद
3)पेठा
4)अंजीर
5)मुन्नका प्रमुख हैं।
ऋषियों द्वारा अत्यंत ही आवश्यक नियम
इस शरद पूर्णिमा में ऋषियों ने मंत्रणा की ,ध्यान की गहराई पर जाकर पाया कि इस ऋतु में मानव यदि :-
1)चन्द्र विहार करें(रात्री भृमण)
2)गरबा नृत्य
3)रात्री जागरण
4)रात्री भजन,कीर्तन,(भगवान श्री कृष्ण जी के अनुसार रासलीला इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं)
5)रात्री खुले आकाश के नीचे ध्यान
6)रात्री खुले आकाश के नीचे सत्संग
7)चन्द्र त्राटक
जल्दी लेख पर पहुंचे :- इस नवरात्री में मां के पास पहुंचने के रहस्य की अनूठी प्रस्तूती - इसे जान लिया तो मन और तन निश्चित ही आराधना में हो जाएंगे संलग्न। आइए शक्ति के साथ हो जाएं,आइए लेख और आप एक हो जाएं ।
आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा में
बेसब्री से वर्तमान के आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।
शरद पूर्णिमा में मानवीय स्वाथ्य को ध्यान में रखकर,ऋषियों का विशेष आयोजन :-
विशेष खीर निर्माण :-
विधि :- सर्वप्रथम आप दूध और खीर बनाते समय घर में लोहे का पात्र उपयोग मेँ लें। चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो,चलन में जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्व भी उसमें आ जायेगा ।
अब लोहे की कढ़ाई में रखे दूध को गर्म कर लें और फिर उसमें चावल डालकर उबालें। इस तरह यदि आपका खीर निर्माण पूर्ण हो जाये तब खीर को एक अन्य पात्र में अलग रख लें।
ठीक रात्रि ८ बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर ११ बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसाद रूप में खा लेनी चाहिए । लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम सेवन कीजिए और फिर उसे थाली में पानी भरकर ऊपर खीर भरी गंजी रखिये। सुबह गर्म करके सेवन कर सकते हैं ।
अत्यंत ही इस पूर्णिमा में उपयोगी हैं पंचश्वेत, जो कभी खीर को बासी नहीं होने देते और यदि खीर को सुरक्षित रुप से रखा जाए तो यही खीर आप दूसरे दिन भी खा सकते हैं । अर्थात खीर निर्णाण में ये हैं,पंचश्वेत :- दूध, चावल,मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी।
इस तरह से निर्मित खीर सारे तरह के रोग का नाश करती हैं।
ज्योतिष के अनुसार शरद पूर्णिमा में
एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला नक्षत्र आश्विन है,आश्विन नक्षत्र की हमेशा से ही पूर्णिमा आरोग्य प्रदान करती है।
केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा के सुअवसर पर अमृत बरसता है।
अब इस खीर निर्माण में वैज्ञानिकों के मत
वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
शरद पूर्णिमा के दिन अपनी क्षमता बढाएं :-
1)कुछ दिन पहले से एक प्रयोग करना चालू कर सकते हैं कि जैसे ही चाँद निकले उसी के प्रकाश में सुई में धागा डालने का अभ्यास कीजिये,और यह अभ्यास शरद पूर्णिमा की रात्री के सुअवसर तक जरूर ही करें, इस अभ्यास को करने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
2)शरद पूर्णिमा में विशेष रूप से शांति से आसन बिछाकर प्रार्थना के भाव मे डूबकर चन्द्रमा के सामने अपलक टक टाकी लगाकर 15 से 20 minut देखें।(चंद्रमा का त्राटक)इस प्रयोग का प्रारम्भ पूर्णिमा के 7 दिन पहले से ही हो जाता है।
3) शरद पूर्णिमा के कुछ दिन पहले से ही थोड़ी-थोड़ी देर चन्द्रमा के नीचे बैठें या चांद की अनूठी रोशनी में मधुर मुस्कान लिए घूमे,नाचें,गायें,महसूस करें उसकी शीतलता को शरीर मे आने दें।
वेदों के अनुसार :-
चंद्रमा को वेदों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधियों का स्वामी कहा गया है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है सोम से औषधियों की उत्पत्ति हुई,और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।
अन्य पुराणों के अनुसार
पौराणिक कथानुसार एक समय ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दिया था, जिससे चंद्रमा का अमृत सूखने लगा तब चंद्रमा ने अपनी तपस्या से भगवान् शिव को प्रसन्न कर, फिर से अमृत प्राप्त किया और वह शरद पूर्णिमा की ही शुभ तिथि थी।
जिस दिन भगवान् शिव ने चंद्रदेव को सोम अर्थात अमृत प्रदान किया था।भगवान् शिव की इसी लीला और कृपा के कारण उन्हें "सोमनाथ" कहा जाता है,और चन्द्र-देव पर हुई इस महान कृपा के स्मरण में ही प्रथम ज्योतिर्लिंग की स्थापना "सोमनाथ" के नाम से हुई ।
शरद पूर्णिमा है महारास पूर्णिमा जाने कैसे :-
श्री कृष्ण ने महारास पूर्णिमा घटित होने से पहले जब सभी गोपियों को निमंत्रित करने के उद्देश्य से अपनी बंसी में क्लीं नामक बीज मंत्र फूंक कर जैसे ही बजाई तो अपनी सूद भूल कर छोटी, बड़ी, युवा, सभी गोपियाँ सब काम छोड़ कर,इसी रात्री के क्षण में जब शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ दिखाई देता है इस तिथि में श्रीकृष्ण के पास रात्री में यमुना तट पर चली आईं । फिर कथा कहती है कि जितनी गोपिया श्रीकृष्ण से मिलने आई, उतने ही रूप श्री कृष्ण ने धारण किए और सभी गोपियों के साथ अद्भुत रास घटित हुआ ।
वृन्दावन स्थित निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं जोड़ों में,निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं और ये सामान्य तुलसी के पौधों जैसे नहीं हैं। अत्यंत आश्चर्य की बात यह है कि तुलसी के इन पेड़ों की शाखाएं जमीन की ओर आती हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां तुलसी के पेड़ जोड़ों में हैं। मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण निधिवन में गोपियों संग रास रचाते हैं तो ये सभी पेड़ गोपियां बन जाती हैं और सुबह होते ही फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं।
निधिवन में ऐसी मान्यता है कि यहां रोज रात को राधा-कृष्ण आते हैं। वृन्दावन स्थित निधिवन के रंग महल में राधा और श्रीकृष्ण के चंदन के पलंग को शाम सात बजे से पहले सजा दिया जाता है। और पलंग के पास में एक लोटा पानी, राधा जी के श्रृंगार का सामान, दातुन, पान रख दिया जाता है। सुबह बिस्तर अस्त-व्यस्त मिलता हैं और लोटा खाली मिलता है। वहां पर उपयोग की हुई दातुन भी दिखाई देती है। पान भी खाया हुआ मिलता है। माना जाता है कि इन सभी चीजों का उपयोग श्रीकृष्ण और राधा रानी करते हैं।
जरूर पढ़िये जीवन के विकास की सबसे बड़ी बाधा क्या है जानिये,क्योंकि सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग।
शरद पूर्णिमा में रावण की साधना का रहस्य :-
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करते थे । इस प्रक्रिया से उनको हमेशा पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को अत्यंत ही गहरी ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
इस लिए शरद पूर्णिमा, जीव मात्र के लिए तन मन की सर्वांगीण प्रक्रति को साध कर मंगल फलदायी होती है,इस अनूठे रहस्य को हाथ से न जाने दें,निश्चित ही इस रहस्य के प्राप्त होते ही आपको सफलता जरूर मिलेगी ही।
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