गोगा नवमी एक सन्त की याद में उत्सव(goga nvmi ek snt ki yad me utsv)

  श्रद्धा से भरी  हुई

"गोगा नवमी"

चलिए आज जाने एक "सन्त और योद्धा" के रूप में एक ही व्यक्तित्व को...


         आज के दिन एक ऐंसे व्यक्तित्व का जन्म हुआ जो माता बाछल देवी के दुलारे,श्री गोरख नाथ जी के भक्त और शिष्य,एक योग की असीम उपलब्धी को प्राप्त,नागों के देवता,और हमारी सन्तानो के रखवाले,जिनका नाम कुशल योद्धा,शौर्यवान वीर कुशल निर्णय कर्ता में सुमार है,जो हमारे भारत के अमूल्य देव तुल्य निधि हैं, वे जाहरबीर जी या गोगा जी जैसे भिन्न-भीन्न नामो से भी विख्यात हैं,उनके जन्म के उत्सव को गोगा नवमी goga nvmi के रूप में मनाया जाता है ।

     यह भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की नवमी पर विशेष कर वाल्मिकी समाज और श्रद्धा अनुसार अलग-अलग जगह  बड़े उत्साह से श्री गोगा नवमी मनाई जाती है। इस त्यौहार को खासतौर से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान,उत्तरप्रदेश जैसे इलाके में मनाया जाता है। इसे गुग्गा नवमी goga nvmi भी कहा जाता है।

गोगा जी का जन्म

          भारत के महान संत और योद्धा एक साथ, जन-जन के आराध्य एवं राजस्थान के महापुरुष कहे जाने वाले गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था।गोगा जी की माँ बाछल देवी निसंतान थीं। संतान प्राप्ति के सभी प्रयत्न करने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई। एक बार गुरु गोरखनाथ बाछल देवी के राज्य में 'गोगा मेडी ' पर तपस्या करने आए। बाछल देवी उनकी शरण में गई तथा गोरखनाथ ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और साथ में 'गुगल' नामक अभिमंत्रित किया हुआ फल उन्हें प्रसाद के रूप में दिया

माता बाछल को गोरखनाथ जी का आशीर्वाद

       गोरख नाथ जी ने माता बाछल को आशीर्वाद दिया कि उसका पुत्र वीर तथा नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। इस प्रकार रानी बाछल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम गुग्गा रखा गया।

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हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है यह उत्सव

       कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं,इस तरह गोगा जी का स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्धा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।

यह उत्सव गोगा पंचमी से प्रारम्भ जो जाता है
     इस अवसर पर -


  • गोगा देव के भक्त अपने घरों में ईष्टदेव की वेदी बनाते हैं।

  •  साथ ही अखंड ज्योति जागरण कराते हैं।

  •  वहीं, गोगा देवजी की शौर्य गाथा और जन्म कथा का पाठ करते हैं। इसे जाहरवीर का जोत कथा जागरण कहा जाता है।

  • कई जगहें तो ऐसी भी हैं जहां मेले लगाए जाते हैं। साथ ही शोभायात्राएं निकाली जाती हैं।

  •  गोगा देव को खीर तथा मालपुआ का भोग लगाया जाता है।

  •  इस त्यौहार को लेकर यह मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी अगर घर पर रखी जाए तो सर्पभय नहीं रहता है।

        गोगा जी की याद में आज के दिन गोगा मेड़ी में मेला का आयोजन किया जाता है।

         इस तरह जब कोई साधक बहुआयामी होकर भौतिक रूप न होने पर भी सूक्ष्म होने का एहसास करा देता है,हमारे जीवन की बिगड़ी हुई दिशा को सुधार कर उसे उत्साह से भर कर,पल-पल खुशियों से भर देता है,और हम नमन से झुक ही जाते हैं इस व्यक्तित्व के सामने।यहां तक कि हमे प्रेरणा के रूप में नूतन ऊर्जा,गुरु भक्ति की मर्यादा,भक्त से शिष्य बनने की प्रक्रिया,जीवन मे शौर्यता,अखण्डता,गहरे संकल्प से जीने की कला प्रदान करे साथ ही अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते है ऐंसे साधक को हम "गोगा जी" के रूप में हम जनाते हैं।

 

गोगा नवमी पर श्री गोगा जी को नमन

 

 

श्रीमति माधुरी बाजपेयी

मण्डला

मध्यप्रदेश

भारत

Gmail :-bhayeebheen@gmail.com



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