निराशा(disappoint) को आशा में बदलें

 आप कभी निराश न हों (you never disappoint)

           जीवन की दो मनोदशाएं आशा और निराशा हैं। आशा है तो हौसले हैं हौसले हैं तो उम्मीद है उम्मीद है तो सफलता है इसके विपरीत निराशा है तो कुछ भी नहीं है न हौंसले, न उम्मीद,न सफलता । आप कभी निराश न हों,(you never disappoint)

आप कभी निराश न हों (you never disappoint)

निराशा क्या है? 

        निराशा एक मनोदशा है जो किसी विशेष काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है,निराश व्यक्ति उदास, दुखी,बेबस,चिड़चिड़ा और बेचैन हो जाता है। वह अपने आप को इतना हताश पाता है कि उसके दिमाग में स्वयं के शरीर की हानि करने तक का विचार भी आने लगता है। 

आशा क्या है? 

         आशा एक मनोदशा है जो किसी विशेष कार्य के प्रति रूचि को दर्शाती है,आशा से भरा व्यक्ति सदैव प्रसन्न, नवीन सोच और हर पल नया करने,और खिलकिलाहट से भरा हुआ होता है। आशा से भरा हुआ व्यक्ति अपने शरीर को विशेष आयोजन हेतु निरन्तर तैयार करता रहता है ।

निराशा के भंवर से निकलने के कई रास्ते हैं

         जिस तरह हर अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है,ठीक उसी प्रकार निराशा के पार आशा की किरण होती है। ठीक हमारे और आपके दर्शन का फर्क है । कुछ व्यक्ति ऐंसे होते हैं जो निरन्तर निराशा के अंधकार में ही खोये रहते हैं,और खोये ही रहना चाहते हैं ,अंधेरे को देखकर उन्हें लगता है कि यह अंधेरा ही सब कुछ है ,जबकि कुछ लोग ऐंसे भी हैं जो हिम्मत करके अंधकार में रहकर आशा की किरण की खोज में निकल पड़ते हैं। जब अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा जैसे जन्म है तो मृत्यु भी होगी ही , यह बात सभी में सर्वथा स्मरण में होनी ही चाहिए।

पहली संक्षिप्त कहानी से समझते हैं

          एक किसी राज्य में राजा ने अपने सेनापति को प्रस्तूत होने का आदेश दिया,राजा यह मानता था कि सेना पति विवेकी है,शायद मेरे प्रश्न का वह उत्तर दे ही देगा, भरी सभा मे राजा ने कहा कि - मेरे राज्य में एक स्थान का नाम लेकर उसने कहा कि-" इस खास स्थान पर एक लंबी दीवार है जिसे सारे राज्य के लोग हर दिन और हमेशा किसी भी समय देखते हैं, लेकिन उस दीवाल पर में चाहता हूं कि कुछ ऐंसे वाक्य लिख दिये जाएं,जो कि हमेशा,हर परिस्थिती में नया बना रहे,अर्थात किसी के जीवन के निराशा और आशा दोनों परिस्थितियों में वे काम आयें" लेकिन वे शब्द सेना पति तुमको ही तय करना है चाहे कुछ भी हो,अन्यथा तुम्हें राज्य निकाला कर दिया जावेगा,

         कुछ क्षण सेना पति ने नीचे देखा और बोला - " हे महाराज जैसे आपकी आज्ञा,ऐंसा कह वह दीवाल लेखन वालों के साथ राज्य के उस खास स्थान पर गया और लिखवा दिया ।" वह वाक्य जो जीवन की हर परिस्थियों में स्थिर रूप से नवीन बना रहे,- वह वाक्य था -  "यह समय भी चला जायेगा । " 

इस कहानी के अनुसार न आशा स्थाई है और न निराश स्थायी है । यह व्यक्ति के ऊपर है की वह किसे अपने साथ रखता है :-  आशा को या निराशा को,

दूसरी कहानी से समझते हैं

एक समय गहन जंगल मे एक व्यक्ति नदी के पास पहुंचा तो उसने पाया की नदी को पार कर ही वह अपने निज निवास में पहुंचेगा, लेकिन उसके पास नाव नहीं थी,काफी दूर से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ अनजान सा व्यक्ति उसके सम्मुख आया, और पहले वाले व्यक्ति से पूंछा कि - " अरे सुनो तो न तुम्हारे पास नाव है,न तुम्हारे पास नाव बनाने की कोई व्यवस्था है, ऐंसे में तुम नदी पार कैसे करोगे??"

उसके वचन सुन प्रथम व्यक्ति ने बोला - "कश्ती नहीं तो क्या हौसले तो पास हैं  इन्ही होंसलों के माध्यम से ही में नाव तो बना ही लूंगा और उस नाव में सवार हो अपने निजी निवास में पहुंच ही जाऊँगा " । 

कहानी से आशय यह है कि :- किसी भी व्यक्ति को बुरे से बुरे समय में भी हौसला और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए बस अपने कर्म करते जाना चाहिए।

     मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि निराशा के बादलों को हटाने का एक सरल उपाय यह है कि जीवन में जब कभी आपके मन पर निराशा की छाया पड़ने लगे ततक्षण उन क्षणों को याद करने की कोशिश करें जब आपने कोई बहुत बड़ा और बहुत अच्छा काम किया था, किस तरह लोगों ने उस क्षण आपकी प्रशंसा की थी और आपको किसी नायक की तरह सराहा था ।  इसे बहुत जल्दी निराशा समाप्त कर आशा में बदलने में मदद मिलती है ।

लेकिन अंत में यह ध्यान ही रखना चाहिए कि आशा की मनोदशा को ही चुने और "आप कभी निराश ना हो।"(you never disappoint)


श्री मति माधुरी बाजपेयी

मण्डला ,मध्यप्रदेश, भारत

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