मैत्री का रहस्य |How about friendliness

मैत्री का रहस्य |  How are you friendliness | क्या है मैत्री ?? | मित्रत्व की शक्ति | Why friendship breaks |

                 मैत्री का रहस्य बहुत गहरा है। जीवन में अनमोल सुअवसर है जब मैत्री घटित होती है,मैत्री का अर्थ है सक्रिय करुणा जो सदैव ही स्थिर रहती है,जो किसी भी झंझावात से डग मग न होकर, हमेशा स्थिर होती है। आपने कभी न कभी अपने जीवन के कीमती भाव करुणा को जाना होगा,यह करुणा बड़ी महवपूर्ण है,जब भी कभी इस जीवन मे करुणा सक्रिय हो जाती है तो मैत्री का रूप बन जाती है।The secret of friendliness is very deep.

मैत्री का रहस्य |How about friendliness

मैत्री और मित्रता में बहुत अंतर

               हमको लगता है कि मैत्री और मित्रता एक ही हैं,लेकिन मैत्री का अर्थ मित्रता नहीं है,वरन मैत्री का अर्थ है मित्रत्व। और इस मित्रता तथा मैत्री की गहराई में बहुत अंतर है।

             हमेशा ध्यान रहे कि - मित्रता जब तक रहेगी तब तक शत्रुता भी रहेगी। जिनके कोई मित्र होते हैं उनके निश्चित ही शत्रु भी होते ही हैं। so what is friendliness?? मैत्री का मतलब है शत्रुता का भाव अब समाप्त हो गया। अब तो किसी से कोई शत्रुता शेष न रही। मित्रता में शत्रुता का सूक्ष्म अनुभव हमेशा रहेगा, मैत्री में शत्रुता तिरोहित हो गई। यह बहुत खास बात है कि अब कोई शत्रुता का सवाल ही न रहा। जो मित्र बनाता है वह शत्रु भी बना लेगा,लेकिन जो मैत्री भाव को जगाता है उसका कोई शत्रु नहीं रह जाता। मित्रता में अनिवार्यतः मित्र का गुण और उसकी योग्यता महत्वपूर्ण होते ही हैं। मैत्री भाव में गुणों की, योग्यता की कोई अपेक्षा नहीं होती। Because diffrent between friendship and Friendliness is very deep.

क्रपया ध्यान से समझें मैत्री को

           इसे हम ऐंसे समझें कि मैं अगर आपसे मित्रता करूं तो मेरे लिए,आपकी  योग्यता, आपके गुण महत्वपूर्ण हों जाएंगे, हर समय उनको देख कर हमारी मित्रता बनी रहेगी।जैसे ही वे गुण मिटे तो वैसे ही शत्रुता द्वार पर बैठी है ,वह घट ही जाएगी।

लेकिन मैत्री ऐंसी है कि आपने देखा होगा जैसे जंगल में फूल खिलता है,जब कोई भी नहीं गुजरता,तब भी वह खुशबू बिखेरता है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कोई जानता है या नहीं, यह उसका गुण खुशबू फैलाने का है तो वह खुशबू फैलाकर रहेगा ही।This is friendliness

जरूर पढ़िये:- अब बच्चों को प्रकृति के साथ नए रस ले लेने दें।उसी रस में में रहकर शिक्षा का अनूठा प्रबन्ध कीजिये।प्रकृती सबसे अच्छी शिक्षक है ।

मैत्री का प्रकृति में असीम फैलाव है :-

              आप जानते ही होंगे कि मित्रता का संबंध एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य के बीच ही बन सकता है या अधिक से अधिक मनुष्य और जानवर इत्यादि। लेकिन मैत्री चट्टान के साथ,नदी के साथ,पहाड़ के साथ,झीलों से,भूमि से ,बादल के साथ, दूर के तारों के साथ ज्यादा क्या लिखूं इतना लिख देती हूं कि अखिल ब्रम्हाण्ड से भी हो सकती है। Friendship is not dependent on anyone.

स्मरण रहे कि मैत्री असीम है क्योंकि यह दूसरों पर निर्भर बिल्कुल भी नहीं है, यह पूरी तरह से आपकी अपनी पूर्ण खिलावट है।

यह भी पढ़िये अब निराश होना समाप्त ही होगा कैसे??जानने के लिए मन को एकाग्र कीजिये जरूर पढ़िये ।

मित्रता हमेशा किसी पर निर्भर है मैत्री नहीं

            सच लिखूं तो मैत्री हमेशा आप पर निर्भर है, मित्रता दूसरे पर निर्भर है। मैत्री का भाव आप पर,मुझ पर निर्भर है,अर्थात मैत्री का भाव स्वयं पर निर्भय है। दूसरे से उसका कोई संबंध नहीं। मैत्री मेरी-आपकी अंतर्भाव की दशा है, इसलिए यदि सारगर्भित रूप मैत्री का देखा जाये तो वह होगा "मित्रत्व"।

इसे भी पढ़िये एक रहस्य खुलने वाला है जरूर देखिए - हो जाइए तैयार अब संकल्प कभी भी विकल्प न हो सकेगा,अब आपका संकल्प हमेशा आपके साथ होगा,कैसे??

मैत्री को एक संक्षिप्त कहानी से समझते हैं।

              एक समय की बात है जब किसी व्यक्ति ने गौतम बुद्ध से पूछा कि, मुझे बताएं कि क्या बुद्धपुरुष के भी मित्र कोई हो सकते हैं? गौतम बुद्ध ने ऊत्तर दिया :- नहीं। 

              नहीं यह शब्द सुनकर प्रश्नकरने वाला व्यक्ति एक दम अचंभित ही रह गया, क्योंकि प्रश्नकरने वाला व्यक्ति यह सोच रहा था कि जो व्यक्ति अब स्वयं बुद्ध हो चुका है। उसके लिए सारा संसार मित्र होना चाहिए। गहन शोध यदि हम करें बुद्ध के इस "नहीं"पर , तो पता चल ही जायेगा कि  वे बिल्कुल सही हैं।

मेरे विचार से गौतम बुद्ध बिलकुल सही कह रहे हैं। 

                यह बड़ी गहरी बात है जिसे हमेशा स्मरण में रखनी चाहिए कि - जब बुद्ध कह रहे हैं कि अध्यात्म के शिखर में पहुंचे व्यक्ति के कोई मित्र नहीं होते,तब वे कह रहे हैं कि उनका कोई मित्र नहीं होता, क्योंकि उनका कोई शत्रु भी नहीं होता। क्योंकि मित्रता और शत्रूता दोनों एक साथ आती हैं। हां,वे मैत्री रख सकते हैं, पर मित्रता नहीं। Why hostility even after friendship.

यही बात कभी न कभी किसी न किसी के जीवन मे घटित होती है कि जो हमारे मित्र रहते हैं,वे कुछ समय के बाद शत्रू से भी बढ़कर हो जाते हैं,और जो शत्रू रहते हैं वे कभी न कभी जाने-अनजाने मित्र हो जाते हैं।

मैत्री में प्रकृति के सम्पूर्ण हिस्से शामिल हो जाते हैं 

                निश्चित ही मैत्री ऐसा प्रेम है,जो किसी अन्य से संबंधित या किसी अन्य को संबोधित नहीं है। न ही यह किसी तरह का लिखित या अलिखित समझौता है, न ही किसी व्यक्ति का व्यक्ति विशेष के प्रति प्रेम  है। यह व्यक्ति का समस्त ब्रम्हाण्ड के प्रति प्रेम है, जिसमें मनुष्य केवल छोटा सा हिस्सा है, क्योंकि इसमें पेड़ भी सम्मिलित हैं, इसमें पशु भी सम्मिलित हैं,नदियां भी सम्मिलित हैं, पहाड़ भी सम्मिलित हैं और तारे भी सम्मिलित हैं,हमेशा ध्यान दीजिये कि- मैत्री में प्रत्येक चीज सम्मिलित है।

               यहां तक कि यह मैत्री आपके स्वयं के सच्चे और प्रामाणिक होने का सर्वोत्तम तरीका है। आपके अंदर से मैत्री की ऊर्जा निकल के फैलने लगती हैं। यह अपने से होता है, इसको लाने के लिए कभी भी कुछ करना नहीं पड़ता।बस जो कोई भी आपके संपर्क में आता है, वह इस मैत्री को गहरा अनुभव कर ही लेता है। 

              परंतु इसका मतलब यह नहीं कि आपके कोई शत्रु नहीं होंगे,जरूर होंगे।लेकिन जहां तक आपका संबंध है,आप किसी के भी शत्रु नहीं होते, क्योंकि अब आप किसी  के  मित्र भी नहीं हो। आपका शिखर,आपका उल्ल्लास,आपका जागरण,आपका आनंद, आपका मौन बहुतों को परेशान करेगा और बहुतों में जलन पैदा करेगा, यह सब होगा, और यह सब बिना आपको समझे होगा। 

 क्या आप जानते हैं शत्रू होने का कारण ?? 

            वास्तव में अध्यात्म में शिखर पर पहुंचे पुरुष-बुद्ध, महावीर,श्रीकृष्ण,रामकृष्ण परमहंस,नानक इत्यादि के शत्रु ज्यादा होते हैं बजाय अज्ञानी के। एकदम साधारण लोगों के कुछ ही शत्रु होते हैं और कुछ ही मित्र। पर इसके विपरीत लगभग सारा विश्व ही इन सभी बुद्धपुरुष के विरोध में दिखाई देता है, क्योंकि अंधे लोग किसी आंख वाले को क्षमा नहीं कर सकते। और अज्ञानी उसे माफ नहीं कर सकते जो ज्ञानी हैं। वे उस आदमी से प्रेम नहीं कर सकते जो आत्यंतिक कृतार्थता को उपलब्ध हो गया है क्योंकि उनके अहं को चोट लगती है। की ये लोग कैसे सही हैं,और में कैसे गलत हो जाऊं,बस यही चलता रहता है इन अज्ञानियों के मन मे। इसलिए इनके मध्य तटस्थता रूपी मैत्री घटित नहीं होती।

          मैत्री केवल तब ही संभव बन सकती है जब आप वास्तविक और प्रामाणिक होते हो और जब आप स्वयं के प्रति पूर्ण रूप से सजग होते हो। और इस सजगता में से यदि प्रेम आता है तो वह मैत्री है। और यह जो मैत्री है वह कभी भी विपरीत हो ही नहीं सकती। 

ध्यान रहे, यह कसौटी है, जीवन के श्रेष्ठतम मूल्य की, केवल ये ही श्रेष्ठतम मूल्य हैं जो विपरीत में नहीं बदलते। सच तो यह है कि यहां कुछ भी विपरीत नहीं है।

इसलिए जीवन में अत्यंत ही अनिवार्य है,मैत्री। जिससे जीवन मे तटस्थता होगी,यही खास बात है कि जीवन मे यदि असीम आनन्द को प्राप्त करना है तो अनिवार्य सूत्र है "मैत्री"

नोट :- अगर आपको मैत्री का रहस्य |How about friendliness  लेख पसंद आया है तो इसे शेयर करना ना भूलें और मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे Whatsup group में join हो सकते हैं और मेंरे Facebook page को like  जरूर करें।आप हमसे Free Email Subscribe के द्वारा भी जुड़ सकते हैं। अब आप  instagram में भी आप follow कर सकते हैं ।


लेख पढ़ने के बाद अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें।नीचे कमेंट जरूर कीजिये, आपका विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण है।

एक टिप्पणी भेजें

5 टिप्पणियाँ

  1. जय जय सियाराम जी। बहुत ही सारगर्भित आलेख लिखा है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद जो आपने अपने जीवन का best समय इस website में दिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर बात बताई आपने जीवन की सच्चाई औऱ दोस्त दुश्मन की हकीकत क्या होती हैं बहुत ही रोचक जानकारी प्राप्त हुई
    जय श्री राम🚩🚩

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्ट व्याख्या परिभाषा धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह बहुत ही अर्थपूर्ण और गहरी बात बताइए आपने मैत्री के बारे में बहुत-बहुत बधाई हो आपको

    जवाब देंहटाएं