राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,my national religion my love

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही' (बस्ती उ. प्र.) जी राष्ट्र धर्म को सम्बोधित करते हुए आइये जानते हैं।

            राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,

राष्ट्रधर्म  है  जो भी अपना, 
हँसकर उसे निभायेंगे।
पड़ी जरूरत यदि मिट्टी को, 
अपना शीश चढ़ायेंगे।।
राष्ट्रधर्म,धर्म,स्वधर्म,देश का धर्म,मानव धर्म,देश की माटी माधुरी बाजपेयी www.madhurubajpai.com

करनी  होगी कोशिश ऐसी, 
जिससे जग में मान बढ़े। 
और देखकर जनमानस में, 
वह करने का ज्ञान बढ़े।। 
भार युवा पीढ़ी पर इसका, 
तत्पर  इसे  उठायेंगे। 
राष्ट्रधर्म  है  जो भी अपना, 
हँसकर उसे निभायेंगे।। 

दौर आज है तकनीकी का, 
इसमें अनुसंधान करें। 
क्षमता के अनुरूप काम हो, 
गुरुता कर्म प्रदान करें।। 
देख  रहा  है  स्वप्न देश जो, 
उसको सत्य करायेंगे। 
राष्ट्रधर्म  है  जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।। 


नहीं भावना क्षुद्र कहीं इक, 
मन को बेधिल कर पाये। 
भारत माँ के लाल सभी ही, 
भारत माँ की जय गाये।। 
समझ  रहे जो नहीं महत्ता,
उनको मिल समझायेंगे। 
राष्ट्रधर्म  है  जो भी अपना,
हँसकर  उसे निभायेंगे।। 


दुश्मन का साहस ही कहाँ है,
नजर उठा करके ताके।
उत्कंठित  रक्षक सीमा पर,
हाथ लिए अपने टाँके।।
वह वीरों की वंशज है यह, 
दुनियां को दिखलायेंगे। 
राष्ट्रधर्म  है  जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।। 


राष्ट्रधर्म  है  जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे। 
पड़ी जरूरत यदि मिट्टी को, 
अपना शीश चढ़ायेंगे।। 

नोट :- अगर आपको यह कविता पसंद आयी है तो इसे शेयर करना ना भूलें और मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे Whatsup group में join हो और मेंरे Facebook page को like  जरूर करें।आप हमसे Free Email Subscribe के द्वारा भी जुड़ सकते हैं। अब आप  instagram में भी  follow कर सकते हैं ।

कविता पढ़ने के बाद अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें। नीचे कमेंट जरूर कीजिये, आपका विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ