उतार-चढाव,जीवन के दो अवसर(utaar-chdav jivn ke do agar)

जीवन के उतार-चढ़ाव उस दिमागी खेल की तरह हैं-

      जिसमें कभी हार होती है तो कभी जीत यदि हम खेल को कुशलता पूर्वक और ध्यान से खेलते हैं तो विजय मिलती है और ध्यान चूकने पर हार मिलती है।

         जिंदगी में परेशानियां व विपत्तियों का आगमन व्यक्ति को हताश कर देता है। ऐसे समय में हमें धैर्य और हौसले से काम लेना चाहिए एक विद्वान ने कहा है -
       "मुश्किलों को जीवन का अनिवार्य हिस्सा मानकर चलें जब कोई मुश्किल आए तब अपना सिर ऊंचा उठाकर उसकी आंख में आंख मिलाकर कहें-'मैं तुमसे ज्यादा ताकतवर हूं, तुम मुझे हरा नहीं सकती।' "
      परिवर्तन प्रकृति का नियम है जिंदगी के उतार-चढ़ाव भी इस परिवर्तन का एक हिस्सा है,उतार-चढ़ाव जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है ।
आगे यह पंक्ति हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए:- 

ज़िंदगी में आयेंगी जब विपरीत परिस्थितियां,
तो तुम तब भी कमज़ोर मत पड़ना,
          अंधेरे में कभी कुछ राह न भी सूझे,
तो भी उम्मीद का दिया जलाये रखना,
          लहर डुबाने लगे जब कश्ती तुम्हारी,
तब भी हौसला अपना बनाये रखना,
          उभर आयेगी स्याह अंधेरों में भी सुनहरी तस्वीर,
कोशिश की कुंजी को चलायमान रखना,
          गिराने लोग बहुत आयेंगे इस जहाँ में,
बस तुम अपनी हिम्मत को बनाये रखना,
          आँसू जब लगे आँखों से झरने,
तब अपनी मुस्कराहट से पोंछ लेना,
          ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव(utar-chdav)को तुम,
एक अवसर समझकर संभाल लेना...!!!
      जीवन के चढ़ाव व जीत को तो हर व्यक्ति सहर्ष स्वीकार करता है लेकिन उतार व हार को हर व्यक्ति सहन नहीं कर पाता । हार व उतार को जिंदगी में आने वाली तकलीफों को जीवन का एक अनिवार्य अंग मानकर जिया जाए तो जीवन बेहद खूबसूरत लगने लगता है।
यदि जीवन के उतार को धैर्य से सहन किया जाए तो  समस्याओं को सुलझाने में भी एक आनंद प्राप्त होता है ।
       जब हम अपनी सफलता का जश्न यह सोचकर मनाते हैं कि हमें हमारे संघर्ष और मेहनत का फल मिला है तो असफलता को भी यह सोचकर स्वीकार करना चाहिए कि हमारी मेहनत में कहीं कुछ कमी थी जो हम सफल नहीं हो पाए , हो सकता है जीवन का उतार या हार हमारे लिए इससे बड़ी सफलता रचने की तैयारी कर रहा हो। 
             जब तक जीवन में संघर्ष नहीं होता तब तक जीवन जीने के अंदाज को, सच्ची मुस्कान को, आनंद को, सफलता को अनुभव भी नहीं कर सकते।
 जिस तरह बिना चोट के पत्थर भी भगवान नहीं होता। ठीक उसी तरह मनुष्य का जीवन भी संघर्ष की तपिश के बिना ना तो निखर सकता है, ना शिखर तक पहुँच सकता है और ना ही मनोवांछित सफलता पा सकता है।
      समय जल की भांति सदैव बहता रहता है। बहाव में जब बाधाएं आती हैं तो एक पल को जल रुक जाता है,लेकिन तभी तेज धार से बाधा हट जाती है, और जल अपने मार्ग पर चल पड़ता है ।
       भगवान श्री कृष्ण  जी के जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव देखने को मिलते हैं ।
      जब वे  काल मे थे, तब उनके नन्हे हाथों ने बड़े से बड़े पराक्रमी को हराया,और क्या गजब का उनके अंदर धैर्य और संतुलन देखने को मिलता है, कितनी भी परिस्थितयां उनके विपरीत हो गईं हों लेकिन कभी भी श्री कृष्ण ने अपने मन की स्थितियों में फर्क नही आने दिया । 
       वे जैसे बाल अवस्था मे मुस्कुराते थे और शत्रूओं का दमन करते थे वैसे ही,युवा अवस्था मे भी सतर्क,और 
सजग बने रहते थे।और सांदीपनी आश्रम में वकायदा अनेक विधि से सन्तुलन में सदैव बने रहने की शिक्षा भी वे लेकर अभ्यास करके पूर्ण कुशल हो गए जो उनके भौतिक जीवन के अंतिम समय तक बनी रही।

       इसी तरह हर व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं जीवन में सफलताएं आखिरकार उसी व्यक्ति को मिलती है जो बड़ी से बड़ी असफलता में भी अपना धैर्य और संतुलन नहीं खोता। यदि बाधाओं और परेशानियों को मन मस्तिष्क से स्वीकार कर लिया जाए तो हमारे लिए इनसे पार पाना सहज हो जाता है ।

इसीलिए तो  जीवन के दो अवसर हैं - उतार और चढ़ाव(utar-chdav )।

श्रीमति माधुरी बाजपेयी
मण्डला
मध्यप्रदेश 
भारत
Gmail :-bhayeebheen@gmail.com




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ