जय माँ अन्नपूर्णा(Jay ma anporna)


'देवी भागवत के अंतर्गत राजा बृहद्रथ की कथा'

भगवती अन्नपूर्णा की महिमा

बोलिए अन्नपूर्णा माता की जय 

भगवान नारायण महाराज जी से कहते हैं कि, हिमालय के किसी प्रदेश में चक्रवात पक्षी रहता था। वह अनेक देशों में घूमता हुआ काशी आ पहुंचा । देवयोग से वह  पक्षी भगवती अन्नपूर्णा के दिव्य धाम में जा पहुंचा। वहां वह पक्षी अनाथ की भांति चावल के दानों के लोभ से वशीभूत होकर ही गया था । उस समय आकाश में भ्रमण करते हुए अनायास ही उसके द्वारा मंदिर की प्रदक्षिणा हो गई , फलतः किसी अन्य देश में न जाकर वह मुक्तिदायिनी काशी में ही रहने लगा ।

जय माँ अन्नपूर्णा(Jay ma anporna)

         कुछ दिनों के पश्चात वह पक्षी मर गया और स्वर्ग लोक को चला गया। वहां दिव्य रूप धारी युवक बनकर उसने समस्त स्वर्ग के सुखों को प्राप्त किया । स्वर्ग में वह दो कल्पों तक रहने के पश्चात पुनः भारतवर्ष में क्षत्रिय के वंश में उत्पन्न हुआ। भारत भूमि पर 'बृहद्रथ' नाम से उसकी ख्याति हुई। इसका मुख्य कारण यह था , कि वह सत्यवादी ,धर्मात्मा और यज्ञ करने वाला होते हुए , महाजितेंद्र तपस्वी एवं तीनों कालों का ज्ञाता  था ।  वह अपने समय का महापराक्रमी ,संयमी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला चक्रवर्ती राजा हुआ। उसे अपने पूर्वजन्मों की सभी बातें स्मरण थी , पृथ्वी पर यह बात आश्चर्यमयी जनश्रुति के सदृश्य सभी जगह फैल गई।
          यह बात जब ऋषि मुनियों के कानों तक पहुंची तो वह भी आशीष अजीत होकर महाराज बृहद्रथ  से मिलने के लिए उनकी राजधानी में आए । उस समय राजा ने भी उन ऋषि - मुनियों का यथोचित स्वागत सत्कार किया और बैठने के लिए उन्हें आसन प्रदान किया। इसके उपरांत ही वह राजा अपने सिंहासन पर बैठ गया, तब ऋषियों ने राजा से कहा - हे राजन् !किस पुण्य के प्रभाव से तुम्हें पूर्व जन्म की संपूर्ण बातें स्मरण  हो जाया करती हैं ? यह किस पुण्य तपोबल से तुम त्रिकाल ज्ञानी हो गए ? हो इसमें हमें सन से हो रहा है , अतः हम लोग इसी ज्ञान के रहस्य को जानने के लिए तुम्हारे पास आए हैं । उनके वचनों को सुनकर बृहद्रत ने इस प्रकार कहा - हे मुनि गण ! आप सभी मेरे त्रिकालज्ञ और ज्ञानी होने का कारण सुने - इस जन्म के पहले मैं चक्रवाक पक्षी की योनि में उत्पन्न हुआ था । तिर्यक योनि, नीच योनि कहीं जाती है ।जो पूर्व कर्म वर्ष मुझे प्राप्त हुई । पर सौभाग्य बस अचानक ही मैंने अन्नपूर्णा देवी के मंदिर की भ्रमण करते हुए प्रदक्षिणा कर ली । जिसके पुण्य फल के कारण में स्वर्ग चला गया और वहां दो युगों तक स्वर्ग का आनंद प्राप्त करता रहा है । हे मुनियों, उसी के प्रभाव से इस भूमंडल में जन्म लेने के बाद भी मुझे भूत ,भविष्य ,वर्तमान अर्थात तीनों कालों की बातें जानने की अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई।
          यह केवल भगवती अन्नपूर्णा के अज्ञात दर्शन एवं प्रतीक्षा का शुभफल है जिसका मुझे प्रत्यक्ष अनुभव है ,अहो जगत जननी भगवती श्री अन्नपूर्णा के चरण - कमलों का स्मरण करने से इतना फल प्राप्त होता है ,यह कौन जान सकता है ? क्योंकि आज उनकी महिमा का स्मरण करते ही मेरे नेत्रों में आनन्द रूपी अश्रु बह रहे हैं । संपूर्ण शरीर रोमांचित हो रहा है , तथा कंठ गदगद हो रहा है । किंतु धिक्कार है , उन कृतघ्नी पापी जनों को जो अपनी उपाश्या भगवती जगदंबा का भजन-पूजा नहीं करते । क्योंकि शिव पूजा अथवा विष्णु पूजा नित्य नहीं है, केवल एक मात्र परा देवी की उपासना ही नित्य है , यह श्रुति-स्मृति का कथन है।
         इसमें संदेह नहीं - अधिक कहां तक कहूं , यह निर्विवाद सत्य है कि भगवती अन्नपूर्णा के चरण-कमलों की निरंतर उपासना सदैव करनी चाहिए । क्योंकि इससे बढ़कर भूतल पर दूसरा कोई श्रेष्ठ कार्य नहीं है, चाहे निर्गणा हो , चाहे सगुण हो किसी भी देवी की भक्ति के साथ ही उनकी आराधना करनी चाहिए।
        इस प्रकार नारद से श्री नारायण भगवान ने यह कथा कहीं और इसके आगे कहा है - हे नारद राजऋषि बृहदत अति धर्मार्मात्मा राजा थे। उनकी वाणी सुनकर ऋषियों का ह्रदय प्रसन्नता से भर गया, वे सभी संतुष्ट व प्रसन्न चित्त होकर अपने-अपने स्थानों को चले गए । ऐंसी अपूर्व महिमाशालिनी देवी की पूजा-स्तुतिनक फल कितना होगा ? यह कौन जान  सकता है ? अर्थात भगवती अन्नपूर्णा के विषय में पृष्टा, श्रोता और वक्ता सभी अत्यंत दुर्लभ हैं।
       अर्थात- अतः हे मुनि ! यह तुम निश्चित समझ लेना कि जिन पर जगदम्बा की असीम कृपा होती है या जिनका जीवन सफल होने को होता है उन्हीं लोगों की देवी - पूजा पर श्रद्धा होती है । किंतु जो दुर्भाग्य के वशीभूत हैं, उनके हृदय में कभी भी श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती ।

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