कैसे हुआ माँ पार्वती जी का देवी अन्नपूर्णा स्वरूप | अन्नपूर्णा माता | Devi annapurna
आइये अब सारी उलझनों को समाप्त करते हैं।
माँ अन्नपूर्णा जी की याद करते हैं,
हो जाएंगे यश,कीर्ति,वैभव,धन,धान्य,से परिपूर्ण।
इस लेख को गहराई से पढिये तो सही,
बस अब आगे के रहस्य को पढ़कर,
माँ अन्नपूर्णा जी के लिए,
अपने श्रद्धाभाव को समर्पित कर ही देते हैं ।।
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देवी पार्वती जी ने यह सब देखा और देखकर आश्चर्यचकित हुईं। इस शैली में परिवर्तन लाने के लिए,उन्होंने पहली बार भगवान शिव के निवास स्थान कैलास में रसोई की स्थापना करने का श्रेष्ठतम निर्णय लिया।धीरे-धीरे देवी पार्वती ने रसोई को अलग-अलग बर्तनों से परीपूरित किया और उच्च गुणवत्तापूर्ण(Testy) व्यंजनों से पूरित रसोई बनाने का निर्णय लिया और फिर देवी पार्वती जी ने भोजन बनाने के लिए आवश्यक अन्य चीजों के लिए भगवान शिव जी के गणों से वार्ता करना शुरू किया। भगवान शिव जी के गणों ने आपत्ति जताई कि उन्हें रसोई की जरूरत नहीं है। क्योंकि वे कच्चे फल और कंदमूल (जड़ और मशरूम) खाने के आदी हैं। भगवान शिव जी के गण इस बदलाव से खुश नहीं थे,लेकिन देवी पार्वती ने सभी गणों के लिए भोजन बनाने पर बल दिया।
निश्चित ही देवी पार्वती का निर्णय कौन टाल सकता था,भला,यह भोजन तो देवी पार्वती जी के माध्यम से पकना शुरू हुआ, इस कारण से अलग-अलग प्रकार की आवाजें आने लगीं। शिव जी के गणों के अस्वीकृति पूर्ण प्रदर्शन और भोजन पकने के शोर से भगवान शिव का ध्यान भी बाधित हो ही गया। तुरन्त शिव आसन से उठे और अपने गणों से पूंछा शोर क्यों कर रहे हो ?? तब उन गणों में से एक गण ने कहा -"कि देवी पार्वती जी ने जो रसोई बनाई है उसकी कोई हमें आवश्यकता नहीं है," यह सुन भगवान शिव को भी लगा कि रसोई की तो कोई आवश्यकता नहीं है।
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अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्कर प्राणवल्लभे।ज्ञान वैराग्यसिध्यर्थं भीक्षां देहि च पार्वती।।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरःबन्धवाः शिवभक्तश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।।
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