हमारी गौरवशाली स्वतन्त्रता के महारथी

 स्वतंत्रता एक एहसास है

              एक ऐंसे हमारे राष्ट्र के आत्म बल और गौरब से भरे हुए सम्पूर्ण उत्साह और तेज जिनमे राष्ट्र के लिए बहता था , जो पहले स्वयं के उत्थान को करके ,फिर जन जागरूक कर योद्धाओं का निर्माण का कार्य करते थे, ऐंसे ऊत्तम पुरुष,या दूरदर्शी,जिनकी चिंतन पद्धति में एक ही लक्ष्य था ,भारत स्वतंत्र राष्ट्र हो,और सम्पूर्ण स्वतन्त्रता मिले ऐंसे राष्ट्र भक्त-

श्रीमान सुभाष चन्द्र बोस जी के बारे में जानें-------

          एक समय की बात है जब श्री मान सुभाष चन्द्र जी बोस को  ICS की परीक्षा में चयनित होना पड़ा,उनके पिता का सपना था -"कि मेरा बेटा कलेक्टर बने,चूंकि कल्पना को साकार करना था तो पिता कभी कभी तर्क बच्चे को देते थे , कि तेरे अंदर चतुराई की कमी है ।"

        ' इस हेतु तू ICS की परीक्षा फेस नही करना चाहता, तू बहाना बनाता है,तुझमें पात्रता कम है, जब पिता हर दो-चार दिन में निरन्तर यह कहने लगे तो अन्त में मजबूर होकर स्वयं की पात्रता को सिद्ध करने के लिए श्री सुभाष चन्द्र बोस जी ने ICS की परीक्षा देने का संकल्प किया,' और उन दिनों  वे लन्दन की केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेकर 

जिस ICS की परीक्षा में पढ़कर लोग 4-4 साल लगा देते हैं फिर जाकर कहीं पास हो पाते हैं।

               जिस ICS की परीक्षा भारतीयों को टॉप करना उस जमाने मे सम्भव नही था उस समय यह परीक्षा में टॉप केवल अंग्रेज ही कर पाते थे।

             ऐंसी ICS की परीक्षा की तैयार,श्री सुभाष चन्द्र बोस ने  7 महीने तक की और ICS की परीक्षा को देने बैठे।

         जब परीक्षा हो गयी तब रिजल्ट देखने की बारी आई, श्री सुभाष चन्द्र जी के उन दिनों कुछ उनके सहयोगियों ने कहा पता चला है, कि लिस्ट लग गई है, हम देखते हैं कि तुम्हारा कौन सा  no. लगा,चयन हुआ कि नही।

         जब वे देखने के लिए गए तो उन सहयोगियों ने पाया कि उनका नाम कहीं नही हैं,श्री सुभाष चन्द्र तक यह बात पहुंची तो उन्होंने कहा कोई बात नही,

        लेकिन उसी दिन शाम के समय श्री सुभाष चन्द्र बोस के पास  ब्रिटिश goverment का किसी department का सेक्रेटी आया , उसने श्री सुभाष चन्द्र बोस जी से कहा "आपका नाम टॉपर वाली लिष्ट में 4 no. पर है,जो अभी लगी नहीं है

अब सुभाष चन्द्र बोस दुविधा में पड़ गये

अब तो में कलेक्टर बन जाऊंगा ,

और मुझे अंग्रेजों की इस लुट के तंत्र में शामिल होना पड़ेगा ,लूट का कुछ हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ेगा,

उनके मन मे यह द्वंद आ गया -

या तो लूट की व्यवस्था का सहयोग कर अंग्रेजो का साथ दूँ।  

या लूट की व्यवस्था से  बाहर होकर देश के लिए काम करूं ।

        इस तरह से धीरे-धीरे  यह विचार गहरा होता गया और अंत में उनका दिल ने कहा कि तुमको इस लूट का हिस्सा नहीं बनना है ,वरन देश के लिए काम करना है । 

       तुरन्त उन्होंने ब्रिटिश गवर्नमेंट को रिजाइन लेटर लिखा -  कि अब मेंने एक निर्णय लिया है कि मैं इस तंत्र में शामिल नहीं होना चाहता,मेरा दिल यह कहता है कि में देश ले लिए कार्य करूं आदि-आदि।

           जैसे ही रिजाइन लिखा , श्री सुभाष चन्द्र बोस जी ने वैसे ही ब्रिटिश सिस्टम में हड़कंप मच गया कि कैसे हुआ?? यह,इससे पहले किसी और भारतीय ICS को पास करने वालों ने तो ऐंसा नहीं किया। 

          इसके बाद वे रिजाइन लेटर देकर वहां से ,भारत वापस आ गए भारत जब पिता श्री को यह पता लगा तो उनके हृदय में वज्रपात जैसी स्थिति हुई और पिता ने कहा-'क्यों लात मारी ICS  को , तो श्री सुभाष चंद्र बोस जी ने कहा जब जब यह तंत्र लूट को महत्व देगा , तब - तब में इसे लात ही मारूंगा।'

              उन दिनों जैसे ही श्री सुभाष चन्द्र जी पानी के जहाज से ,  लन्दन से भारत के मुंबई में आए वैसे पूरी जनता उनके स्वागत के लिए जन सैलाब के रूप में एकत्रित हो गये,उसी समय एक साहस श्री सुभाष जी का जागा, "कि मेरे जॉब छोड़ने पर  जब इतने लोग मेरे स्वागत में आये,तब , जब में गांव -गांव जाऊंगा उस समय कितने ही लोग मेंरे पास देश के कार्य लिए इकट्ठे हो जाएंगे ।

            यही साहस उनको आजाद हिन्द फौज के निर्माण करने में मदद किया,और इस फौज का निर्माण भी उन्होंने भारत से बाहर किया।

              धीरे धीरे भारत के लोगों का उत्साह  श्री सुभाष जी की आजाद हिंद फौज की तरफ बढ़ने लगा, और इतना बढ़ा की फौज के संचालन हेतु माताओं ने मंगलसूत्र उतार कर दे दिए।।                                                                              और आगे यह उत्साह तब देखने को मिला, जब एक अंधे पुत्र की मां ने कहा -  कि मेरे पुत्र को भी फौज में भर्ती कर लीजिए तब श्री सुभाष चंद्र बोस कहते हैं "यह तो अंधा है यह फौज में कैसे रहेगा?? , तब उस मां का अंधा पुत्र कहता है फिर भी आप मुझे रख लीजिए में कुुुुछ न भी कर सकूं तब  भी मैं , दुश्मन की एक गोली को तो कम कर ही दूंगा ।'

         ऐंसा सम्पूर्ण उत्साह का वातावरण उस समय भारत में था ,लोगों लगने लगा था,कि अब तो स्वतन्त्रता मिलकर ही रहेगी।


         सुभाष चन्द्र बोस का सपना था , - कि भारत से केवल अंग्रेजों को ही नही ,अंग्रेजियत को भी भगाना होगा।

समस्त भारत वासी से विनम्र आग्रह है कि स्वतंत्रता के इस एहसास को जगाए रखें।यही ऊर्जा भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करेगी।

श्रद्धा पूर्ण नमन ऐंसे योद्धा व विचारक,मार्गदर्शक,का 

स्वतन्त्रता दिवस की आप सभी को           शुभकामना

श्री मति माधुरी बाजपेयी

मण्डला,मध्यप्रदेश,भारत,                                           Gmail :- bhayeebheen@gmail.com

Telegream :-   https://t.me/MadhuriBajpeyee

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