डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही' (बस्ती उ. प्र.) जी राष्ट्र धर्म को सम्बोधित करते हुए आइये जानते हैं।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।
पड़ी जरूरत यदि मिट्टी को,
अपना शीश चढ़ायेंगे।।
हँसकर उसे निभायेंगे।
पड़ी जरूरत यदि मिट्टी को,
अपना शीश चढ़ायेंगे।।
करनी होगी कोशिश ऐसी,
जिससे जग में मान बढ़े।
और देखकर जनमानस में,
वह करने का ज्ञान बढ़े।।
भार युवा पीढ़ी पर इसका,
तत्पर इसे उठायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
जिससे जग में मान बढ़े।
और देखकर जनमानस में,
वह करने का ज्ञान बढ़े।।
भार युवा पीढ़ी पर इसका,
तत्पर इसे उठायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
दौर आज है तकनीकी का,
इसमें अनुसंधान करें।
क्षमता के अनुरूप काम हो,
गुरुता कर्म प्रदान करें।।
देख रहा है स्वप्न देश जो,
उसको सत्य करायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
नहीं भावना क्षुद्र कहीं इक,
मन को बेधिल कर पाये।
भारत माँ के लाल सभी ही,
भारत माँ की जय गाये।।
समझ रहे जो नहीं महत्ता,
उनको मिल समझायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
मन को बेधिल कर पाये।
भारत माँ के लाल सभी ही,
भारत माँ की जय गाये।।
समझ रहे जो नहीं महत्ता,
उनको मिल समझायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
दुश्मन का साहस ही कहाँ है,
नजर उठा करके ताके।
उत्कंठित रक्षक सीमा पर,
हाथ लिए अपने टाँके।।
वह वीरों की वंशज है यह,
दुनियां को दिखलायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
नजर उठा करके ताके।
उत्कंठित रक्षक सीमा पर,
हाथ लिए अपने टाँके।।
वह वीरों की वंशज है यह,
दुनियां को दिखलायेंगे।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।।
राष्ट्रधर्म है जो भी अपना,
हँसकर उसे निभायेंगे।
पड़ी जरूरत यदि मिट्टी को,
अपना शीश चढ़ायेंगे।।
हँसकर उसे निभायेंगे।
पड़ी जरूरत यदि मिट्टी को,
अपना शीश चढ़ायेंगे।।
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