शब्दों में छुपे राज Hidden secret in words
समग्र जीवन मे राह दिखाती मंजिल में शब्दों की विशेष भूमिका रहती है यदि इस पर चिंतन मनन किया जाए तो जीवन के हर पहलुओं में ये हमारे सत्संगी जैसे रहते हैं । वस थोड़ा सा आकार बदल जाता है।कभी ये शब्द महाशय के रूप में,कभी ये शब्द मोक्ष,उपासना,उपवास जैसे ओर भी शब्द सम्पूर्ण ब्रम्हांड में गुंजायमान होकर अपनी सहजता और सरलता से हमें प्रेरित और कम्पित करते हैं। जिससे रस छंद और अलंकारों से भरा जीवन हमें आनन्दित करता है।
वाणी में भी अजीब शक्ति होती है,
कड़वा बोलने वाले का शहद भी नही बिकता और,
मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है। शब्दों में छुपे राज Hidden secret in words
अब हिंदी के गहरे राज से भरे ये शब्द
महाशय
महाशय का अर्थ होता है, जिसका आशय विराट हो गया, महा+आशय। अर्थात जिसका आशय आकाश जैसा हो गया, जिसके आशय पर कोई सीमा न रही।शब्दों में छुपे राज Hidden secret in words
हम तो साधारणत: किसी को भी महाशय कहते हैं। शिष्टाचार के हिसाब से तो ठीक है, लेकिन महाशय तो कभी किसी गोरख जी को, अष्टावक्र जी को, श्रीराम जी को,श्रीकृष्ण जी को, और स्वयं के शोध में परिणाम तक पहुंचे हर व्यक्ति को ही कहा जा सकता है।लेकिन सभी को महाशय नहीं कहा जा सकता।
शब्दों का वजन
तो बोलने वाले के,
भाव पर आधारित है ।
एक शब्द मन्त्र हो जाता है,
एक शब्द गाली कहलाता है ।
वाणी ही व्यक्ति के,
व्यक्तित्व का परिचय कराती है ।
शिष्टाचार में यदि 'महाशय' शब्द उच्चारित किया भी जाता है , तो इस आशा में कि शायद जो आज महाशय नहीं है, कल हो जाएगा। यह हमारी शुभ आकांक्षा है, लेकिन सत्य नहीं है।
महाशय वह है जिसके ऊपर आकांक्षा की कोई सीमा न रही। आकांक्षा से मुक्त जिसका आशय हो गया वही महाशय है। जिसको अब आकांक्षा का आशय बांधता नहीं। जिस पर अब कोई सीमा ही नहीं है,असीम है। जिसके भीतर की दशा अब किसी चीज की प्रतीक्षा नहीं कर रही है।
क्योंकि जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे हैं उसी से अटके हैं। उसी पर हमारा सुख—दुख निर्भर है। जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे हैं, यदि वह मिलेगा तो आप प्रसन्न हो जाओगे, नहीं मिलेगा तो दुख और विषाद से भर जाओगे। पर ध्यान रहे निर्भरता जारी रहेगी।
शब्द मुफ्त में मिलते हैं।
लेकिन;
उनके चयन पर निर्भर करता है, कि
उनकी कीमत मिलेगी या चुकानी पड़ेगी
मोक्ष
शब्दों में छुपे राज Hidden secret in words मोक्ष का अर्थ है, अब मैं किसी पर निर्भर नहीं। अब मैं अपने में पूरा हूं समग्र हूं। अब किसी भी बात की आवश्यकता नहीं है। जो होना था, जो चाहिए था। सदा से है। "ऐसी ही है महाशय की दशा"।
उपासना
शब्दों में छुपे राज Hidden secret in words उपासना का अर्थ होता है उप+आसन,अर्थात उसके पास बैठना। जितना ज्यादा हम दो का स्मरण करेंगे उतनी ही हमारी उपासना से दूरी होते जायेगी। अर्थात उतनी उपासना कम होगी। जितना अभेद होगा उतने ही परमात्मा के निकट हम बैठ पाएंगे। उपवास का भी वही अर्थ होता है, उपासना का भी वही अर्थ होता है। उपवास का मतलब होता हैः उसके निकट वास करना।
तो अब परमात्मा के निकट हम कैसे पहुंच पाएंगे ?
और अगर परमात्मा के निकटता में थोड़ी भी दूरी रही, तो परमात्मा के निकट होकर भी परमात्मा के समीप नही पहुंच पाएंगे। तो ठीक निकट तो तभी हो सकते हैं जब हम परमात्मा में डूब ही जाएं और यह तो तब घटेगा जब आप गहनतम साक्षीभाव में जाएंगे, उतना ही हम वह जो द्वैत है उसको छोड़ते हैं और वह तो एक परमात्मा है, वह जो मैं ही हूं, उसमें बैठते हैं।
बस हमेशा से ही मनुष्य की प्रतीक्षा है कि जिस दिन निकटता पूरी हो जाएगी,बस उसी दिन साक्षीभाव भी विलीन हो जाएगा। क्योंकि साक्षीभाव में भी द्वैत की अंतिम सीमा बाकी है। जिस दिन यह पूरा हो जाएगा,उस दिन यह सवाल भी नहीं है कि मैं साक्षी हूं। क्योंकि किसका साक्षी हूं और कौन साक्षी, वे दोनों ही गए। वह तो जब तक हम दृश्य से मुक्त होने की कोशिश कर रहे हैं तब तक द्रष्टा पर जोर देना है। जैसे ही दृश्य से मुक्त हो गए, द्रष्टा भी गया। फिर तो परमात्म तत्व रह गया। न वहां कोई दृश्य है, न वहां कोई द्रष्टा है। और यही उपासना का वास्तविक अर्थ होगा।
अब शब्दों को एक कविता के माध्यम से जानते हैं -
शब्दों की ताकत को
कम मत आँकिये जी
क्योंकि छोटा सा “हाँ” और छोटा सा “ना”
पूरी जिंदगी बदल देता है।
अपने शब्दों में ताकत डालिये
आवाज में नहीं,
बारिश से फूल उगते हैं
तूफ़ान से नहीं।
शब्द में वो धार हो;
जो जिगर के पार हो ।
आँख का पानी रहे;
जीत हो या हार हो ।
मंज़िलों के वास्ते;
कोशिशें हर बार हो ।
यूँ दरख्तों के लिए;
ठोस तो आधार हो ।
बोलिए उस बात को;
जिसमें कुछ भी सार हो ।
क्या है जीवन के विकास की सबसे बड़ी बाधा,जानिये
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