धन्वन्तरी जी का इतिहास | Dhanteras is celebrated in memory of whose birth

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जीवन की सार्थकता उचित स्वास्थ्य पर निर्भर है।  Who is Dhanwantari??आइये एक ऐंसे व्यक्तित्व के बारे में हम जानते हैं जो देवों के चिकित्सक कहे जाते जाते हैं, जिनके नाम से आयुर्वेद जाना जाता है । जिनके 2 जन्म है ,पहले जन्म में वे भगवान विष्णु के अवतार के रूप में समुद्र मंथन से निकले,जब उनको देवताओं जैसी सिद्धि प्राप्त थी,तभी भगवान विष्णु के आशीर्वाद से उनका जन्म हुआ,इस पृथ्वी लोक में। और जन्म भी एक शिव भक्त की तपस्या के बाद भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप काशी के धन्वराज के पुत्र के रूप में । धन्वन्तरी जी का इतिहास,Dhanteras is celebrated in memory of whose birth.

धन्वन्तरी जी का इतिहास | Dhanteras is celebrated in memory of whose birth

           जन्म के करीब 5 साल के बाद धीरे-धीरे यह बच्चा विलक्षण प्रतिभाओं के चलते आयुर्वेद के बारे में रुचि दिखाता और मां-बाप इस प्रतिभा के बारे में थोड़ा जानते भी थे तो उन्होंने इस बालक को उसके अनुरूप वातावरण दिया । जैसे-जैसे बालक की उम्र बढ़ती जा रही थी बालक का ज्ञान भी शिखर पर पहुंचते जा रहा था और काशी के धन्वराज ने देवताओं के चिकित्सक धनवंतरी के नाम पर अपने बच्चे का नाम रखा । ज्ञान में उम्र कभी बाधा नहीं होती आयुर्वेद के ज्ञान में इस धनवंतरी ने संपूर्ण भूमंडल पर शल्य तंत्र का अष्टांग आयुर्वेद सहित उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया था । 

धनतेरस,धन्वन्तरी जी की याद में मनाया जाता है । धन्वन्तरी जी का इतिहास | Dhanteras is celebrated in memory of whose birth

             Who is Dhanwantari?भावप्रकाश  ग्रन्थ में धन्वन्तरी के अवतार  दिवोदास के विषय में विवरण है कि एक बार देवराज इन्द्र ने इंद्रलोक में प्राणियों को बीमारियों से पीड़ित देखकर धन्वंतरि को आयुर्वेद का उपदेश दिया और लोक कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेजा। भगवान धन्वंतरि ने काशी के क्षत्रिय वंश में जन्म लिया और दिवोदास के नाम से प्रसिद्ध हुए। काशी के राजा बने और आयुर्वेद का उपदेश दिया। 

यह भी पढिये :- इस धनतेरस झाड़ू करेगी,सभी नकारात्मक पर काबू,होता उसमे लक्ष्मी की वास। भाइयों और बहनों इसे अब लालो बाजार से आज,अब दरिद्रता हो जाएगी,दूर।  झाडू के इस रहस्य को पढ़ लीजिये जरूर-

इस तरह अलग-अलग उल्लेख है।

             काशी नरेश दिवोदास, धन्वंतरि के अवतार थे। यह प्रसंग भी पुराणों से प्राप्त होता है। भाव प्रकाश में देवयुग वाले धन्वंतरि के अवतार के रूप में काशी नरेश दिवोदास को स्वीकार किया गया है। सुश्रुत संहिता में शिष्यों को उपदेश करते हुए दिवोदास (पूर्व खंडी 78)। धन्वन्तरी ने उपदेश देते हुए कहा :- कि मैं आदिदेव धन्वंतरी हूं, जो देवताओं के जरा, व्याधि और मृत्यु का हरण करने वाला है। अष्टांग आयुर्वेद के विशेष अंग शल्य का उपदेश करने हेतु अवतरित हुआ हूं।

लेकिन इन भिन्न-भिन्न उल्लेख को ध्यान में जरूर रखिये पर, बिना उलझे । आइये अब आगे बड़े ही रोचक तरीके से विस्तार से समझते हैं :-

           वेदों के काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी कुमारों को प्राप्त था, वही पौराणिक काल में धन्वंतरी को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था,With whom is Amrit Kalash related to Dhanteras??? वहाँ धन्वंतरी को अमृत कलश मिला,क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं,अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरी को विष्णु का अंश माना गया। विष विद्या के संबंध में कश्यप और तक्षक का जो संवाद महाभारत में आया है, वैसा ही धन्वंतरी और नागदेवी मनसा का ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है। 

    जिसमें धन्वंतरी जी को गरुड़ का शिष्य कहा गया है -

सर्ववेदेषु निष्णातो मन्त्रतन्त्र विशारद:। 
         शिष्यो हि वैनतेयस्य शंकरोस्योपशिष्यक:।।

धन्वन्तरी जी को आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त हुआ

      आयुर्वेद के जानकार अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनके पास  जाकर विश्वामित्र पुत्र सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा।अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं।

      आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य के देवता धन्वन्तरी ने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया, जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत नियुक्त किये गए थे। सुश्रुत, दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे, जिन्होंने सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के प्रथम शल्य चिकित्सक अर्थात सर्जन थे। 

     "इसलिए तो कहा जाता है कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।"

धन्वन्तरी जी के बारे में और गहरे उतरते हैं:- 

आप जानते हैं - Who is Dhanwantari?विक्रमादित्य जिन्हे विक्रम संवत के आरंभकर्ता के रूप में हम जानते हैं, उनके दरबार में नव रत्न में से एक रत्न स्वयं धन्वन्तरी थे । जिसका विवरण ज्योतिर्विदाभरण नामक ग्रन्थ में है। 

उसमें सँस्कृत  से यह उल्लेख है -

धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंह-शङ्कुवैतालभट्ट-घटकर्परकालिदासाः । ख्याती वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥

अर्थात :- धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह,शंकु,वेताल भट्ट, घटखर्पर,कालिदास सुविख्यात वराहमिहिर तथा वररुचि विक्रम के नवरत्न थे।

       आपको यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि राजा विक्रमादित्य के इन नवरत्नों में पहला नाम "धन्वन्तरि" का है जो महान शल्य चिकित्सक थे । शल्य तंत्र के प्रवर्तक के रूप में इनको प्रसिद्धि प्राप्त है ।

धन्वन्तरी जी की कुशलता कमाल की है :-

       धन्वन्तरी आयुर्वेद में इतने कुशल थे कि एक ही रोग का 25 प्रकार से वे उचार कर सकते थे,उनकी इस प्रतिभा के कारण ही जब कोई आज ऐंसा आचरण करता है तो उसे बोला जाता है कि धन्वन्तरी मत बनो भाई।

इतने कमाल के थे हमारे विशेषज्ञ आयुर्वेद की शान "धन्वन्तरी"।

धन्वन्तरी का वैज्ञानिक प्रयोग 

       आप जानते हैं यदि समझा जाये तो श्री धन्वंतरि जी के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। क्योंकि उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश।

        अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा अर्थात मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने "सोम" नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत संहिता में उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरी जी ने बताई है।

अब जानते हैं कि धन्वन्तरी जी का उल्लेख कहाँ - कहाँ है -

      रामायण हो, महाभारत हो, चाहे विष्णु पुराण, अग्नि पुराण हो, चाहे श्रीमद भागवत महापुराण आदि पुराणों और संस्कृत के अनेक ग्रन्थों में आयुर्वेदावतरण के प्रसंग में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख प्राप्त है। 

      आयुर्वेद के आदि ग्रन्थों में सुश्रुत्र संहिता,चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय में विभिन्न रूपों में धन्वंतरि का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य आयुर्वेदिक ग्रन्थों भाव प्रकाश,शारंगधर संहिता तथा उनके ही समकालीन अन्य ग्रन्थों में आयुर्वेदावतरण के उधृत प्रसंगों में धन्वंतरि के संबंध में भी प्रकाश डाला गया है। 

        इतना ही नहीं - कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास रचित श्रीमद भागवत पुराण में धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना गया है तथा विष्णु का अवतार कहा गया है। 

        गरुड़ और मार्कंडेय पुराणों के अनुसार वेद मंत्रों से अभिमंत्रित होने के कारण वे वैद्य कहलाए। विष्णु पुराण में धन्वन्तरि दीर्घ आयु का पुत्र बतलाते हुए कहा गया है कि धन्वंतरी जरा विकारों से रहित देह और इंद्रियों वाला तथा सभी जन्मों में सर्वशास्त्र के ज्ञाता हैं । 

        भगवान नारायण ने उन्हें पूर्व जन्म में यह वरदान दिया था कि काशीराज के वंश में उत्पन्न होकर आयुर्वेद के आठ भाग करोगे और यज्ञ भाग के भोक्ता बनोगे। 

इस प्रकार धन्वंतरी जी का तीन रूपों में उल्लेख मिलता है –

समुद्र मन्थन से उत्पन्न धन्वंतरि प्रथम, 
धन्व के पुत्र धन्वंतरि द्वितीय,
काशिराज दिवोदास धन्वंतरि तृतीय। 

       महान आयुर्वेद के आचार्य श्रेष्ठ चिंतक धन्वन्तरी जी की यदि आप आराधना करना चाहें तो नीचे संक्षिप्त रूप से वर्णन की जा रहा है :-

धन्वन्तरी जी का जप मन्त्र 

ॐ धन्वंतरये नमः॥

इसके अलावा उनका एक और मंत्र भी है:

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरयेअमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणायत्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपायश्रीधन्वंतरीस्वरूपाय श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः॥

ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय सर्व आमयविनाशनाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णुवे नम: ।।

अर्थात:- हे परम भगवान् को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सर्ब रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं। उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है।

प्रचलि धन्वंतरी स्तोत्र इस प्रकार से है।

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम्॥कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम्।

वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम्॥

आयुर्वेद के गहन शोधक,जीवन उपयोगी ओषधियों के प्रस्तोता धन्वन्तरी जी का कथन है–‘तुम्हारे देश में उत्पन्न वस्तु ही तुम्हारे लिए उचित और पथ्य है उसे अपने देश में उपजाओ।'

धनवन्तरी जी ने एक सूत्र प्रतिपादित किया है,जिससे जीवन रक्षा होती रहे वह सूत्र या कहें , वह  श्लोक यह है,जिसकी सिद्धि के बाद हर रोगों का समन हो जाता है। इस लेख में विशेष रूप से इसका वर्णन किया गया है।

‘‘अच्युतानंद गोविंद नामोच्चारणभेषजात।

नश्यन्ति सकलारोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।’’

हे! अच्युत, हे! अनन्त, हे! गोविंद नाम के उच्चारण से अनेक रोग नष्ट होते हैं मैं सत्य कहता हूं, मैं सत्य कहता हूं ऐसी क्रिया से रोग नाश करना होता है। गोविंद नाम के उच्चारण से अनेक रोग नष्ट होते हैं मैं सत्य कहता हूं, मैं सत्य कहता हूं ऐसी क्रिया से रोग नाश करना होता है। हमारे वेद मंत्र संस्कृत भाषा में हैं, विश्व की सभी भाषाओं में यह संस्कृत भाषा ही वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत के श्लोक और मंत्रों में अत्यधिक ऊर्जा से कम्पन होता है।जो रोम रोम को स्वच्छ कर उन्हें पुनः स्वास्थ प्रदान करते हैं

        इस तरह धन्वन्तरी  बड़े ही कुशल आयुर्वेद और मन्त्र विज्ञान,ही नही जीवन के रहस्यमय सूत्रों को लोक कल्याण की भावना से आयुर्वेद का ज्ञान जन-जन तक पहुंचाया,और आगे अपने जैसे लोगों को इस संसार मे खड़ा किया कि उनके बाद भी आयुर्वेद आगे बढ़े। उनको ह्रदय की गहराई से नमन।


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