माँ अन्नपूर्णा जी का रहस्य | anapurna jayanti story | annapurna puja | significance of devi annapurna

माँ अन्नपूर्णा जी का रहस्य | anapurna jayanti story | annapurna puja | significance of devi annapurna

जय हो जय हो माँ अन्नपूर्णा

कैसे हुआ माँ पार्वती जी का देवी अन्नपूर्णा स्वरूप | अन्नपूर्णा माता | Devi annapurna 

मार्गशीष मास जिसे हम अगहन मास के नाम से जानते हैं । इसमें विशेष रूप से,धान्य की अधिष्ठात्री devi annapurna माँ अन्नपूर्णा जी की विशेष आराधना का दौर चलता है। लेकिन इस शक्ति से जुड़े रहस्य इनके प्रतीकों को क्या हम जानते हैं,निश्चित ही ये रहस्य हमे उलझन से भरे हुए प्रतीत होते हैं।

आइये अब सारी उलझनों को समाप्त करते हैं।
    माँ अन्नपूर्णा जी की याद करते हैं,
हो जाएंगे यश,कीर्ति,वैभव,धन,धान्य,से परिपूर्ण।
   इस लेख को गहराई से पढिये तो सही,
बस अब आगे के रहस्य को पढ़कर,
माँ अन्नपूर्णा जी के लिए,
       अपने श्रद्धाभाव को समर्पित कर ही देते हैं ।।

      बहुत ही रोचक दृश्य रहा होगा,जब भगवान शिव का विवाह माँ पार्वती जी के साथ हुआ और जब देवी पार्वती पहली बार राजा हिमांचल और माता मैना रानी से विदा होकर कैलाश आयीं, तो आने के बाद माँ पार्वती जी को पता चला कि भगवान शिव के गणों की जीवन शैली अर्थात कैलाश में निवास करने वाले कैलासवासियों की जीवन शैली और उनके आनंद में रहने की शैली कुछ अद्भुत सी थी। जिसमें कुछ कैलासवासी ध्यान करेंगे, कुछ भगवान शिव के गण अपना काम करेंगे, और कुछ भगवान शिव के गण विशेष आध्यात्मिक साधनाओं को करने में व्यस्त रहेंगे। और भगवान शिव तो स्वयं अधिक समय ध्यान में रहते हैं। प्रत्येक भगवान शिव के गण योगीयों,तपस्वीयों का जीवन व्यतीत कर रहे थे। यहां तक कि किसी ने भी स्वयं को सजाने, संवारने, स्वच्छता और भोजन की भी परवाह भी नहीं की। वे सभी कुंवारे ही जीवन जी रहे थे।

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    देवी पार्वती जी ने यह सब देखा और देखकर आश्चर्यचकित हुईं। इस शैली में परिवर्तन लाने के लिए,उन्होंने पहली बार भगवान शिव के निवास स्थान कैलास में रसोई की स्थापना करने का श्रेष्ठतम निर्णय लिया।धीरे-धीरे देवी पार्वती ने रसोई को अलग-अलग बर्तनों से परीपूरित किया और उच्च गुणवत्तापूर्ण(Testy) व्यंजनों से पूरित रसोई बनाने का निर्णय लिया और फिर देवी पार्वती जी ने भोजन बनाने के लिए आवश्यक अन्य चीजों के लिए भगवान शिव जी के गणों से वार्ता करना शुरू किया। भगवान शिव जी के गणों ने आपत्ति जताई कि उन्हें रसोई की जरूरत नहीं है। क्योंकि वे कच्चे फल और कंदमूल (जड़ और मशरूम) खाने के आदी हैं। भगवान शिव जी के गण इस बदलाव से खुश नहीं थे,लेकिन देवी पार्वती ने सभी गणों के लिए भोजन बनाने पर बल दिया।
      निश्चित ही देवी पार्वती का निर्णय कौन टाल सकता था,भला,यह भोजन तो देवी पार्वती जी के माध्यम से पकना शुरू हुआ, इस कारण से अलग-अलग प्रकार की आवाजें आने लगीं। शिव जी के गणों के अस्वीकृति पूर्ण प्रदर्शन और भोजन पकने के शोर से भगवान शिव का ध्यान भी बाधित हो ही गया। तुरन्त शिव आसन से उठे और अपने गणों से पूंछा शोर क्यों कर रहे हो ?? तब उन गणों में से एक गण ने कहा -"कि देवी पार्वती जी ने जो रसोई बनाई है उसकी कोई हमें आवश्यकता नहीं है," यह सुन भगवान शिव को भी लगा कि रसोई की तो कोई आवश्यकता नहीं है।

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     जब उन्होंने देवी पार्वती जी से रसोई की आवश्यकता नहीं होने की इच्छा व्यक्त की, तो देवी पार्वती जी ने पूछा-"क्या आप जो कह रहे उस विषय मे  निश्चित हैं?"

फिर शिव बोले - "हां, मुझे विश्वास है।"

    देवी पार्वती जी ने फिर कहा "ठीक है, हम देखेंगे," और शिव के उस स्थान से जाते ही देवी पार्वती जी  भी स्थान को त्याग कर चली गयीं |

     चूंकि देवी पार्वती जी प्रकृति की ही अवतार हैं,इतना ही नहीं वे उन सभी चीजों को प्रकट करती हैं, जिन्हें हम देख सकते हैं, सूंघ सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। जब वे अचानक ही वहाँ से चली गयीं, तो पके हुए भोजन की सुगंध ने कैलाश से दूर होना प्रारम्भ कर दिया,जिससे सभी शिव के गण भूख अनुभव करने लगे। अब तो अचानक शिव के गणों की भूख की तीव्रता बढ़कर धीरे-धीरे कड़ी भूख की अनुभूति में बदलने लगी। तब तो शिव जी भी वैसा ही अनुभव करने लगे, क्योंकि एक भगवान को वह अनुभव हो जाता है जो उनके भक्त अनुभव कर रहे होते हैं|

    इस प्रकार एक बार फिर पुनः शिव जी का ध्यान भंग हो गया, क्योंकि शिव जी स्वयं में तीव्रता से भूख बढ़ने की प्रवृत्ति देख कर बहुत आश्चर्यचकित थे। भगवान शिव जी ने शिव के गणों के साथ जाना की ऐंसा क्यों उन्हें अनुभव हो रहा है और पाया कि सभी को भूख लग रही थी। लेकिन जब वे रसोई में गए, तो उन्होंने देखा कि सभी पात्र भोजन से खाली थे।

     हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव करुणा के अवतार हैं ही। चूँकि उनके भक्त भूखे थे,यह सब देख शिव ने आंख बंद किया और,पाया कि यह सब देवी पार्वती के कैलाश से चले जाने के कारण से ही हुआ है,अब तो वे देवी पार्वती की खोज में कैलाश से बाहर गए,क्योंकि यह केवल देवी ही थीं,जो शिव सहित शिव के गणों की क्षुधा को शांत कर सकती थीं। 

   अब तो भगवान शिव जी ने स्वयं के शरीर को एक भिखारी जैसा बनाकर भिक्षा पात्र साथ मे रखकर संपूर्ण सृष्टि में खोज करने के बाद,शिव आश्चर्य मेँ पड़ गए कि देवी पार्वती कहां हैं,तदुपरान्त पुनः एक क्षण आंख बंद की और शिव ने काशी में देवी पार्वती जी को पाया। बाबा विश्वनाथ अर्थात सम्पूर्ण धरा के नाथ भिक्षा पात्र हाथ मे रखे हुए,शिव, देवी पार्वती जी के पास गए और अपने शिव भक्तों के लिए धान्य,फल,धन,वस्त्र मांगा। 

   अरे वाह! देवी भी तो दयालु थीं और इस अवस्था मे शिव को देख कुछ ही क्षण में वे उनके आने का उद्देश्य,कारण,भाव सब कुछ समझ गईं,फिर ततक्षण पार्वती देवी ने अन्नपूर्णा का रूप ले लिया। उस रूप को ग्रहण करने के बाद,देवी पार्वती ने भगवान शिव को सारा,धान्य,धन,वस्त्र,प्रदान कर दिया,भगवान शिव ने उदारता दिखाई और प्राप्त किया सब धान्य,धन,वस्त्र,वैभव सभी कुछ ब्रह्मांड के सभी शिव गणों और अन्य सभी प्राणियों में समान रूप से वितरित कर दिया।

    इस कहानी को अन्नपूर्णा अष्टकम में दर्शाया गया है,और इसमें से वह श्लोक के रूप में मंत्र आता है जो हमेशा से ही भोजन ग्रहण करने से पहले प्रेम से पढा व सुनाया जाता है।

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्कर प्राणवल्लभे।

ज्ञान वैराग्यसिध्यर्थं भीक्षां देहि च पार्वती।।

भावार्थ :- अन्नपूर्णा देवी,जो अनंत परिपूर्णता का अवतार हैं, जो शंकर जी को सबसे अधिक प्रिय हैं, 
हे देवी पार्वती ! आप मुझ पर अपनी कृपा की धारा के  रूप में ज्ञान,वैराग्य,सिद्धि को मुझे भिक्षा के रूप में प्रदान कीजिये।।

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः

बन्धवाः शिवभक्तश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।।

भावार्थः :- हे अन्नपूर्णा स्वरूप देवी पार्वती जी,जो मेरी माँ हैं,और भगवान महेश्वर,जो मेरे पिता हैं,तीनों लोकों में सभी मानव रूप हैं, भगवान शिव के भक्त मेरे मित्र हैं।

            भारतीय भोजन पद्धति में हम भारतीय लोग बड़े प्रेम से,उत्साह से इस प्रकार मां अन्नपूर्णा की आराधना में इस भाव रूपी श्लोक को हर बार भोजन से पहले मंत्र का जाप के रूप में दोहराते हैं। चूंकि श्रद्धा का भाव अत्यंत गहरा होता,और यदि माँ अन्नपूर्णा जी के लिए भाव की गहराई होगी,तो जीवन सुखमय होगा।

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