ताजगी से भरे हुए शिक्षकों की खोज| Visionary teacher|Humble teacher

ताजगी से भरे हुए शिक्षकों की खोज | Visionary teacher| Humble teacher | स्नेही शिक्षक 

            कुछ समय से इस जगत के आधुनिक शिक्षकों के संबंध में कुछ कहना चाह रही हूँ। लेकिन बार-बार मुश्किल में पड़ जाती हूँ, क्योंकि अब शिक्षकों की दुनियां आज से बहुत वर्ष पहले ऐंसी नहीं थी,जैसे आज है। जब में विचार करती हूं कि आधुनिक शिक्षक अब धीरे धीरे व्यापार का हिस्सा होते जा रहे हैं,यह तो बहुत आधुनिक घटना है। ऐंसी घटना पहले थी ही नहीं। गुरु थे,परन्तु वे शिक्षक से एकदम भिन्न थे।

Visionary teacher Humble teacher

            इन गुरुओं का शिक्षा का कार्य उनका व्यापार नहीं था, उनका आनंद,खुशी और उत्साह था। लिख कर बड़ा कठिन लगता है, लेकिन आधुनिक शिक्षा का कार्य बार व्यापार बन गया है। और जिस दिन शिक्षा का कार्य व्यापार बन जाएगा,उस दिन आधुनिक शिक्षक, गुरु होने की स्थिति में नहीं रहेंगें,अर्थात आधुनिक शिक्षक अब गुरु नहीं रह जाते,बल्कि कर्मचारी हो जाते हैं या व्यवसायी हो जाते हैं।

           आधुनिक शिक्षक बिल्कुल ही आधुनिक घटना जैसे हैं। पुराने युगों में जो मनुष्य थे। वे शिक्षा के कार्य में व्यापार की भांति संबंधित नहीं थे। शायद आपको आश्चर्य हो कि वास्तविकता में उस समय कभी सोचा ही नहीं गया था कि शिक्षा का कार्य  भी कभी व्यापार बन सकता है,लेकिन अब बन गया है। और उसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षा का कार्य संस्थाएं फैक्ट्रियों और कारखानों में होने जैसा कार्य हो गया  हैं।

            उदाहरण स्वरूप कारखानों में चीजें बनाई जाती हैं,वैसे ही जैसे - विद्यालयों,विश्वविद्यालयों में मनुष्यों को एक अलग तरह से निर्मित किया जाता हैं,इतना ही अंतर है। लेकिन मनुष्य भी उसी तरह ढाले जाते हैं,जैसे मशीनें ढाली जाती हैं। 

            अब आधुनिक शिक्षक,गुरु नहीं है, लेकिन आधुनिक शिक्षकों के मन में यह भ्रम है,कि वह अभी भी गुरु है । इसी कारण वर्तमान में शिक्षकों को बड़ा कष्ट भी है,शिक्षक को अत्यंत ही पीड़ा भी है। वह आदर तो उतना ही चाहता है,जितना गुरु को मिलता था। सत्कार उतना चाहता है,जितना गुरु को मिलता था।

शिक्षक बिल्कुल ही गुरु से भिन्न हैं -

            कभी आप स्वयं ही शिक्षकों से मिलें,तो सब जगह उनकी पीड़ा तो यही है कि विद्यार्थी सम्मान नहीं दे रहे हैं, आदर नहीं दे रहे हैं। लेकिन शिक्षकों को ज्ञात ही नहीं है कि गुरु होना एक अलग ही बात है । शिक्षक वह नहीं था, जिसको आदर मिला था। शिक्षक बिल्कुल ही भिन्न है गुरु से। शिक्षक को आदर नहीं मिल सकता है। 

शिक्षक को या तो आदर की आकांक्षा भी छोड़ देनी चाहिए अथवा फिर गुरु होने की हिम्मत जुटानी चाहिए। ऐसा नहीं है कि गुरु को आदर देना पड़े। यहां तो विषय एक दम विपरीत है।

जिसे हमें आदर देना ही पड़ता हो,सम्मान देना ही पड़ता हो उसे 'गुरु' कहते हैं,अर्थात जिसे आदर दिए बिना कोई रास्ता ही नहीं है, जो हमारे सम्मान को खींच ही लेता है, उसे ही हम 'गुरु' कहते हैं। लेकिन शिक्षक बिल्कुल भिन्न बात है। क्योंकि शिक्षक निश्चित ही कुछ काम ही दूसरा कर रहे हैं।

ताजगी से भरे हुए शिक्षकों की खोज | Visionary teacher| Humble teacher | स्नेही शिक्षक 

अब जानते हैं - आज क्या काम शिक्षक कर रहे हैं? 

           वह जो बड़े पैमाने पर उत्पादन चल रहा है, वह जो बड़े पैमाने पर मनुष्यो को ढालने की कोशिश चल रही है, वह जो बड़े-बड़े कारखाने हैं, प्राइमरी स्कूल से लेकर विश्वविद्दालय तक,उन सब कारखानों में जो मनुष्यों को ढालने का प्रयास चल रहा है। शिक्षक उसमें एक कर्मचारी है और वह जो काम वहां कर रहे हैं, वह काम किसी भी व्यक्ति की आत्मा तक में पहुंच ही नहीं पाता,न ही आत्मिक आनन्द को जगा कर व्यक्तित्व को गरिमा दे पाता ।

गुरु और शिक्षक में अंतर

              गुरु वह है जो हर परिस्थिति में श्रेष्ठतम तकनीकी ज्ञान से अवगत भी कराए और इसके साथ किसी की आत्मा तक पहुंच,उसके अन्तःकरण व रोम - रोम को पुलकित कर दे। किसी के व्यक्तित्व को गरिमा दे दे, बंद आंखें खुल जाये। *शिक्षक वह है जो - पुरानी पीढ़ियों के द्वारा अर्जित सूचनाओं को,नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सूचना के वाहक के रूप में  काम कर दे और विदा हो जाए। शिक्षक सिर्फ पुरानी पीढ़ियों ने जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे नई पीढ़ी तक जोड़ने का काम करता है, इससे ज्यादा नहीं। आधुनिक शिक्षक केवल मध्यस्थ है।

एक चिंतन यह है कि

          अब तो एक और विचारणीय घटना घट गई,ईशा के बाद कोई साढ़े अट्ठारह सौ वर्षों में मनुष्य जाति का जितना ज्ञान बढ़ा था, उतना ही ज्ञान पिछले डेढ़ सौ वर्षों में बढ़ा है और पिछले डेढ़ सौ वर्षों में जितना ज्ञान बढ़ा था, उतना ज्ञान पिछले पंद्रह वर्षों में बढ़ा है। आश्चर्य तो तब हुआ जब पंद्रह वर्षों में इतना ज्ञान बढ़ रहा है, जितने ज्ञान को बढ़ने के लिए पहले साढ़े अट्ठारह सौ वर्ष लगते थे। इसका एक बहुत गहरा परिणाम होना स्वाभाविक है।

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परिणाम यह हुआ  

         आज से दो सौ साल पहले पिता हमेशा से बेटे से ज्यादा जानते थे, गुरु हमेशा शिष्य से ज्यादा जानते थे। आज ऐसा जरूरी नहीं है। आज संभावनाएं बिलकुल बदल गई हैं, क्योंकि बीस वर्ष में एक पीढ़ी बदलती है, और बीस वर्ष में नये ज्ञान का इतना विस्फोट हो जाता है कि बीस साल पहले जो शिक्षित हुआ था, वह अपने विद्यार्थी से भी पीछे हो गया है।

आधुनिक शिक्षक और विद्यार्थी में अंतर की खाई

           वर्तमान में तो शिक्षक और विद्यार्थी में जो अंतर होता है, पहले तो अंतर होता था बहुत भारी, क्योंकि सारा ज्ञान अनुभव से उपलब्ध होता था। और ज्ञान बिल्कुल स्थिर था, हजारों साल तक उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता था । इसलिए शिक्षक बिलकुल आश्वस्त थे। वे थोड़े से भी भयभीत न थे। वे बिलकुल मजबूती से जो कहते थे, उसे जानते थे, कि वे ठीक है, कल भी वे ठीक थे, अब आने वाले कलों में भी वे ठीक ही रहेंगे। हजारों साल से बातें ठीक थीं, अपनी जगह ठहरी हुई थीं।

           अब तो पिछले सौ वर्षों में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है। वह शिक्षक का आश्वस्त रूप भी समाप्त होते जा रहा है। आज वे तीव्रता से नहीं कह सकते हैं कि जो वे कह रहे हैं, वह ठीक ही है, क्योंकि बहुत डर तो यह है कि पंद्रह वर्ष पहले जब वे विश्वविद्यालय से पास होकर निकले थे , तब जिसे ज्ञान समझा जाता था, पंद्रह साल में वह सब पुरातन होकर समाप्त हो गया, वह सब समय के बाहर हो गया है। उसमें से कुछ भी अब ज्ञान नहीं है। 

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क्यों नही आधुनिक शिक्षक का आदर बढ़ रहा है

         आप जानते होंगे कि,वर्तमान में आधुनिक शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अब तो एक घंटे का फासला होता है। आधुनिक शिक्षक एक घंटे पहले तैयारी करके आते हैं, एक घंटे बाद विद्यार्थी भी उतनी बातें जान लेता है। जहां इतना कम फासला होगा तो वहां बहुत ज्यादा आदर मांगा नहीं जा सकता। ध्यान रखिये:- आदर हमेशा से ही दूरी से पैदा होता है। सम्मान दूरी से पैदा होता है। कोई शिखर पर खड़ा है, और हम भूमि पर खड़े हैं, तब सम्मान पैदा होता है। लेकिन जरा सा आगे कोई खड़ा है,और थोड़ी देर बाद हम भी उतने पास पहुंच जाएंगे। पहले हमेशा ऐसा होता था कि पिता,बेटे से ज्यादा ज्ञानी होते ही थे,क्योंकि अनुभव से ही ज्ञान मिलता था। एक आदमी नब्बे साल जी लिया था तो उसके पास ज्ञान होता था। लेकिन आज हालत बहुत बदल गई है।

उम्र का ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं बचा :-

             आज उम्र से ज्ञान का कोई संबंध नहीं रह गया है। संभावना तो इस बात की है कि बेटा,पिता से ज्यादा जान ले, क्योंकि पिता का जानना,समझना कहीं रुक गया होगा और बेटा अभी भी जान रहा है। और जो पिता ने जाना था,समझा था, वह सब जाना हुआ,समझा हुआ बदल गया है।

            निश्चित ही अब नये जानने के बहुत से नये तथ्य सामने आ गए हैं। यह तथ्यों का विस्पोर्ट इतनी तेजी से हुआ है कि पिता की भी बुद्धि,शरीर,सोच के आधार सभी कुछ कम्पित हो गए हैं, और पिता के साथ शिक्षकों के भी बुद्धि,शरीर,सोच के आधार कम्पित हो गए हैं। वे आश्वस्त नहीं रह गए हैं। और अब आज कोई सिर्फ उम्र के कारण, या आगे होने के कारण, या पहले जन्मे होने के कारण किसी बात को थोपना चाहेगा तो थोपना अत्यंत ही मुश्किल है। इसलिए अवश्य ही आधुनिक शिक्षक को बहुत विनम्र होना पड़ेगा।शिक्षकों की विनम्रता कभी भी गुण न था, बल्कि यह गुण था विद्यार्थी का, कि वह विनम्र हो। शिक्षक अविनम्र ही था। बहुत अकड़ी और बड़े अहंकार से भरा हुआ था।

विद्यार्थियों की बगावत धीरे धीरे बढ़ने लगी है

           परिस्थितियां बिल्कुल ही अब बदल गई हैं। शिक्षक को विनम्र और सरल होना ही पड़ेगा। परन्तु अब शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच यदि समर्पित भाव को जन्म देना हो तो शिक्षक को आगे आना पड़ेगा,लेकिन शिक्षक की इस विनम्रता(सरलता) की बात को अभी अधिकतर अपूर्ण ज्ञान से भरे शिक्षकों को स्वीकार करने में बड़ा ही मुश्किल अनुभव होता है। लेकिन सारी दुनिया में विद्यार्थियों की बगावत के स्वर बढ़ने लगे हैं, वह शिक्षक की अविनम्रता के विरोध में है,जो हजारों पीढ़ियों में सीखी गई है आदत है शिक्षकों के अहंकार,अकड़, की उसके विरोध में हैं।

अब बड़े स्नेह से शिक्षा केन्द्र में विद्दार्थियों को केंद्र में रखना पड़ेगा -

          अब विद्यार्थी यह कह रहे हैं,कि शिक्षा संस्थान में,    अपूर्ण ज्ञान से भरे शिक्षक केंद्र होकर नहीं रह सकेंगे, केंद्र तो विद्यार्थी ही होंगे।
निश्चित ही,कल तक अहंकारी शिक्षक केंद्र में थे । विद्यार्थी, इन अहंकारी शिक्षक की परिधि पर था। अब परिस्थितियां बिलकुल बदल गई है। अब विद्यार्थी केंद्र पर होगा, अहंकारी शिक्षक बिलकुल परिधि पर ही होंगे। परिस्थितियां बिल्कुल ही उलटी हो गईं हैं।
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शिक्षकों के पुर्नआयोजन हेतु कुछ सूत्र 

            अब तो अपने को पुर्नआयोजित करने हेतू, आधुनिक शिक्षकों के लिए बहुत बड़ा सवाल खड़ा हुआ है। और अगर ज्ञान से अपूर्ण शिक्षक पुरानी आदतों को लेकर चलते ही रहे,तो निश्चित ही शिक्षक और विद्यार्थी के बीच की खाई बड़ी गहरी होती चली जाएगी। 
            सूत्र :- इस खाई को कम करने के प्रथम सूत्र के विषय को तो ध्यान में रखें अन्यथा ज्ञान से अपूर्ण शिक्षकों का अस्तित्व खो जाने जैसी स्थिति नजर आ रही है। वह प्रथम सूत्र यह है कि इस खाई को कम करने हेतु यह आवश्यक है कि अब अहंकारी शिक्षक समझ ही लें कि उन्हें विनम्र होना ही पड़ेगा,दूसरा सूत्र यह है कि शिक्षकों को प्राचीन विचारधारा और वर्तमान की विचारधारा का समावेश के नवीन और ताजगी से भरी विचारधारा को लेकर चलना पड़ेगा। 

           हमे यह ध्यान में रखना होगा कि -अत्यंत ही आवश्यक हो गया है कि भविष्य में शिक्षक को आदर का ध्यान छोड़ कर, प्रेम और स्नेह की धारा में ध्यान को क्रेन्द्रित करना ही पड़ेगा।और मेरा विचार यह है कि,निश्चित ही प्रेम आदर से ज्यादा मूल्यवान है।

क्योंकि प्रेम में आदर, तो समाविष्ट होता ही है, लेकिन आदर में , जरूरी रूप से प्रेम समाविष्ट नहीं होता। 

          प्रेम बड़ा ही मूल्यवान है, आदर उतना बड़ा मूल्यवान नहीं।हमें जिसे आदर करना पड़ता हो, उसे हम घृणा ही करते हैं, प्रेम नहीं। लेकिन जिसे हम प्रेम करते हैं,उसका किसी गहरे अर्थों में आदर हो ही जाता हैं। प्रेम में तो आदर समाविष्ट हो सकता है, लेकिन आदर में जरूरी नहीं है कि प्रेम समाविष्ट हो।
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          हमेशा ध्यान रखिये - जब भी आदर मांगा जाता है, तो अपमानजनक हो ही जाता है। और आदर जब थोपा जाता है, तो भीतर निषेध और बगावत पैदा करता ही है। निश्चित ही आज्ञा जब ऊपर से डाली जाती है तो अपने को तोड़े जाने का निमंत्रण देती है।

           अब यह नहीं हो सकेगा। शिक्षक को अपना पूरा चेहरा,अपने पूरे व्यक्तित्व की अब तक की परिकल्पना को ही बदल देने की जरूरत आ गई है। अन्यथा आने वाला शिक्षक और विद्यार्थी, दो वर्ग बन जाएंगे जिनके बीच संघर्ष होगा जैसे मजदूर और पूंजीपति के बीच संघर्ष होता है। संघर्ष शुरू हो गया है। और उस संघर्ष को तोड़ने का कोई उपाय नहीं हो रहा, क्योंकि शिक्षक सोच रहा है कि हमारे अनुशासन की व्यवस्था में कुछ कमी है, इसलिए आदर कम हो रहा है। नहीं, आदर की मांग ही गलत हो गई है नये परिवेश में, इसलिए सारा उपद्रव हो रहा है।

 सख्ती से आदर नहीं आ सकता

           जब भी वर्तमान के अहंकार से भरे हुए शिक्षकों से मिलनें यदि आप जाएं तो उनमे से अधिकतर शिक्षक हमेशा ही कहते हैं कि कुछ और इंतजाम करना चाहिए सख्ती से, शिक्षक के हाथ में ज्यादा ताकत होनी चाहिए दंड देने की, तो हम अनुशासन रख पाएंगे और आदर बचा पाएंगे। लेकिन जितनी भी ताकत दी जाएगी उतनी ही विपरीत ताकत तोड़ने के लिए खड़ी होगी, क्योंकि नई स्थितियों में  अब तो ज्ञान की अपूर्णता वाले शिक्षक का पूरा स्थान बदल गया है। वह अब केंद्र पर नहीं है। अब केंद्र पर शिक्षार्थी है। वह जो शिक्षा ले रहा है। लेकिन स्नेह प्रेम की धारा गहरी हो तो यही शिक्षक,बिद्यार्थियों के सिर मोर होके ही रहेंगे।

              निश्चित ही इस लेख के बाद ताजगी से भरे हुए शिक्षक की खोज एक अंजाम तक पहुंचेगी,निश्चित ही आधुनिक शिक्षक इस विषय को जरूर ध्यान से चिंतन मंथन करेंगे।और सारे पुराने विचार को नये विचार को मिलाकर एक नवीन चिंतना का सूत्रपात करेंगे जिसमे स्नेह और विनम्रता के फूल होंगे। और विद्दार्थियों और शिक्षकों का प्रेम पूर्ण घनिष्ठ सम्बन्ध होगा।
The search for a teacher full of freshness

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