हम और हमारे स्नेहियों
को एक करने का उत्सव
"कजलिया(भुजलिया) kajliya
उत्सव utsv"
जब कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह धान की रोपाई करके एक आशा और विश्वास से यह श्रम करता है की उसकी फसल भविष्य में बहुत अच्छे से होगी ।
तब वह रक्षाबंधन के ठीक दूसरे दिन के बाद काजलिया का यह उत्तम उत्सव मनाता है ।
भारत के भिन्न - भिन्न इलाके और विशेषकर कुछ बुन्देलखण्ड और कुछ मध्यप्रदेश के स्थानों में प्रतीक के रूप में अपने अपने घरों में कुछ बीजों को मिट्टियों में दबा कर रखा जाता है।
वे बीज धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं और फिर उन सारी बीजों से उत्पन्न हुई काजलियो(भूजलियों)(kajliya)को इसी उत्तम दिन में, किसी एक स्थान पर इकट्ठा करके गोल घेरे के रूप में रख दिया जाता है
इस दौरान कुछ कार्यक्रम भी रखे जाते हैं :-
उन कजलियों kajliya के चारों तरफ लोगों के द्वारा खुशी को आपस में बांटने के लिए झूम कर -
"भजन,कीर्तन,दोहे,चौपाइयां, छंद का गायन के साथ-साथ सैला नृत्य इत्यादि बड़े भाव से किया जाता है। और विभिन्न प्रकार के मनमोहक कार्यक्रम किए जाते हैं ।"
तद उपरांत कार्यक्रम को आगे बढाते हुये, कजलियों का पूजन,आरती,पारम्परिक गीतों के साथ परिक्रमा की जाती है।
कन्याओं और महिलाओं को एक-एक कजलियाkajliya सिर में रख कर नदी में विसर्जन के लिए ले जाया जाता है ।
एक क्रम में कन्याओं अथवा महिलाओं के ठीक आगे पूरे हर्षोल्लास से नृत्य और गायन के साथ लोग आगे-आगे ढोलक मंजीरे के साथ झूमते हुए जाते हैं ।
नदी में विसर्जन के बाद उसमें से कुछ (कजलियों) kajliya भूजलियों को निकालते हैं विसर्जन के बाद
सबसे पहले गांव या शहर में वरिष्ठ जनों को,पड़ोसियों को,मित्र जनो को, माता-पिता घर के सारे छोटे भाई-बहन,भद्र लोगों को भिन्न - भिन्न तरीके से कजलिया (kajliya) दे कर उन लोगों से आशीष लिया जाता हैं, हम उम्र से गले मिलते हैं।
इसके पीछे जो भी हमारे मन में किसी भी तरीके से आपसी विकार उत्पन्न हुआ है , वह समाप्त हो, हमारी मन की स्थिति एक हो, हम और हमारा स्नेही एक हो जाए यह चिंतन है।
इस तरह से पूरे उमंग से यह उत्सव लोग करते हैं अंत में कार्यक्रम की समाप्ति होती है ।
यह भुजलिया(कजलिया)(kajliya) खुशहाली और एक आशा का पर्व के रूप में मनाया जाता है जिससे जीवन खुशियों से भर जाए और शांति,एकता के साथ आपसी भाई-चारा जीवन में आ जाये।।
श्री मति माधुरी बाजपेयी
मण्डला
मध्यप्रदेश
भारत
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