बेटियां
आज मन हुआ कि उन भाग्यशाली पिता और मां को शुभकामनाएं दी जाए जिन्होंने कम से कम एक बेटी को दो कुल की रक्षा के लिए जन्म दिया ।
आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
*रक्षा बँधन भईया दूज* का त्योहार नहीं होता
रह जाते है वो घर सूने आँगन बन कर
जिस घर मे *बेटियों* का *अवतार* नहीं होता
*राखी* बाँधने के लिए *बहन* चाहिये
*कहानी* सुनाने के लिए *दादी* चाहिये
*ज़िद* पूरी करने के लिए *मौसी* चाहिए
*खीर* खिलाने के लिए *मामी* चाहये
*साथ* निभाने के लिए *पत्नी* चाहिये
पर यह सभी रिश्ते निभाने के लिए
बेटियां तो जिन्दा रहनी चाहये।
उसे कहते हैं बेटियां ।।
उसे कहते हैं बेटियां ।।
उसे कहते हैं बेटियां 👧 ।।
उसे कहते हैं बेटियां ।।
उसे कहते हैं बेटियां ।।
उसे कहते हैं बेटियां ।।
उसे कहते हैं बेटियां 👧👧👧 ।।
राह देखता तेरी बेटी, जल्दी से तू आना,
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,
ना चाहूं मैं धन और वैभव, बस चाहूं मैं तुझको
तू ही लक्ष्मी, तू ही शारदा, मिल जाएगी मुझको,
सारी दुनिया है एक गुलशन, तू इसको महकाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,
बन कर रहना तू गुड़िया सी, थोड़ा सा इठलाना,
ठुमक-ठुमक कर चलना घर में, पैंजनिया खनकाना
चेहरा देख के तू शीशे में, कभी-कभी शरमाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना
उंगली पकड कर चलना मेरी, कांधे पर चढ़ जाना
आंचल में छुप जाना मां के, उसका दिल बहलाना
जनम-जनम से रही ये इच्छा, बेटी तुझको पाना
Poem on Daughter on1
“बेटियां बेटियां बेटियां ..”
लडकें की तरह लड़की भी, मुट्ठी बांध के पैदा होती हैं।
लडकें की तरह लड़की भी, माँ की गोद में हसती रोती हैं।।करते शैतानियाँ दोनों एक जैसी।
करते मनमानियां दोनों एक जैसी।।दादा की छड़ी दादी का चश्मा तोड़ते हैं।
दुल्हन के जैसे माँ का आँचल ओढ़ते हैं।।भूक लगे तो रोते हैं, लोरी सुन कर सोते हैं।
आती हैं दोनों की जवानी, बनती हैं दोनों की कहानी।।दोनों कदम मिलकर चलते हैं।
दोनों दिपक बनकर जलते हैं।।लड़के की तरह लड़की भी नाम रोशन करती हैं।
कुछ भी नहीं अंतर फिर क्यूँ जन्म से पहले मारी जाती हैं।।बेटियां बेटियां बेटियां ..
बेटियां बेटियां बेटियां ..
Poem on Daughter on 2
“मेरी लाडो”
फूलों सी नाज़ुक, चाँद सी उजली मेरी गुड़िया।
मेरी तो अपनी एक बस, यही प्यारी सी दुनिया।।
सरगम से लहक उठता मेरा आंगन।
चलने से उसके, जब बजती पायलिया।।
जल तरंग सी छिड़ जाती है।
जब तुतलाती बोले, मेरी गुड़िया।।
गद -गद दिल मेरा हो जाये।
बाबा -बाबा कहकर, लिपटे जब गुड़िया।।
कभी घोड़ा मुझे बनाकर, खुद सवारी करती गुड़िया।
बड़ी भली सी लगती है, जब मिट्टी में सनती गुड़िया।।
दफ्तर से जब लौटकर आऊं।
दौड़कर पानी लाती गुड़िया।।
कभी जो मैं, उसकी माँ से लड़ जाऊं।
खूब डांटती नन्ही सी गुड़िया।।
फिर दोनों में सुलह कराती।
प्यारी -प्यारी बातों से गुड़िया।।
मेरी तो वो कमजोरी है, मेरी सांसो की डोरी है।
प्यारी नन्ही सी मेरी गुड़िया।।
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