शिक्षक दिवस 2022 | प्रेरणा के स्रोत शिक्षक | Teachers day 2020

       मनुष्य रूपी देह का निर्माण माँ के गर्भ से फलता,फूलता है, जब वह आकार रूप में पूर्णता की ओर होता है तो आतुरता से जन्म लेकर इस संसार-सागर में विचरण के लिए आता है,5 वर्ष तक माता-पिता सहित परिवार के सारे सदस्य,उसके आचार,विचार,संस्कार के निर्माण के लिए अपना बहुमूल्य समय प्रतिपल देते हैं,तदुपरांत उसकी सुव्यवस्थित जीवन की धारा को प्रवाहित करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है,और यही शिक्षा जब कोई मार्गदर्शक के सानिध्य में रहकर प्राप्त की जाती है,तो उस मार्ग दर्शक को शिक्षक अथवा गुरु के भाव मे हम जानते हैं।

माधुरी बाजपेयी शिक्षक दिवस

Teachers day(शिक्षक दिवस)पर विशेष :- शिक्षा जगत के सम्मानीय शिक्षकों को मेरा नमन,

             5 सितम्बर उनकी याद में मनाया जाता है जो हमेशा कहा करते थे :- शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की, जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।

उपनिषद के अनुसार 

               मुंडकोपनिषद् के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है : अपरा विद्या और परा विद्या । संसार के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं, वह अपरा विद्या है । जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, इतिहास आदि । दूसरी विद्या है आत्मा-परमात्मा का ज्ञान, जो कि देश-काल-कारण से परे है, इसे परा विद्या कहते हैं ।

                प्राचीनकाल में हमारे शिक्षा-संस्थानों में, जिन्हें हम ‘गुरुकुल’ कहते थे, ये दोनों प्रकार की विद्याएँ शिष्य को दी जाती थीं । किंतु आजकल के अधिकांश शिक्षा-संस्थानों में केवल अपरा (लौकिक) विद्या ही दी जाती है, परा (अलौकिक) विद्या को कोई स्थान ही नहीं दिया जाता । आत्माभिव्यक्ति एवं आत्मानुभूति की पूर्णतः उपेक्षा की गयी है । यही कारण है कि केवल आधुनिक शिक्षा को ही केन्द्र बनानेवाले समृद्ध राष्ट्रों की अति दयनीय स्थिति है और उनके विद्यार्थियों में अशांति, ईर्ष्या, तनाव, चिंता, अस्वस्थता आदि कई दुर्गुण-समस्याएँ बाल्यकाल से ही पनप रही हैं ।

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अब जाने भगवान दत्तात्रेय जी के, जीवन के कुछ शिक्षकों के नाम और उनके शिक्षकों के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा -

भगवान दत्तात्रेय गुरु(शिक्षक) की खोज में नहीं निकले, अपितु उन्होंने परमात्मा रचित इस सृष्टि में ही अपने गुरुओं(शिक्षकों) को खोज निकाला। भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं(शिक्षकों) व उनसे प्राप्त शिक्षा का विवरण निम्नानुसार है :

सूर्य से सीखा कि वह एक होने के बावज़ूद अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। ठीक उसी तरह एक आत्मा विभिन्न देहों के रूप में अलग-अलग दिखाई देती है, परंतु आत्मा होती एक ही है, जैसे कि सूर्य एक है।

पृथ्वी से पृथ्वी से सहनशीलता व परोपकार की भावना सीखी। पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी उसका सदुपयोग-दुरुपयोग दोनों करते हैं, परंतु वह माता की तरह आघात को परोपकार की भावना से निरंतर सहनशीलता बनाए रखती है।

पिंगला से सीखा जो कि पिंगला एक वेश्या थी, जिसने धन कमाने की लालसा में वेश्यावृत्ति का मार्ग अपनाया था, परंतु जब एक दिन उसके मन में वैराग्य जागा, तो उसे समझ में आया कि वास्तविक सुख धन में नहीं, अपितु परमात्मा के ध्यान में है। आत्म-साक्षात्कार के बिना स्थायी सुख संभव नहीं है।  पिंगला के इस हृदय परिवर्तन को देखते हुए उसे अपना गुरु(शिक्षक) माना।

कबूतर से सीखा कि कबूतर के माध्यम से दत्तात्रेय ने मोह के बंधन को तोड़ने की कला सीखी। जब उन्होंने देखा कि कबूतर का एक जोड़ जाल में फँसे बच्चों को बचाने के चक्कर में स्वयं भी जाल में जा फँसा, तो दत्तात्रेय का विवेक जागृत हुआ कि किसी से भी अपेक्षा से अधिक स्नेह-मोह प्राणी को केवल और केवल दु:ख ही देता है।

वायु : वायु निरंतर गतिशील रहती है। संतप्तों को सांत्वना देते हुए, गंध को वहन करते हुए भी वायु निर्लिप्त रहती है। पवन की इन्हीं विशेषताओं ने उसे दत्तात्रेय जी का गुरु (शिक्षक)बनाया।

मृग-मछली : मृग अपनी मस्ती और उछल-कूद में इतना मदमस्त हो जाता है कि उसे अपने आस-पास आने वाले हिंसक प्राणियों का भान तक नहीं रहता और यही उसकी मृत्यु का कारण बनता है। दत्तात्रेय ने मृग को गुरु(शिक्षक) मानते हुए सीखा कि कभी भी मौज-मस्ती को लापरवाही में नहीं बदलना चाहिए। इसी प्रकार जिह्वा की लोलूप मछली को मछुआरे के जाल में तड़पते देख दत्तात्रेय ने उसे गुरु माना और सीखा कि लोलूपता या लोभ सदैव हानि पहुँचाते हैं।

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समुद्र : नदियों के अकूत जल प्रवाह, अच्छे-बुरे सभी प्रकार के जल को ग्रहण करने के बावज़ूद सागर कभी छलकता नहीं है। सागर से दत्तात्रेय ने स्वयं को और अपने हृदय को विशाल बनाने की सीख ली।

पतंगा : पतंगे को आग के आकर्षण से सदैव मृत्यु ही मिलती है। दत्तात्रेय ने सीखा कि मनुष्य को रंग-रूप-आकार आदि के आकर्षण और मिथ्या मोहजाल में नहीं उलझना चाहिए और जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए।

आकाश : अनेक ब्रह्मांडों को समाए आकाश से निराभिमान का गुण सीखना चाहिए। इसीलिए दत्तात्रेय ने निरंकारी आकाश को गुरु(शिक्षक) के रूप में वरण किया।

जल : सभी प्राणियों के जीवन का महत्वपूर्ण स्रोत जल है, जो सदैव सरल और तरल रहता है। कितना भी तपाएँ, फिर भी शीतलता का मूल स्वरूप नहीं छोड़ता। सभी को जीवन देने वाले जल को दत्तात्रेय ने अपना गुरु(शिक्षक)माना।

यम : यम का नाम सुनते ही लोग मृत्यु के भय से काँपने लगते हैं, परंतु दत्तात्रेय यम को अनुपयोगी को हटाने वाला, अभिवृद्धि पर नियंत्रण रखने वाला, संसार यात्रा से थके हुए लोगों को विश्राम देने वाला महान देव माना और उन्हें गुरु (शिक्षक)बनाया।

अग्नि : ऊर्ध्वमुखी अग्नि निरंतर प्रकाशमान है, संग्रह से दूर रखने वाली है और उसे स्पर्श करने वाले को अपना रूप दे देती है। दत्तात्रेय ने अग्नि के इन्हीं गुणों के कारण उसे अपना गुरु (शिक्षक) वरण किया।

चंद्र : स्वयं प्रकाशित न होने के बावज़ूद सूर्य से प्रकाश लेकर भी चंद्र पृथ्वी लोक में रात्रि में प्रकाश फैला कर यह संदेश देता है कि विपत्ति में भी निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि हर अमावस्या के बाद पूर्णिमा भी आती है। चंद्र का धैर्य गुण दत्तात्रेय को उन्हें अपना गुरु (शिक्षक)  बनाता है।

अजगर : अजगर में जो सहनशीलता है, वह प्रत्येक प्राणी में हो, तो वह कभी भूख से विचलित नहीं हो सकता। अजगर ठंड के मौसम में भूख लगने पर मिट्टी खाकर भी जीवन यापन कर लेता है। उसकी इसी सहनशीलता के कारण दत्तात्रेय ने अजगर को गुरु (शिक्षक) माना।

मधु मक्खी : दत्तात्रेय ने मधु मक्खी के जीवन कार्य में अद्भुत साधना देखी। पुष्पों का मधुर संचय कर दूसरों को मधु देने में लगी रहने वाली मधु मक्खी परमार्थी है।

भौंरा : भौंरे में यह गुण है कि वह अलग-अलग फूलों से पराग लेता है। दत्तात्रेय ने भौरे को गुरु (शिक्षक) मान कर उससे सीखा कि हमें सदैव अच्छी बातें सीखने के लिए भौरों जैसा होना चाहिए।

हाथी : हाथी पर सदैव काम सवार रहता है। यही कारण है कि वह शिकारियों के बिछाए काम जाल में फँस कर जीवन भर दासता का वरण कर लेता है। दत्तात्रेय ने हाथी को गुरु मान कर वासना के दुष्परिणामों से सावधान रहना सीखा।

काक : दत्तात्रेय को काक (कौआ) ने सिखाय कि धूर्तता और स्वार्थपरकता की नीति अंतत: हानिकारक ही होती है।

अबोध बालक : संसार के मोह-माया के जाल से मुक्त अबोध (नवजात) बालक राग, द्वेष, चिंता, काम, क्रोध, लोभ आदि गुणों से रहित होता है और इसीलिए वह सुखी तथा शांत होता है। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में अबोध बालक की तरह निर्दोष बनना चाहिए।

धान कूटती स्त्री : दत्तात्रेय ने देखा कि धान कूटती स्त्री की चूड़ियाँ खनक रही थीं। घर आए अतिथियों को पता न लगे, इसलिए उसने दोनों हाथों में एक-एक चूड़ियाँ ही रहने दीं। दत्तात्रेय ने इस स्त्री से सीखा कि अनेक कामनाओं के रहते चूड़ियों की तरह मन में संघर्ष होते रहते हैं, परंतु यदि एक लक्ष्य निर्धारित कर लिया जाए, तो सभी उद्वेग-आवेगों का शमन हो जाता है।

लुहार : लोहार को भठ्ठी में लोहे के टूटे-फूटे टुकड़ों को गर्म कर हथौड़े की चोट से कई तरह के सामान बनाते देख दत्तात्रेय ने सीखा कि निरुपयोगी और कठोर प्रतीत होने वाला मानव भी यदि स्वयं को तपाने और चोट सहने को तैयार हो जाए, तो वह एक उपयोगी उपकरण बन सकता है।

सर्प : सर्प अपनी प्रकृति के अनुसार दूसरों को कष्ट देता है और प्रत्युत्तर में त्रास पाता है। दत्तात्रेय ने सर्प को गुरु मानते हुए सीखा कि उद्दंड, क्रोधी, आक्रामक और आततायी होना किसी के लिए भी हितकर नहीं है।

मकड़ी : मकड़ी के जाल बुनने की क्रिया देख कर दत्तात्रेय ने सीखा कि प्रत्येक मनुष्य का जगत वह स्वयं बनाता है और मकड़ी की तरह फँस कर सुख और दु:ख की अनुभूति करता है।

भृंगज : भृंगज कीड़ा एक झींगुर को पकड़ कर लाया और अपनी भुनभुनाहट से प्रभावित कर उसे अपने समान बना लिया। दत्तात्रेय ने भृंगज को गुरु (शिक्षक) मानते हुए यह सीखा कि एकाग्रता व तन्मयता के माध्यम से मनुष्य शारीरिक व मानसिक कायाकल्प करने में निश्चित रूप से सफल हो सकता है।

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आचार्य चाणक्य के अनुसार शिक्षक

"शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।” -आचार्य चाणक्य 

                  व्यक्ति एवं व्यवस्था को ये आभास कराना की यदि व्यक्ति की राष्ट की उपासना में आस्था नही रही तो तो उपासना के अन्य मार्ग भी संघर्ष मुक्त नही रह पायेंगे।अत: व्यक्ति से व्यक्ति व्यक्ति से समाज, व् समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक है । अत: शीघ्र ही व्यक्ति समाज एवं राष्ट को एक सूत्र में बांधना होगा । और वह सूत्र राष्ट्रीयता ही हो सकती है. शिक्षक इस चुनोती को स्वीकार करे व् शीघ्र ही राष्ट्र का नव निर्माण करने के लिए सिद्ध हो । संभव है की आपके मार्ग में बाधाये आएँगी। पर शिक्षक को उन पर विजय पानी होगी।और आवश्यकता पड़े तो शिक्षक शस्त्र उठाने में भी पीछे ना हटे। में स्वीकार करता हु की शिक्षक का सामर्थ्य शास्त्र है, और यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो और राष्ट्र मार्ग के कंटक सिर्फ शस्त्र की ही भाषा समझते हो तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ्य का परिचय अवश्य दे ।अन्यथा सामर्थ्यहीन शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नही कर पायेगा ।

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सांदीपनी एक कुशल शिक्षकTeachers day quotes

सांदीपनी एक कुशल शिक्षक थे , जो श्री कृष्ण जी को 64 कला सिखाने वाले शिक्षक थे,उन्होंने पाया कि उनका शिष्य इतना कुशल है कि वाणी निकलते ही सम्पूर्ण एकाग्रता से सुन कर परा और अपरा का ज्ञान शीघ्रता से आत्मसाद कर लेता है। तो उन्होंने भी शीघ्रता दिखाई और 64 दिन में, हर सुक्ष्म विज्ञान को कृष्ण के सामने प्रस्तूत कर दिया और कृष्ण ने स्थिर मति से ,अबलोकन से हर 64 कला को समझा और आत्म साद कर गए।

भगवान शिव ने दी हर क्षेत्र की शिक्षा

भगवान शिव एक अद्भुत शिक्षक थे, उन्होंने चाहे माँ पार्वती हों,या दतत्तात्रेय,या रावण या सप्तऋषि इत्यादि को शिक्षा के सूक्ष्म स्तर से परिचय कराया,और सम्पूर्ण विश्व में जीवन को जीने का अद्वतीय दृष्टिकोण भेजा ।

Teachers day quotes सुव्यवस्थित जीवन के निर्माता जिन्हें हम सम्मानीय शिक्षक कहते हैं उन्होंने हमें एक ऐंसा उपहार दिया है जो.....

न चोरहार्यं न च राजहार्यं
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं
विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥

अर्थ:- विद्यारुपी धन को कोई चुरा नही सकता,राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।

 श्लोक लोक 2 :-
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥

अर्थ :-  विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है । वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है । विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है । विद्या बडी देवता है।राजाओं में विद्या की पूजा होती है,धन की नही । इसलिए विद्याविहीन पशु ही है ।

श्लोक लोक 3 :-

अपूर्वः कोऽपि कोशोड्यं विद्यते तव भारति ।
व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥

अर्थ :- हे मां सरस्वती ! तेरा खज़ाना सचमुच अवर्णनीय है। खर्च करने से वह बढता है,और संभालने से कम होता है।

श्लोक लोक 4:-

नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥

अर्थ :- विद्या जैसा बंधु नहि, विद्या जैसा मित्र नहि, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहि ।

शिक्षकों का वह ज्ञान जो जीवन को हर राह में सम्भालता है।

श्लोक लोक 5 :-
कुलं छलं धनं चैव रुपं यौवनमेव च ।
विद्या राज्यं तपश्च एते चाष्टमदाः स्मृताः ॥

अर्थ :- कुल, छल, धन, रुप, यौवन, विद्या, अधिकार, और तपस्या – ये आठ मद हैं ।

श्लोक लोक 6 :-

सालस्यो गर्वितो निद्रः परहस्तेन लेखकः ।
अल्पविद्यो विवादी च षडेते आत्मघातकाः ॥

अर्थ :- आलसी, गर्विष्ठ, अति सोना, पराये के पास लिखाना, अल्प विद्या, और वाद-विवाद ये छे आत्मघाती हैं ।

madhuribajpai.com की तरफ से सभी जीवन को बनाने वाले युग निर्माताओं, जीवन को सजाने वाले कारीगरों,शिष्य को ऊँचा उठाने वाले समय मार्गदर्शकों, को सादर वन्दन है और नमन हैं।

यह पोस्ट सभी शिक्षकों को समर्पित हैं।

Happy teachers day

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