गोगा पंचमी (Goga Pnchmi)

 दिव्यता से भरी हुई
"गोगा पंचमी"Goga Pnchmi 
          जब कोई भक्त की भक्ति चरम में पहुंचती है तब वह भक्त  धीरे - धीरे , भगवान के करीब पहुंच जाता है,और भगवान के सानिध्य में रहकर उन जैसे अंश उसके अंदर उत्पन्न होने लगते हैं। भारत के ऐंसे भक्त जिन्होंने भक्ति के माध्यम से जीवन को सम्पूर्ण आनन्द में जिया गोरखनाथ जी के प्रमूख भक्त "गोगा Goga जी" प्रमुख हैं।
      लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीरgugaa veer, जाहिर वीर Jahr veer ,राजा मण्डलिक व जाहर पीर jahr peer के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख तपस्वी शिष्यों में से एक थे। 
         राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं।
              फिर गोगाजी की समाधि पर आकर उन्हें व उनकी तपस्या से संचित उर्जा को नमन कर सूक्ष्म रूप से प्राप्त करते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं।
          जब कोई भक्त संतत्व के करीब पहुंचता है तब वह किसी भी सम्प्रदाय का न होकर केवल स्व के आनन्द में मस्त होता है,और सारे सम्प्रदाय उसके हो जाते हैं ऐंसे व्यक्ति के द्वारा किया गया आचरण धर्म,शौर्य,पराक्रम से ओत प्रोत होता है। जिसका उदाहरण गोगा जी के रूप में है।
          भारत के राजस्थान और उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर-भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव-गाँव में गोगा वीर गोगाजी का आदर्श व्यक्तित्व भक्तजनों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है।गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं। विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है।
            आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी goga ji ki medi तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है. भादों माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है ।
           गहनतम तप करके गुरु का साक्षात्कार करने वाले योगी,और अपने राज्य के सजग पहरी के रूप में रक्षा करने वाले शौर्यवान राजा,गुरू गोरखनाथ के अनन्य भक्त श्री गोगा जी को नमन ।

श्रीमति माधुरी बाजपेयी
मण्डला
मध्यप्रदेश
भारत
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