अर्जुन शब्द में छुपा रहस्य,(The secret hidden in the word Arjuna)

           हिंदी के शब्द हो या सँस्कृत के इनके बहुत से शब्दों में  रहस्य छुपा होता है और कम शब्दों में ज्यादा कहने का भाव भी रहस्य के रूप में रहता है। शब्दों का मर्म जानने पर जीवन का सार प्रगट हो जाता है नाम की महिमा का बखान करते ही उसकी  रहस्यात्मक कला से सामान्य जन परिचित नहीं रहते,जबकि नाम की महिमा से व्यक्ति के व्यक्तित्व बदलने का सामर्थ्य रहता है ।अर्जुन शब्द में छुपा रहस्य,(The secret hidden in the word Arjuna) जैसे उदाहरण के तौर में हम आपको आगे चलकर भिन्न-भिन्न शब्दों का परिचय कराएंगे जिसमें से आज अर्जुन शब्द के रहस्य को समझते हैं ।अर्जुन शब्द में छुपा रहस्य,(The secret hidden in the word Arjuna)

अर्जुन

आज जानते हैं *अर्जुन* शब्द को यह *अर्जुन* शब्द बड़ा ही विचारणीय है। 

इस शब्द का अर्थ होता है 'उलझा हुआ'। हमने शायद ऋजु शब्द सुना हो। ऋजु का अर्थ होता है, 'सीधा' । ऋजुता का अर्थ होता है, सरलता। अऋजु का अर्थ होता है, तिरछा, आड़ा, उलझा, सुलझा हुआ नहीं, सरल नहीं, जटिल।

           अर्जुन के सारथी बने कृष्ण ने  अर्जुन को सुलझने वाली  बातों से परिचित कराया,क्योंकि अर्जुन एक ऐंसा चित्त है जो उलझा हुआ है,जटिल है,जिसमें गांठें पड़ी हैं। बड़ी समस्याएं हैं, समाधान नहीं है। अर्जुन शब्द में छुपा रहस्य,(The secret hidden in the word Arjuna)

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उलझे से सुलझे की यात्रा

अर्जुन शब्द में छुपा रहस्य,(The secret hidden in the word Arjuna)

               जब श्री कृष्ण अर्जुन से संवाद कर रहे थे,जिस संवाद की श्रंखला को गीता के नाम से हम जानते हैं - तब श्री कृष्ण अर्जुन को उसके प्रश्नों का उत्तर दे रहें। उस द्रष्टान को ध्यान में रख कर उन दोनों में से एक रहस्य प्राथमिक रूप से यह है कि जिसमे उन दोनों के ही नामों की गहराई दिखती है-यदि अर्जुन को श्री कृष्ण के संवाद के पहले उसके प्रश्नों का उत्तर मिल जाता तो शायद यह नाम उसके लिए अनुपयुक्त ही होता। या कहें अर्जून के जीवन मे अगर समाधान ही हो जाता तो या तो यह संवाद होता ही नही,अथवा होता तो इस संवाद में दोनों तरफ कृष्ण हो जाते । और अर्जुन खो जाता अर्थात अर्जुन कोई बचेगा ही नहीं।

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हमेशा समस्या समाधान से बोलती है

          इसी प्रकार गुरु-शिष्य से बोलता है, और समाधान - समस्या से बोलता है। आपके पास अगर समस्या है, तो आप अपने मार्गदर्शक के पास आ गए हो। आपकी समस्या से हमेशा ही आपके मार्गदर्शक बोलते हैं, जब हम उलझे हुए होते हैं तो हम अपने मार्गदर्शक के सामने निश्चित ही अर्जुन के जैसे हो जाते हैं,और यह भी स्पष्ट है कि हमारे मार्गदर्शक अर्जुन से ही संवाद कर रहे हैं । मन अर्जुन है, क्योंकि वह समस्याएं पैदा करता है, उलझाता है। मन के पार जो छिपा है आपके भीतर परमात्मा, वही श्री कृष्ण हैं। यही है अर्जुन शब्द का रहस्य 

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कृष्ण का कथन बोलने के लिए नहीं जागने के लिए है-

           यदि हम यह देखते हैं कि श्रीकृष्ण जो बोल रहे हैं।औपचारिक हम मान लें तो यह ठीक नहीं,कृष्ण के बोलने का प्रयोजन कुछ कहना कम है, कुछ जगाना ज्यादा है। अवश्य ही भीतर मन तो जागा हुआ है, आप सोए हुए हो। सारी चेष्टा यही है श्री कृष्ण जी, कि आप जाग जाओ। आपके जागते ही मन तिरोहित हो जाता है। जैसे सुबह के सूरज के उगते ही रात का अंधेरा विदा हो जाता है, ऐसे ही आप जागे कि मन गया, कृष्ण उठा कि अर्जुन गया।

            कृष्ण कुछ बोल रहे हैं, इस भूल में भी मत पढियेगा । बोलना तो केवल उपाय है। बोलने के लिए नहीं बोला जा रहा है। बोलने के द्वारा कुछ करने का आयोजन किया जा रहा है, कोई विशेष उपचार की व्यवस्था की जा रही है। कोई एक महाप्रयोग के अर्जुन के आस—पास घटने की चेष्टा करवाई जा रही है।

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