में पुरुष हूँ | man in life

 मै "पुरूष" हूँ

में पुरुष हूँ | man in life


मै भी घुटता हूँ, पीसता हूँ 
टूटता हूँ, बिखरता हूँ 
भीतर ही भीतर 
रो नही पाता 
कह नही पाता 
पत्थर हो चुका 
तरस जाता हूँ पिघलने को 
क्योंकि मै पुरूष हूँ।


मै भी सताया जता हूँ 
जला दिया जाता हूँ 
उस दहेज की आग मे 
जो कभी मांगा ही नही था 
स्वाहा कर दिया जाता है।
मेरे उस मान सम्मान का 
तिनका - तिनका 
कमाया था,जिसे मैंने 
मगर आह नही भर सकता 
क्योंकि मै पुरूष हूँ।


मै भी देता हूँ आहूति 
विवाह की अग्नि मे 
अपने रिश्तो की 
हमेशा धकेल दिया जाता हूँ 
रिश्तो का वजन बाध कर 
जिम्मेदारियो के उस कुए मे 
जिसे भरा नही जा सकता 
मेरे अंत तक कभी 
कभी अपना दर्द बता नही सकता 
किसी भी तरह जता नही सकता 
बहुत मजबूत होने का 
ठप्पा लगाए जीता हूँ 
क्योंकि मै पुरूष हूँ।

हां-हां..मुझ पर भी होता है अत्याचार
उठा दिए जाते हैं 
मुझ पर कई हाथ 
बिना बजह जाने 
बिना बात की तह नापे 
लगा दिया जाता है 
सलाखो के पीछे 
कई धाराओ मे
क्योंकि
मै "पुरूष" हूँ ।

सुना है जब मन भरता है 
तब आंखो से बहता है 
मर्द होकर रोता है 
मर्द को दर्द कब होता है 
टूट जाता है तब मन से 
आंखो का वो रिश्ता
तब हर कोई कहता है।
तो सुनो...
सही गलत को 
हर स्त्री स्वेत स्वर्ण नही होती 
न ही हर पुरुष स्वाह खालिस 
मुझे सही गलत कहने वालो 
पहले मेरी हालत नही जांचते।
 क्योंकि...
मै "पुरूष" हूँ।।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ