शिक्षा का स्तर बढ़ा लेकिन फिर भी युवा भटका (Education level increased, but Still young wandering)

मनुष्य के जीवन मे शिक्षा महती आवश्यकता है,शिक्षा- आचार,विचार,व्यवहार,अंदर की शांति,संस्कार आदि-आदि सभी पर आधारित होती है,और यह शिक्षा प्राप्ति का क्रम, प्रथम गुरु के रूप में मां से शुरुवात होता है। केवल पुस्तकी जानकारी की दौड़ में हम वास्तविक जीवन और वास्तविक शिक्षा दोनों से दूर होते चले जा रहे हैं। वर्तमान शिक्षा ने स्वयं से स्वयं को भूला दिया है।   शिक्षा का स्तर बढ़ा लेकिन फिर भी युवा भटका  (Education level increased, but Still young wandering)  उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले ही विकृत होकर निकलते हैं,ये समझने योग्य बाते हैं कि ऐंसा क्यों होता है। वैज्ञानिक रूप से ऐंसा इसलिए होता कि पंच तत्व से बना हमारा शरीर जो जीवन कहलाता है,आज के परिवेश में इन्हीं तत्वों से कुछ दूरी बना दी जाती है। जो एक मानसिक तौर में कह सकते हैं युवाओं के सामने भटकाव की स्थिति लाता है ऐंसे बहुत से कारण हम आगे भी जानने वाले है- आइए जानते हैं -

एक दमदार प्रस्तूति के साथ जरूर पढ़िये - हो गई आसानी अब जान लीजिये क्या है? जीवन के विकास की सबसे बड़ी बाधा,अब पढ़ लीजिये।

*"या विद्या विमुक्तये"*

           वर्तमान में बीती सदी से ज्यादा शिक्षा है,ज्यादा विद्यालय हैं।  लेकिन क्यों बीती सदी से ज्यादा वर्तमान में सारे जगत में ज्यादा अशांति है,दुख है,पीड़ा है?? मनुष्य ने जीवन में बहुत हानि उठाया है ऐंसी विद्या से और ऐसी विद्या जो मुक्त कर सकती थी लेकिन अब यह विद्या मुक्त नहीं करती। इतनी विपरीत परिस्थिति आ गई है कि इसी विद्या का हमको सामना करना पड़ रहा है हम विद्यावान बनाए लोगों को इंजीनियर बनाएं, डॉक्टर बनाएं, गणितज्ञ बनाएं लेकिन यह कोई विद्या नहीं हैं।शिक्षा का स्तर बढ़ा लेकिन फिर भी युवा भटका  (Education level increased, but Still young wandering)    

           यह सब आजीविका के साधन और उपाय हैं यह विद्या नहीं है रोजगार की व्यवस्था हो जाती है, रोटी की व्यवस्था हो जाती है बस लेकिन यह विद्या नहीं । और हम इन युवा पीढ़ी को विदेश भेजें और हम सोचते हो कि हम बड़ा काम कर रहे हैं,हम केवल भूख को समाप्त करने के लिए उन्हें कुशल होना सीखा रहे हैं। और कुछ भी नहीं। हम उन्हें विद्या नहीं दे रहे विद्या से उनका कोई संबंध नहीं जोड़ रहे हैं विद्या का संबंध जीवन में उच्चतम मूल्यों का सृजन है । 

अपनी खुशियों को चारों तरफ फैलाने की जबरदस्त प्रस्तूति,अब तो आप खुशी फैलाकर ही रहोगे,यदि एक बार पढा तो आप मुस्कुराकर ही रहोगे।

युवा कौन हैं-

         जो वृद्धजन है,उनकी पीछे की दुनिया होती है,उनके लिए अतीत होता है।जो बीत गया वही होता है,इसके ठीक विपरीत बच्चे होते हैं,जिनके लिए भविष्य की कल्पनाएं और कामनाएं हैं,उनके लिए बीता हुआ कुछ नहीं होता बस भविष्य की कल्पनाएं होती हैं । तो वृद्धजन अतीत की चिंता और विचार में निमग्न रहते हैं, जबकि युवा ना तो भविष्य में होता है ना अतीत में होता है वह तो केवल वर्तमान में होता है । यदि आप युवा हैं, तो आप केवल वर्तमान में जीने की सामर्थ्य की शक्ति से  ही युवा होते हैं। 

           यदि आपके मन में भी कभी ऐसा हुआ हो कि आपका भविष्य की कल्पना में ही जीवन टिका हो तो निश्चित आप युवा नहीं है,आप बच्चे हैं, क्योंकि आप भविष्य कल्पना में जी रहे हैं । यदि आपके मन में यह विचार आए कि अतीत ही सब कुछ है मेरे जीवन का तो निश्चित रूप से आप युवा होते हुए भी आप वृद्ध हो जाएंगे।

          वर्तमान की अवस्था है जो भविष्य और अतीत का संतुलन बिंदु है अर्थात मन की एक ऐसी अवस्था जब कोई भविष्य नहीं रहता, जब कोई अतीत ना होता हो जब कोई ठीक-ठीक वर्तमान में जीने लग जाए तो उस चित्त को युवा चित्त के रूप में हम जानते हैं ।

युवा होना मूल्यवान और गहरी बात है

         इसलिए आप युवा होना आसान मत समझ लीजियेगा। युवा होना बहुत ही मूल्यवान बात है । उम्र का सवाल तो युवा में नहीं उठता ? उम्र का सवाल यह तो बुजुर्ग में या बच्चों में ही उठता है?? युवा चित्त की दृष्टि विशाल होती है,गहरी होती है। उसकी सोच हमेशा ताजगी से भरी रहती है, युवा कभी पुराना होता ही नहीं है । इसलिए युवाओं को उम्र से आंकना असम्भव है। यदि उम्र से आंका हमने तो निश्चित युवा बचेगा ही नहीं वरन यह तो व्रद्ध या तो बच्चा हो जाएगा । 

          इसलिए जिसको एक बार युवा होने का राज पता चल जाए तो उसके जीवन में शरीर तो बूढ़ा हो जाएगा। लेकिन उसके चित्त को बूढ़े होने की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी उसका चित्त हमेशा सतेज जीवन से परिपूर्ण रहेगा और वह युवा बना रहेगा ।

एक रहस्य खुलने वाला है जरूर देखिए - हो जाइए तैयार अब संकल्प कभी भी विकल्प न हो सकेगा,अब आपका संकल्प हमेशा आपके साथ होगा,कैसे??

क्या कारण है विद्दार्थी दिशा शून्य होते जा रहे हैं ??

           यह बात ठीक है कि बिना विद्यार्थी बने अध्ययन कर पाना संभव नहीं है,संसार भर में विद्यार्थी संख्या के आधार पर बढ़ रहे हैं। तो ज्ञान नित नवीन संशोधन और शोध से बहुत बढ़ जाना चाहिए, लेकिन ऐसा क्यों होता है?? कि विद्यार्थी बढ़ते जाते हैं,और ज्ञान रुक जाता है, ज्ञान बढ़ता ही नहीं । बल्कि अज्ञान और गहरा होते जाता है। निश्चित ही विद्यार्थी तो बढें चले जाते हैं, उनके शिक्षा केंद्र भी बढ़ते चले जाते हैं लेकिन दुनिया रोज-रोज बुरी और बुरी होती चली जाती है??? क्योंकि अगर ज्ञान विकसित होता है तो परिणाम में दुनिया बेहतर से बेहतर होना चाहिए।

           उदाहरण स्वरूप अगर हम किसी व्यक्ति को एक बगिया में ले जाएं और कहें की हमने खूब फूल लगाए हैं फूल के पौधे बढ़ते चले जाते हैं,फूल लगते चले जाते हैं और बगिया में बदबू बढ़ती चली जाए, गंदगी बढ़ती चली जाए , सुगंध की जगह दुर्गंध बढ़ने लगे तो बड़े आश्चर्य की बात होगी और वह व्यक्ति हमसे पूँछेगा कि यह फूल यह पौधे किस प्रकार से बढ़ रहे हैं,यहां दुर्गंध तो बढ़ती चली जाती है।

          विद्यालयों की संख्या वर्तमान में बढ़ रही है,विद्यालयों में पुस्तकों की संख्या बढ़ रही है,पूरी दुनिया भर में लगभग हर सप्ताह पुस्तकें छप-छप कर विद्यार्थियों के सामने रखी जा रही है। रोज-रोज विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है लेकिन वह दुनिया तो नीचे गिरती चली जाती हो इस दुनिया में युद्ध और घातक से घातक हुए चले जाते हैं पुराना इतिहास इसी की गवाही देता है यहां नफरत और व्यापक हो जाती है यहां ईर्ष्या और जलन तीव्र हुई जाती है। तो जरूर कोई ना कोई आधार में खराबी है,और इस तरह खराबी की जवाबदारी और किसी पर इतनी ज्यादा नहीं है, जितना उन पर जो शिक्षा से संबंध रखते हों,अब चाहे वे शिक्षक हो, चाहे विद्यार्थी हों।

क्या आप जानते हैं,सादगी जीवन को दिलचस्प बना देती है??आइए इस कीमती विषय को पढ़ लिया जाए।यदि पढ़ लिया तो जीवन सुखपूर्वक गढ़ लिया।

         संपूर्ण दुनिया में विभिन्न प्रकार की क्रांतियां हमने सुनी, कुछ देखी भी होंगी।लेकिन ऐसा क्यों है,कि शिक्षा में आधार को लेकर कोई क्रांति ही नहीं हुई ???? यह अत्यंत ही विचारणीय विषय है कि शिक्षा में कोई आधारित क्रांति हुए बिना मनुष्य की संस्कृति में कोई क्रांति नहीं हो सकती है । वह अभी भी नही हुई , इसका कारण यह है की वर्तमान शिक्षा हमारे मस्तिष्क की संपूर्ण अंतरिक और बाह्य गतिविधियों को निर्धारित कर देती है। फिर इन गतिविधियों से छूट पाना करीब-करीब कठिन और असंभव हो जाता है ।क्योंकि धीरे धीरे 15 से 22 साल का एक युवा शिक्षा लेगा / लेगी । 15 से  22 साल में उसके मस्तिष्क में निर्धारित पैमाने में स्थिर रूप से स्थाई हो जाएगी । फिर जीवन भर उसी निर्धारित पैमाने से छूटना,उसी स्थिरता से छूटना बहुत कठिन होगा। इस हेतु अत्यंत गहरी साहस की आवश्यकता होती है जिसमें गहरा साहस होगा,वे युवा भी छूट सकते हैं लेकिन सामान्यतः छूटना मुश्किल ही है। वैसे तो यह निर्धारित पैमाना गलत तो नहीं है जो शिक्षा हमें देती है वही हमारा केंद्रित पैमाना है। लेकिन यह भी निश्चित ही है कि वर्तमान शिक्षा को ध्यान में रखकर सोचें तो मनुष्य के मस्तिष्क का यह निर्धारित पैमाना गलत होना चाहिए ।क्योंकि परिणाम गलत हैं और परिणाम ही परीक्षा देते हैं ,परिणाम ही बताते हैं, कि हम जो कर रहे हैं वह ठीक है या गलत है।

           विद्यालय से बच्चे जब शिक्षित होकर निकलते हैं। तब वे विकृत मनुष्य होकर निकलते हैं। ऐसा हम को बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहिए की पिछली ही सदी में जो शिक्षा थी वह बहुत अच्छी थी, उस पर लौट जाना चाहिए।यह तो नासमझी और अनुपयोगी ही होगा। क्योंकि पीछे लौटना दुनिया में कभी भी संभव नहीं होता,और ध्यान रखें पीछे भी कोई आधार रूप से ठीक शिक्षा नहीं थी। यदि आधार रूप से शिक्षा ठीक होती, तो वर्तमान के जैसी गलत शिक्षा पैदा ही नहीं होती । निश्चित ही गलत से गलत पैदा होता है,पिछली सदी में कहीं ना कहीं किसी ना किसी तरह से शिक्षा के स्तर में गलतियाँ तो हुई ही होंगी। इसी कारण आज भी यह शिक्षा गलत है ।

जरूर पढ़िये,जानें बदलाब तब दिलचस्प हो जाता है-जब बदलाब की दिशा सकारात्मक दिशा हो,स्वयं के जीवन को आकर्षक बनाइये

गलत शिक्षा के क्या आधार हैं

          हमारे जीवन काल की पूरी शिक्षा एक केंद्र में घूमती रहती है, वह है महत्वाकांक्षा, - संपूर्ण दुख,पीड़ा एक ही कारण पर स्थित है वह महत्वाकांक्षा पूरी की पूरी शिक्षा महत्वाकांक्षा के आसपास घूमती रहती है ।

          कभी समझने की कोशिश करें,हमको क्या सिखाया जाता है निश्चित ही अब तो,यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि हमको महत्वाकांक्षा ही सिखायी जाती है,हमें सिखाया जाता है,किसी से प्रथम हो जाओ। और आगे हो जाओ और हमेशा दूसरों से आगे रहो,छोटे-छोटे बच्चों को जब हम स्कूल भेजते हैं तब हम उन छोटे-छोटे बच्चों के मन में क्या डाल रहे हैं ??? हम उनके मन में दबाव डालकर कहते हैं कि बच्चे तुमको प्रथम होना है,आपको शायद यह जानकारी हो कि इससे बड़ी चिंता और कुछ नहीं है पूरे दुनिया मे ।

अब जान ही लीजिए रोचक रहस्य जब प्रार्थना शुद्ध होती है तो जीवन मे क्या होता है । अवश्य ही पढ़े यह अपनो के लिए जादू भरी post है।

            छोटा सा बच्चा है छोटे से स्कूल में पढ़ने जाता है,उसके मन में भी हम चिंता का भूत डाल देते हैं उसे भी आगे होना है वह प्रथम होने पर पुरस्कृत होगा और  द्वितीय होगा तो अपमानित होगा । हम असफलता को अपमान की दृष्टि से देखते हैं, और सफल होने को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, जो सफल होता है उनको शिक्षक आदर करते हैं , घर में आदर मिलता है, हम उसके भीतर प्रतियोगिता पैदा कर रहे हैं और प्रतियोगिता एक तरह की ताप से भरी हुई बुखार है। एक ऐसी ताप से भरी हुई बुखार जो जब तक ताप शरीर में होगा तब तक ताकत के साथ किसी शरीर में रहती है,आप जानते होंगे कि - अगर आप ताप से भरी हुई बुखार में दौड़ लगाएंगे तो आप अवश्य ही तेजी से दौड़ लगा सकते हैं । अगर आप बुखार में है,तो ज्यादा तेज बुरा से बुरा बोल सकते हैं। जो सामान्यतया आप नहीं कर पाएंगे वह सब बुखार में आप कर सकते हैं,क्योंकि ज्वर में एक त्वरा आ जाती है,शरीर मे एक तेज शक्ति का आगमन हो जाता है।

संघर्ष से जीवन को आगे बढ़ाएं, सही दिशा का संघर्ष है तो जीवन ऊंचाइयों को छुएगा हीक्या आप ऊंचाइयों को छूना चाहते हैं?? यदि चाहते हैं। तो एक बार इसे जरूर पढ़िये,जीवन भर यादगार हो जाएगा।

         सारी शिक्षा तो विक्षिप्तता से भरी हुई है,हम सब ने इस शिक्षा को बुखार पर आधारित किया है, हम सब क्या कहतें हैं?? हम कहते हैं कि दूसरे से प्रथम निकलो छोटे-छोटे बच्चों के मन में कहीं ना कहीं किसी न किसी हिस्से में अहंकार को चोट लगती है। दूसरे से आगे होने के लिए वे उत्सुक हो जाते हैं, जब दूसरों से आगे होना चाहते हैं,तो इस पूरे प्रयोग में वे पूरे प्राण लगा देते हैं पूरा श्रम लगा देते हैं,पूरी मेहनत लगा देते हैं, सारी शक्ति लगा देते हैं । उनको दूसरे से आगे जो होना है 

         लेकिन किसलिए, इसलिए कि उन्हें दूसरों से प्रतिद्वंद्विता करना,यह प्रतिस्पर्धा का जो ताप से युक्त ज्वर है धीरे-धीरे उनको पकड़ जाता है जब ये युवा शिक्षा केंद्रों से बाहर निकल कर ,दुनिया के हिस्से बनते जाते हैं,अर्थात पढ़ लिख कर बाहर निकलते हैं । तब यह जो उन्होंने सीखा है उस सीखे हुए को पकड़ कर रखते हैं,और उनका मस्तिष्क का पैमाना इस महत्वाकांक्षा में स्थिर होने लगता है,इस प्रतिस्पर्धा में अब उन्हें आगे दूसरों से बड़ा मकान बनाना है।दूसरों से बड़ी दुकान खोलनीं हैं दूसरों से बड़े पद पर पहुंचना है,अध्यापक से प्रधानाध्यापक होना है,डिप्टी मिनिस्टर है,तो मिनीस्टर होना है,अपर कलेक्टर है तो कलेक्टर होना है। किसी को राष्ट्रपति होना है,तो किसी को मुख्यमंत्री होना है,किसी को प्रधानमंत्री होना है। तो किसी को अध्यक्ष होना है, किसी को और कुछ होना है । एक विक्षिप्त की तरह स्थाई रूप से दौड़ पकड़ती है फिर जिंदगी भर प्रत्येक को कुछ ना कुछ होने का पागलपन सवार बैठा है और इस विक्षिप्तता की दौड़ में उनके जीवन की सारी शांति,सारी शक्ति,सारा सामर्थ्य नष्ट हो जाता है ।

         अन्तोगत्वा वे ना तो कुछ प्राप्त कर पाते हैं, और ना कहीं पहुंच पाते हैं। क्योंकि वे कहीं भी पहुंच जाएं जहां भी पहुंच जाएं हमेशा उन्हें आगे कोई न कोई दिखाई पड़ेंगा ही। और जब तक उनके कोई आगे है तब तक उन्हें शांति नहीं मिल सकती। 

जाने कैसे होगी पर्यावरण की प्रतिष्ठा पढ़ें और इस विषय से कहीं अपना कोई श्रेष्ठ आचरण में आ जाये ।

            और इस दुनिया में अब तक कोई ऐसा मनुष्य नहीं हुआ जिसके आगे कोई मनुष्य न हुआ हो, कभी कोई आगे हो जाता है,कभी कोई आगे हो जाता है । एक गोले के समान यह चलता रहता है और अंत में मनुष्य कहीं नहीं पहुंच पाता ।  और वह जब भी पहुंचता है। तो निश्चित किसी ना किसी को आगे पाता है समझने के बाद भी हम युवाओं को जब वे बच्चे होते हैं, तब प्रथम होने की दौड, बच्चों को सिखाये चले जाते हैं। जब ये बच्चे युवा होते हैं तब उनका मन विकृत होने लगता है।

परिणाम यह हुआ।

           इसीलिए युवा भटक रहे हैं- केवल और केवल महत्वाकांक्षा के कारण जब तक शिक्षा में इस व्यवस्था को बदला नहीं जाएगा अब तक युवा भटकेगा और भटकेगा और लगातार भटकते जाएगा। कोशिश करनी होगी कि हम महत्वाकांक्षा से युवा को बचाएं,नहीं तो जैसे अशांति में हम हैं वैसे ही हम,हमारे नव युवाओं को अशांति में डाल देंगे और अंत में वे भी हमसे ज्यादा दुखी और भी ज्यादा भटके हुए होंगे।

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