किरण शर्मा जी, महाराष्ट्र से हैं जिनकी काव्यात्मक योग्यता का आइये हम रसास्वादन करें।
हमारी ललकार हैं
उठो भाइयों उठो
हर राखी के रिश्ते को तुम अपना फर्ज निभाओ,अपनी बहनों के संग संग,
हम बहनों की तुम लाज बचाओ।घर-घर में हम हैं सिमटे,बँधे रस्म रिवाजों से,आकर इन जंजीरों से तुम हमें मुक्त कर जाओउठो भाइयों उठो।
नारी के बिना सारा जग एक खाली संसार हैं,
फिर क्यों नारी का शोषण नारी की अस्तित्व
को लुटता सारा बाजार हैं।
उठो भाइयों उठो---
ममता की मूरत,
इंसान के भेष में भेड़ियों को कहाँ
दिखती हैं हम बहनों की सूरत--
बन जाना है,राख एक दिन
इंसान ना समझ पाता हैं।
सब छोड़ इस दुनियां में
कर्म साथ ले जाना हैं।
उठो भाइयों उठो--
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