साक्षात्कार
श्री मान रघुनन्दन जी ने स्नातक की पढ़ाई पूर्ण किया,अब जैसा कि पढ़े लिखे,नोकर बनने में बहुत लोग उत्सुक होते हैं,बिना मजबूरी के भी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि क्या मेरे भाग्य में 1 भी नोकरी नहीं है??उनका ज्ञान का वह इस तरह से उपयोग करना बहुत पसंद करते हैं।
तो हम बात कर रहे हैं- छोटे-छोटे संस्कार युक्त गुणों से सजा हुआ एक शर्मा परिवार की। जिसमें युवा जोश,प्रेम,अनुशासन,श्रद्धा जैसे कीमती मूल्यवान गुण शामिल थे,उस परिवार में युवा जोश से भरे हुए,श्री रघुनन्दन शर्मा भी एक सदस्य थे। जिनकी भागम भाग नोकरी की तरफ चल पड़ी,वे अपने शहर के हर office में पहुंचे। लेकिन एक समय था, जब ईश्वर ने श्री रघुनन्दन जी की सुन ली। इसके बाद,श्री रघुनन्दन शर्मा जी के जीवन मे नोकरी हेतु पहले साक्षात्कार हेतु बुलाया गया।
ख़ूब उत्साह में श्री रघुनन्द जी थे। नोकरी जो मिलने वाली है।
अब श्री रघुनन्दन शर्मा जी घर से office तक कि दूरी तय कराने के लिए उनके लगे पैर तो चल रहे थे,और मन एक विचार में डूबा हुआ था, हे ईश्वर काश! आज चाहे कुछ भी हो जाये जी जान लगा के साक्षात्कार दूंगा । चाहे कुछ भी हो,साक्षात्कार में आज कामयाब होके रहूंगा,फिर उसने एक और विचार मन ने किया,यदि सफलता मिली, तो अब वह अपने पुश्तैनी मकान को अलविदा कहकर यहीं शहर में सेटल हो जाऊँगा।
माँ और पिता जी की नियमित की चिक-पिक की बात उसे खलती थी,और इस तरह की मग़जमारी से छुटकारा तो मिल जायेगा । ऐंसा विचार श्री रघुनन्दन शर्मा जी के मन मे आया।
" क्योंकि वह परेशान था, सुबह जल्दी उठने से लेकर रात को सोने तक होने वाली हर चिक-चिक से जो उसे दिन रात सोने नहीं देती थीं,और बहुत परेशानी से भर दिया था।"
श्री रघुनन्दन को हमेशा, जब भी वह सो कर उठे,तो उठते साथ पिता का कथन कानों पर गूंज उठता है-" ऐ रघुनन्दन! सुबह जल्दी उठो बेटा,उठकर,पहले बिस्तर ठीक करो,फिर बाथरूम जाओ,बाथरूम से निकलो इन आज्ञाओं को उसको नियमित सुनाना पड़ता था। नल बंद कर दिया कि नही ?"तौलिया सही जगह रखा या यूँ ही फेंक दिया ? नाश्ता करके घर से न निकलो तो डांट पडती है।पंखा बंद किया या चल रहा है ?" क्या क्या सुनें यार,नौकरी मिले तो घर छोड़ दूंगा।
अधिकतर वर्तमान की फिल्मों ने,पीढ़ी को,मूर्ख बनाने में कोई कसर नही छोड़ी।
क्योंकि वर्तमान जो पीढ़ी फिल्मों से देखकर जीवन मे सीखती है,उसे तो फिल्म में ही भविष्य की संरचना दिखती है।कितने ही स्नातक होने वाले मूर्खता कर बैठते हैं कि फिल्मों की कल्पना तो भूतकाल में जो घट गया है उसे आधार बनाकर ही बनती है,लेकिन आज भी चूँकि प्रथम कक्षा से 12वीं कक्षा तक के शिक्षण में,पढ़यक्रम में नियमित,इस बात का उल्लेख नहीं किया जाता है कि जीवन की संरचना व्यवस्थित कैसी हो,इस हेतु पढ़े लिखे तो जीवन के सबसे कीमती समय मे मूर्ख बनने ही वाले हैं।
संस्कार ने बदला जीवन का आकार | Sanskar has changed the shape of life
श्री रघुनन्दन जी ने ऑफिस में प्रवेश किया,वहां देखा कि बहुत सारे उम्मीदवार बैठे थे,साक्षात्कार लेने वालों का वे सभी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे,अब तो सुबह के 10 बज चुके थे,उसने देखा officee का नाईट बल्व अभी भी प्रकाशित है,श्री रघुनन्दन शर्मा जी के जीवन मे उसके पुराने पलों को सजाने वाली उसकी माँ, की वह अनमोल बात याद आ गयी कि सुबह जैसे उठो पहले नाईट बल्ब बन्द करो,और उसने यह प्रतिक्रिया की ,कि office नाइट बल्व को बुझा दिया।
फिर श्री रघुनन्दन शर्मा जी अपने प्रतीक्षा सीट पर बैठते उससे पहले उसने देखा अरे! ऑफिस के दरवाज़े पर कोई नहीं था,बग़ल में रखे वाटर कूलर से पानी टपक रहा था।उसके जीवन को सुनियोजित करने वाले उसके पिता की वह डांट याद आ गयी,जल्दी से उसने पानी बन्द कर दिया ।
"फिर पास एक बोर्ड था, श्री रघुनन्दन शर्मा जी ने उस पर लिखी हुई पंक्ति पढ़ी कि इंटरव्यू दूसरी मंज़िल पर होगा ।"
अब श्री रघुनन्दन जी सीढ़ी पर चलना प्रारम्भ करते हैं,वे देखते हैं कि सीढ़ी पर लाइट जल रही है,जो केवल रात के लिए ही उपयोगी है,अब इसकी उपयोगिता है ही नही,श्री रघुनन्दन जी ने जल रही सीढ़ी की लाइट को बंद करके आगे बढें,तो एक कुर्सी रास्ते में थी,उसे हटाकर ऊपर गये। तो देखा पहले से मौजूद उम्मीदवार जाते और फ़ौरन बाहर आते हैं,पता किया तो मालूम हुआ कि साक्षात्कार वाले फाइल लेकर कुछ पूछते नहीं,वापस भेज देते हैं। अब श्री रघुनन्दन शर्मा जी की जान सकपकाने लगी हे ईश्वर मेरा क्या होगा???
श्री रघुनन्दन शर्मा जी का जैसे ही नम्बर आया,श्री रघुनन्दन जी ने फाइल को मेनेजर की तरफ बढ़ा दी । ऑफिस के साक्षात्कार कक्ष में वे प्रवेश कर गए,साक्षात्कार लेने वालों ने कागज़ात पर नज़र दौडाई फिर इसके बाद उन्होंने कहा श्रीमान आप हमारे office के लिए बहुमूल्य हैं आप "कब ज्वाइन करेंगे?"
आश्चर्य में श्री रघुनन्दन शर्मा जी
श्री रघुनन्दन जी महत आश्चर्य में और साक्षात्कार वाले का यह पूंछना था,कि श्री रघुनन्दन जी हक्का-बक्का हो गए,श्री रघुनन्दन जी को लगा कि शायद मेरे साथ जैसे मज़ाक़ हो रहा है, साक्षात्कार लेने वाले श्री रघुनन्दन जी से कहने लगे कि श्रीमान ये मज़ाक़ नहीं है, हक़ीक़त है ।
साक्षात्कार वाले के वचन सुन आप खुशी में सराबोर हो जाएंगे । आइये जानते हैं कैसा सजा है श्री रघुनन्दन जी का जीवन जिसे वह बोझ मानते थे।
आइये साक्षात्कार लेने वाले के कथनों को समझते हैं :-
आज के इंटरव्यू में किसी से कुछ पूछा ही नहीं,गया।सिर्फ CCTV में सबका बर्ताव देखा गया,सब आये लेकिन किसी ने नल या लाइट बंद नहीं किया ।
श्री रघुनन्दन जी धन्य हैं,तुम्हारा प्रशिक्षण और तुम्हारे माँ - बाप,जिन्होंने तुम्हारी इतनी अच्छी परवरिश की और इतने अच्छे संस्कार दिए हैं ।
जिस इंसान के पास Self discipline नहीं वो चाहे कितना भी होशियार और चालाक हो,मैनेजमेंट और ज़िन्दगी की दौड़ धूप में कामयाब नहीं हो सकता ।
खुशी में डूब गए श्री रघुनन्दन शर्मा जी
अब खुशी ने चारों और से श्री रघुनन्दन जी को डूबा दिया, नाचता गाता श्री रघुनन्दन जैसे ही office से घर पहुंचा,जीवन को सजाने वाले उन बहुमूल्य हीरों के पैर पड़े ,और उनकी गले से लगा लिया ।
अब आप इस घटना में सम्पूर्ण मनोयोग से पढ़ना, शायद जीवन के इन हीरे मोती से आपका भी प्रेम गहरा हो जाये।
श्री रघुनन्दन शर्मा जी ने घर पहुंचकर अपने मां-पिता जी से साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश के पहले इस दौरान आये मन के विचारों को,व office की हर घटना को अवगत कराया और बार-बार क्षमा मांग कर अपने हीरे-मोती स्वरूप मां -पिता को गले से लगाया और उनसे माफ़ी मांगकर उनका शुक्रिया अदा किया ।
आगे श्री रघुनन्दन शर्मा जी कहते हैं कि - अपनी ज़िन्दगी की आजमाइश में उनकी छोटी छोटी बातों पर रोकने और टोकने से,मुझे जो सबक़ हासिल हुआ,उसके मुक़ाबले,मेरे डिग्री की कोई हैसियत ही नहीं थी और पता चला ज़िन्दगी के मुक़ाबले में सिर्फ पढ़ाई लिखाई ही नहीं,तहज़ीब और संस्कार का भी अपना मक़ाम है या कहें श्रेष्ठ रास्ता है।
इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि -
संसार में जीने के लिए संस्कार जरूरी है ।
संस्कार के लिए मां बाप का सम्मान जरूरी है ।
जिन्दगी रहे ना रहे,जीवित रहने का स्वाभिमान जरूरी है ।
संसार में जीने के लिए संस्कार जरूरी है ।
संस्कार के लिए मां बाप का सम्मान जरूरी है ।
जिन्दगी रहे ना रहे,जीवित रहने का स्वाभिमान जरूरी है ।
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