जन्म अष्टमी एक उत्तम अवसर(jnm ashtami ek uttam absar)

जन्मअष्टमी एक सादगी और ताजगी का उत्सव है।

          आज के दिन ही पूरे विश्व में एक ऐंसा प्रतिभावान व्यक्तित्व ने जन्म लिया जो पूर्ण रूप से किसी साधक की तरह स्व बोध से भरा हुआ,और किसी वैज्ञानिक की तरह उस समय की श्रेष्ठ तकनीक को स्वीकार कर उपयोग में लाने वाला,कुशल 16 ललित कलाओं को स्वयं में समाहित कर हर परिस्थिति में स्वयं को अनुकूल करने वाला शांत चित्त है,जिसे हम भिन्न - भिन्न नाम से पुकारते हैं,

जो माँ यशोदा का लल्ला,गोपियों और मित्रों का कृष्ण है और हम उस नूतन मन मोहित कर देने वाली छवि को श्रीकृष्ण भगवान के रूप में जानते हैं।

      आज के दिन भगवान श्री कृष्ण जी को दर्शन कर स्वयं को शांत चित्त रहने की प्रेरणा भक्त जन लेते हैं और हर्षो उल्लास से इस जन्म अष्टमी jnm ashtami को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं,क्यों कि कृष्ण रास नृत्य करते हुए,कभी प्रेम पूर्ण बंसी बजाते हुए, कभी युद्ध करते हुए शांत चित्त हैं।

जाने क्यो प्रेम के किसी भी कृत से तृप्ति नही होती।और जाने कैसे हो प्रेम में तृप्ति प्रेम में तृप्ति की राह को आसान कीजिये बस अब पढ़िये 

        हम सभी का मन श्री कृष्ण की इस तरह की प्रस्तूति देख पूर्ण हर्ष में डूब जाता है,आज के दिन श्री कृष्ण जी के भक्त ठीक अपने भगवान के लिए शुभ मुहुर्त अष्टमी तिथि 11 अगस्त मंगलवार सुबह 9:06 बजे से व्रत रखेंगे । 

        इस अवसर पर भक्त जन मंदिरों को अपने प्रभु की याद में सजाकर,घरों को सजाकर उनमें विशेष कृष्ण जी का पूजन,भजन,झूम कर तथा कहीं- कहीं नाट्य प्रस्तूति देखी जाती है।और भिन्न प्रकार के कीर्तन से अपने प्रभु की भक्ति में मग्न रहते हैं ।

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       कहीं - कहीं भक्त जन अपने प्रभु भगवान श्री कृष्ण जी को  56 भोग लगाने की व्यवस्था की जाती है जिसमे शामिल है- 20 तरह की मिठाई, 16 तरह की नमकीन और 20 तरह के ड्राई फ्रूट्स चढ़ाते हैं। आमतौर पर छप्पन भोग में माखन मिश्री, खीर, बादाम का दूध, टिक्की, काजू, बादाम, पिस्ता, रसगुल्ला, जलेबी, लड्डू, रबड़ी, मठरी, मालपुआ, मोहनभोग, चटनी, मूंग दाल का हलवा, पकौड़ा, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, लौकी की सब्जी, पूरी, मुरब्बा, साग, दही, चावल, इलायची, दाल, कढ़ी, घेवर, चिला और पापड़ होती है।

एक रहस्यमयी काव्य

हे कृष्ण तुम पर क्या लिखूं! कितना लिखूं!       

             रहोगे तुम फिर भी 

अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

प्रेम का सागर लिखूं! या चेतना का चिंतन लिखूं!  

                प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं!               रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं!    

      कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं।   रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं।।     

        चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं।।                    रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।।     

          देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।।          रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

 गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।।   

           रुक्मणि का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।       रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।    

          वासुदेव का तनय लिखूं या नंद का गोपाल लिखूं।              रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

 नदियों-सा बहता लिखूं या सागर-सा गहरा लिखूं।।   

         झरनों-सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।।            रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

 आत्मतत्व चिंतन लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।  

         स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं।।            रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं!

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं! कितना लिखूं!                       रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं।

        भगवान श्री कृष्ण किसी भी बन्धन से मुक्त हैं, और बालकाल से ही माँ यशोदा के दुलारे कृष्ण स्वतंत्रता से गाये चराना और भिन्न भिन्न कार्यों का बेटोक निष्पादन किया करते थे, बाल काल के संकटों  ने उनका स्वप्रशिक्षण करना प्रारम्भ कर दिया,हर संकट उनको नया करते जाता,और भविष्य को भी उनके नजर में स्पष्ट करता जाता।

        कृष्ण पूर्ण रूप से योजनाबध्द व्यक्तित्त्व रहे हैं,चाहे माखन चुराने की बात हो,चाहे रास नृत्य की  बात हो,चाहे किसी से भी तरह के सम्वाद करने की बात हो, चाहे कंस के बध की बात हो या फिर महाभारत के युद्ध की आदि - आदि और भी अनेक घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है ।

आइए हम सब मिलकर आज के इस लेख को भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित करते हैं ।

गोकुल में जो करे निवास।                                                   गोपियों संग जो रचाए रास।                                         देवकी यशोदा जिनकी मइया।                                           ऐसे हमारे कृष्ण कन्हैया!

जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

भगवान श्रीकृष्ण जी को मेरा नमन  हे प्रभु श्री कृष्ण मेरा नमन स्वीकार कीजिए।

श्रीमति माधुरी बाजपेयी

मण्डला

मध्यप्रदेश 

भारत

Gmail :-bhayeebheen@gmail.com

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