हरछठ(हलछठ)व्रत,कथा पूजन(hrchhth vrt ktha pojn)

              हलषष्ठी,(हरछठ)व्रत का संक्षिप्त

                                सूक्ष्म अवलोकन

        भारतीय जीवन पद्धति में भिन्न - भिन्न  प्रकार के, व्रतों, प्रार्थनाओं,उपासनाओं की संरचना की गई है।


       जिसमें से आज संक्षिप्त रूप से लेकिन अत्यन्त ही महत्तपूर्ण तरीके से हलषष्टी halshthi,हरछठ hrchhth के बारे में जानेंगे :-

       भाद्र मास के कृष्ण पक्ष षष्ठी को हरछठ व्रत मनाया जाता है . इस व्रत को हलषष्ठी, हलछठ , हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ, या खमर छठ भी कहा जाता है।इस दिन किसान अपने हल की और बैल बछड़ों की भी पूजा करते हैं

        इसी माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को इस पर्व में भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में भी इसे मनाया जाता है। यह व्रत संतान की लम्बी आयु के लिए मातायें सम्पूर्ण प्रेम,स्नेह,सम्वेदना ,हर्षोल्लास के साथ रखती हैं। 

हरछठ व्रत की पद्धती,कला को बढाने वाली पद्धति है।

विशेष नियम :-

आयुर्वेद के अनुकूल यही वह दिन है जब विशेष रूप से पसई की धान के चावल और भैंस के दूध से बने मिष्ठान खाए जाते हैं।

​इस दिन महिलाओं के द्वारा हल से जुता हुआ आनाज सेवन नही किया जाता।

​इस दिन गाय का दूध,अथवा घी सेवन निषेद।

​          केवल बृक्ष पर लगे खाद्य पदार्थ ही सेवन की अनुमति होती है। (विशेष रूप से महुए के फल का उपयोग सेवन में लिया जाता है।)

​पूजा समाप्ति के बाद पूजन स्थल पर ही भगवान के पास बैठकर भैंस के दूध,घी,दही से निर्मित खाद्य पदार्थ,फल इत्यादि का सेवन किया जाती है।

कथा करने से पूर्व कुछ विशेष नियम:-

  1. प्रातःकाल उठकर (आयुर्वेद के अनुरूप) महुए की लकड़ी से निर्मित दातून से दांत साफ किये जाते हैं स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।
  2. ​पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर लाएं।
  3. ​इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई 'हरछठ' को जमीन पर स्थापित कर दें।
  4. ​तपश्चात इसकी पूजा करें।
  5. ​पूजा में सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग) चढ़ाने के बाद धूल, हरी कजरियां, होली की राख, होली पर भूने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं।
  6. ​हरछठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें।
  7. ​पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करें।
  8. ​सारे कार्य श्रीमान पण्डित जी के निर्देशन में कीजिये।
  9. ​पूजन में शिव व माता गौरा की पूजा की जाती है,​फिर हरछठ माता की पूजन की जाती है।

  10. ​पश्चात कथा श्रीमान पण्डित जी कहेंगे और पूजन के स्थान में बैठे श्रेता सुनेंगे।

​सम्पूर्ण कथा हेतु click कीजिये।

   कथा का निष्कर्ष है :- भूल सुधार हेतु क्षमा देना व लेना अत्यंत ही उत्तम तरीका है। जीवन तभी विकसित होता है जब हम अपने प्रलोभनों में रह कर विवेक हीन न हो जाएं। अन्यथा हरछठ माई हमारे सन्तानो की रक्षा कैसे करेगी।

विशेष :- जन्म से 6 माह तक शिशु का पोषण और सुरक्षा का उत्तरदायित्व हरछठ माता  का होता है,इस लिए इन्हें बच्चों की रक्षा करने वाली माता भी कहा जाता है।

 इन व्रतों व उपासना पद्धतियों को  ऋषियों ने बड़े ही सूक्ष्म अवलोकन से  देखा और जाना कि आयुर्वेद अनुसार हर ऋतु में शरीर किस प्रकार  की गतिविधियों को सम्पन्न करता है,

 ज्योतिष की गणना के हिसाब से ग्रहों की आकाश में क्या स्थिति होती है ।

    मन किस समय कितना एकाग्र होता है उसी समय पूजा प्रार्थना,व्रत रखें जाएं, यदि मन एकाग्र नही है तो किन उपाय को कर मन एकाग्र किया जाए इत्यादि - इत्यादि  फिर ऋषियों ने ऐंसे व्रतों व उपासना विधियों की रचना करना प्रारम्भ किया जिसमें उन्होंने ऋतु को ध्यान में रख कर प्रसाद का चयन किया ।मन मे उठने वाले कम्पन को ध्यान में रखकर मन्त्रों की रचना की।

हर मन्त्रों की सूक्ष्म ध्वनि से ग्रहों पर पड़ने वाले विशेष प्रभाव का शरीर मे सूक्ष्म असर को ध्यान में रखकर उनका निर्माण किया।

       परिवारिक एकता,और सामाजिक अखण्डता को ध्यान में रख कर इन पद्धतियों में विशेष कथाओं और सारे आपसी जनों का एक-साथ पूजन,भजन,कीर्तन की रचना की।

     ऋषियों ने,व्यक्ति के संकल्प शक्ति बढ़ाने और शरीर, मन शुद्धिकरण हेतु पूजन काल के 1 या कुछ -कुछ स्थितियों 2 दिन या 1 सप्ताह पहले से ही शरीर और मन अनुशासित हों इस हेतु प्रार्थनाओं, उपासनाओं,व्रतों को ध्यान में रख कर कुछ सरल,कुछ कठिन नियामवली का निर्माण किया।

        आगे उन्होंने यह भी ध्यान में रखा कि हर व्यक्ति सारे काम नहीं कर सकता तो ऋषियों के काल से ही बसोड़,कुम्हार,मूर्तिकार, आदि एवं छोटे छोटे व्यपारी जो - फल,फूल,दूर्वा,पत्ता इत्यादि टिकली,बिंदी,चूड़ी,महाबर इत्यादि ।

  और भी भिन्न -भिन्न प्रकार की पूजन समाग्री की विक्रेताओं को भी पूजन की पवित्र वस्तुएं देंने हेतु व्यवस्था में इन पद्धतियों में विशेष स्थान दिया गया है।। 

      अंत मे समाज में रहने वाले हर कार्य के अनुरूप विभिन्न व्यक्तियों का जीवकोपार्जन हो,उनके कार्य,उनकी आय की स्थितियों को भी इस संरचना में स्थान दिया ।

  ऐंसी है हमारे ऋषियों की चिंतन प्रणाली जिसे हम नमन करते हैं।

जय हो हरछठ माई की

श्रीमति माधुरी बाजपेयी

मण्डला

मध्यप्रदेश 

भारत

Gmail :-bhayeebheen@gmail.com






 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ