देवी अन्नपूर्णा को जानें | devi annapurna | देवी अन्नपूर्णा | annapurna story in hindi

देवी अन्नपूर्णा को जानें | devi annapurna | annapurna story in hindi
                  देवी अन्नपूर्णा की लीला अपरम्पार 

 

आइये देवी अन्नपूर्णा को जानें


   धन व्रद्धि की बात हो  


        या कैसे रहे,भंडार हमेशा भरा??,इसको जानें


मान सम्मान की चाह हो, 


या विवाह के बाद नया जीवन


        किसी भी पीड़ा को दूर करने का मूल जाने,


आइये देवी अन्नपूर्णा को जानें।।


सादर समर्पित हों देवी अन्नपूर्णा पर


         आइये देवी अन्नपूर्णा पर गहरी श्रद्धा को जाने।


कैसे हुआ देवी अन्नपूर्णा का मन्दिर निर्माण


      किसने किया मंदिर का निर्माण  


व किस शैली में हुआ इसको भी जाने,


        किसको खिलाया देवी अन्नपूर्णा ने ग्रहणी बन भोजन , इसको भी जाने,


आइये देवी अन्नपूर्णा को जानें।।


(Jay devi annapurna)

 देवी अन्नपूर्णा का जन्म

     वाराणसी में स्थित काशी का विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को, और अन्नपूर्णा देवी मंदिर माँ अन्नपूर्णा देवी को समर्पित हैं । सम्पूर्ण विश्व मे अक्षय तृतीया का वह दिन अद्भुत होता है। जिस समय हम सभी को धन,धान्य से भर देने वाली देवी अन्नपूर्णा का जन्म हुआ ऐसे सुअवसर को अन्नपूर्णा जन्मोत्सव के रूप में ,हम सभी मनाते हैं।

    इसलिए यह दिन सोने के आभूषण खरीदने के लिए अत्यंत ही शुभ माना जाता है। जिससे जीवन मे सोने का ठहराव बना रहता है।

क्या आप जानते हैं कि (devi annapurna) माँ अन्नपूर्णा जी के साक्ष्य अभी वर्तमान में हैं :-

    मार्कण्डेय जी की देवी भागवत है, जिसे तीसरी से चोंथी शताब्दी में लिखा गया है, जिसमें कांचीपुरम की देवी के रूप में माता अन्नपूर्णा को और वाराणसी की देवी को विशालाक्षी के रूप दर्शाया गया है। 

देवी अन्नपूर्णा(devi annapurna)ने ग्रहणी के रूप में कराया भोजन :-

   18 पुराणों में शामिल स्कन्दपुराण  को सातवीं  शताब्दी में लिखा गया था, जिसमे कहा गया है, कि ऋषि व्यास एक श्राप के कारण वाराणसी आए थे, और देवी अन्नपूर्णा ने उन्हें एक गृहिणी के रूप में भोजन कराया था।

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उदासी से भरे पलों में मुस्कान भर देती है, माँ अन्नपूर्णा।
जीवन मे सम्पूर्ण सुख और अप्रतिम_प्रेम से परिपूरित कर,
देगी मां अन्नपूर्णा ।।

शिव ने देवी अन्नपूर्णा के सम्मान में कराया था मंदिर निर्माण :- 

   काशी विश्वनाथ का वह मंदिर जो वाराणसी में स्थित है एक भारतीय मान्यता के अनुसार वाराणसी की पावन भूमि की कथा इस कहानी से जुड़ी है कि शिव ने माँ अन्नपूर्णा जी के सम्मान में मंदिर का निर्माण किया था।

विशेष मान्यता है

    आज भी भारतीयों की उच्च मान्यता ऐसी है कि महाराष्ट्र के मराठियों में विवाह संस्कारों में वधू(दुल्हन) को देवी अन्नपूर्णा और बाल कृष्ण की एक धातु की मूर्ति साथ में दी जाती है। जिसे "गौरी हरप" के विधान अनुसार देवी अन्नपूर्णा और बालकृष्ण की मूर्ति को चावल के दाने से पूजा करना होता है,मराठी लोग इस पूजन को प्रेम से "गोरी हरप" कहते हैं। और आगे सम्पूर्ण रूप से धन,धान्य से घर भरा रहे इस हेतु वधू(दुल्हन) माँ अन्नपूर्णा जी की  मूर्ति को अपने पति के घर ले जाती है,और माँ अन्नपूर्णा जी की यह मूर्ति घर के मंदिर में रख कर निरन्तर जीवन पर्यन्त पूजा करती रहती है।

माउंट अन्नपूर्णा

     क्या आप जानते हैं माउंट अन्नपूर्णा एक मंदिर का नाम है,भारतीय मान्यता है कि यह देवी अन्नपूर्णा पहाड़ों के राजा हिमवत की बेटियों में से एक हैं, इसलिए हिमालय में माउंट अन्नपूर्णा का नाम देवी अन्नपूर्णा के नाम पर रखा गया है।अब तो विदेशों में भी शुद्ध सेवन योग्य खाद्य पदार्थों के साथ देवी अन्नपूर्णा का नाम जुड़ा होने के कारण देवी अन्नपूर्णा को “भोजन के हिंदू ईश्वर” के नाम से भी जाना लगा है।

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आइये जानते हैं कि मध्य प्रदेश के इंदौर में है भव्य मंदिर देवी अन्नपूर्णा का :- 

     भारत का वह राज्य जिसका नाम मध्यप्रदेश है। उस राज्य में सुप्रसिद्ध जिला इंदौर में देवी अन्‍नपूर्णा का एक भव्‍य मंदिर है। देवी अन्नपूर्णा का यह मंदिर कई कारणों से प्रसिद्ध है।

प्रथम तो यह इंदौर का सबसे पुराना देवी अन्नपूर्णा का  मंदिर है।

द्वितीय देवी अन्नपूर्णा जी का यह मंदिर 100 फिट से अधिक ऊंचाई लिए हुए है। जिसे 9वीं शताब्दी में स्थापत्यकला की 2 आकर्षक शैली आर्य व द्रविड़ के मिश्रण से इसे संरचित किया गया है।

तृतीय देवी अन्नपूर्णा जी का यह मंदिर,धन,धान्य से भर देने वाली देवी अन्‍नपूर्णा को समर्पित किया गया है देवी अन्नपूर्णा को भोजन की व्रद्धि,सदैव अन्न की स्थिरता की देवी के रूप में भारतीय मानते हैं।     

भारतीय ग्रन्थों के अनुसार युवा देवी है देवी अन्नपूर्णा

         भारतीय धार्मिक ग्रंथों में लिखी पंक्ति को समझें,तो पता चलता है कि देवी अन्नपूर्णा की प्रतिमा का वर्णन एक युवा देवी के रूप में किया गया है। जिसमें devi annapurna जी को इस प्रकार प्रदर्शित किया गया है :- 

1)देवी अन्नपूर्णा की इस प्रतिमा में तीन आँखें, चार हाथ चेहरे पर लाल रंग है।

2)देवी अन्नपूर्णा को निचले बाएँ हाथ में स्वादिष्ट खीर से भरा एक बर्तन पकड़े हुए दिखाया गया है। 

3)देवी अन्नपूर्णा को विभिन्न प्रकार के गहने से सुसज्जित दर्शाया गया है।

4)मां देवी अन्नपूर्णा एक आकर्षक सिंहासन पर बैठी हैं, जिसके ऊपर चंद्रमा जडित है। लेकिन कुछ-कुछ कहानी के अनुसार देवी अन्नपूर्णा के साथ चित्र में शिव को एक भिक्षुक के रूप में भीख मांगते हुए दिखाया गया है।

      सम्पूर्ण धराधाम में जो भी व्यक्ति माँ अन्नपूर्णा जी की सम्पूर्ण आराधना को सच्चे मन से और ह्रदय से करता है उसके घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती और देवी की कृपा उस पर बनी रहती है। इस मां की आयु आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन माँ अन्नपूर्णा जी का पूजन भी किया जाता है।

आइये जानते हैं देवी अन्नपूर्णा की कहानी और उनकी महिमा जिससे शिव भी प्रभावित हुए थे

       भारत भूमि पर एक और कहानी बड़ी रोचक रूप से लोगों में कही सुनी जाती है,वह कहानी इस प्रकार है कि कुछ समय के लिए भगवान शंकर और मां पार्वती अक्सर कैलाश पर्वत पर पासा खेला करते थे।
     एक दिन ऐंसा हुआ कि भगवान शंकर और माता पार्वती के मध्य पुरुष की श्रेष्ठता और प्रकृति के महत्व
को लेकर द्वंद्व छिड़ गया दोनो ने खुद के विचार तो रखे, लेकिन दोनों ही किसी के भी विचार से सहमत नहीं थे। क्योंकि भगवान शिव पुरुष की श्रेष्ठता पर जोर दे रहे थे।और संसार एक भ्रम है, प्रकृति एक भ्रम है,ऐंसा कहते जा रहे थे।
     आगे शिव कहते हैं,सभी कुछ मात्र एक मृगतृष्णा के समान है, यहाँ पल आता है और पल चला भी जाता है,कहते - कहते शिव ने यहां तक कह दिया कि - भोजन भी सिर्फ और सिर्फ माया है। माँ पार्वती जी जो भोजन सहित सभी भौतिक चीजों की जननी है, उन्होंने शिव की यह सब बात सुनकर अपना आपा खो दिया,
      तभी मां पार्वती जी ने कहा “अगर मैं सिर्फ एक भ्रम हूं, तो देखते है आप और बाकी दुनिया मेरे बिना कैसे रहते हैं,” ऐसा कहकर वो दुनिया से लुप्त हो गईं।

      उनके लुप्त होते ही समस्त ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। समय स्थिर हो गया,ऋतुएँ स्थिर हो गईं, धरती कृषि के अयोग्य हो गई और भयानक सूखा पड़ने लगा। आकाश, पाताल और धरती तीनों लोकों में मिलने वाला भोजन उपलब्ध नहीं था। देवता, दानव और मनुष्य भूख से तड़प रहे थे।

      अब तो सम्पूर्ण ब्रम्हांड भोजन से वंचित हो गया और सम्पूर्ण विश्व काल के गाल में समाहित होते जा रहा था।
       यहां तक कि स्थिती ऐंसी भी हो गई कि भगवान शिव के अनुयायी भोजन के लिए उनसे भीख माँगने लगे, तो भगवान शिव ने शिव भक्तों के लिए घर-घर जाकर भोजन की भीख माँगी। लेकिन किसी के पास कुछ भी देने के लिए नहीं था।

       तुरन्त विष्णु शिव के पास आये और नमन किया, फिर शिव से उन्होंने कहा,हे शिव!
काशी में एक महिला ने लोगों के लिए भोजन दान करना शुरू किया है। शिव कहते हैं ठीक है तो उन श्रेष्ठ महिला के पास चला जाये, और फिर वे चल पड़ते हैं,भोजन की भीख माँगने के लिए काशी, शिव आश्चर्य में पड़ गए कि  जब उन्हें पता चला की रसोई को चलाने वाला कोई और नही,बल्कि उनकी पत्नी पार्वती ही हैं ।
    शिव ने देखा अरे वाह पार्वती तो बैंगनी और भूरे रंग के वस्त्र पहने और आभूषणों से सजी हुई है, और वह एक सिंहासन पर बैठी हुई हैं, और एक-एक करके भूखे देवताओं और पृथ्वी के भूखे निवासियों को भोजन परोस रही है। सबसे पहले शिव ने अपने पुत्रों कार्तिकेय जी और गणेश जी को भी भोजन कराया।

     मां पार्वती का यह सुंदर रूप कोई और नहीं बल्कि देवी अन्नपूर्णा ही थीं, जो पूर्ण और संपूर्ण हैं। अन्नपूर्णा ने शिव को भिक्षा के रूप में भोजन कराया, और देवी ने प्रसन्न होकर कहा कि “मैं अन्नपूर्णा के रूप में काशी में निवास करुँगी।”

जय माँ अन्नपूर्णा

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अब सुंदरता से निखरेगा आपका चेहरा जी,    
   आज से महफिलों में लोग,
          तरसेंगे चेहरा देखने को आपका जी।
न रहना वेखबर,
     दूध से नहा लो इस कदर,
बस इस दमकते,
   चमकते हुए चहरे की सुंदरता को स्थिर जरूर रखियेगा,जी।
आइये, अब तो इस ईश्वरीय उपहार रूपी देह को खूब सजायें।
सम्पूर्ण एकाग्रता से इस लेख को बार-बार पढ़ें और पढाएं।

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