मेरे जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा रक्षाबन्धन का उत्सव है क्योंकि
अरे ! समझो तो जरा.........
राखी बांधने वालो और
राखी बंधवाने वालो ,
भाई की कुशल-क्षेम की
प्रार्थना का प्रतीक ,
होती है,"राखी"।
बहन की सुरक्षा का दायित्व,
निभाती है,"राखी"।
डाकिये के हाथ मे रखे लिफाफे में ,
भाइयों को बाहर से ही नजर आने, लगती है,"राखी"।
सरहदों में साहस का जोश,
दिलाती है,"राखी"।
अरे वाह !! इस राखी का क्या कहना जी,
दूर रहे भाई-बहन को
मिलने की अजब सी तड़फ ,
जगाती है,"राखी"।
इसलिए तो,
रिमझिम बरसते मेघों से,
उफनाती नदियों से,
सम्पूर्ण धरा धाम से निवेदन है।
जब बहन जाए ,भाई के पास,
सभी साथ देना,
जिससे बहन की हो जाये"पूरी आश",
क्योंकि बर्ष भर में
एक बार,आती है,"राखी"।।
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रक्षाबंधन के पर्व पर सर्वार्थ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान का विशेष शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इस बार रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास में पड़ रहा है वो भी सावन के अंतिम सोमवार को, जो भगवान शिव का दिन है।
रक्षाबंधन पर्व पर आज में मेरे जीवन के कुछ ऐंसे पलों को शेयर कर रही हूं - जो मेरे जीवन के उत्थान में हमेशा से,हर मोड़ पर, मेरी सहायता के लिए तब से लेकर आज तक सुख दायी बने हुए हैं ।
एक समय की बात है 'विवाह उपरांत में ससुराल-से-मायके अपने भैया जी के पास रक्षाबन्धन के इस महा पर्व में जा रही थी', तभी जाते-जाते बीच रास्ते में नदी का उफान तेज था,सारे वाहनों का जाम लगा था।
हमारी बस-गाड़ी काफी पीछे थी, 2 घण्टे जब मेरे प्रतीक्षा के हो गए।
तब मेरे मन मे लगा कि अब शाम होने को आई ,न भैया जी से सम्पर्क सध रहा है न बात कर सकती हूँ क्योंकि सम्पर्क सूत्र उस समय आज जैसे नही थे।
'तभी में गाड़ी से अचानक उतरी और धीरे-धीरे नदी की तरफ बढ़ी, पास पहुंची, नदी को नमन किया फिर अपने थैले में रखी रुमाल और मेरे भाईया जी की राखी को मैने निकाल नदी में स्पर्श कर नदी से प्रार्थना करने लगी ।'
"हे माँ! यदि ऐंसा ही (बाढ़)उफान रहा आपका तो में अपने भैया जी को रक्षासूत्र (राखी)कैसे बाँधूँगी,मेरा निवेदन है कि आप अपना उफान कम कीजिये , तभी तो में अपने भाईया जी के पास जा पाऊंगी,और उन्हें रखी बांधूगी।"
ठीक आधे घण्टे के बाद उस प्रार्थना को मां ने सुना,चारो तरफ आश्चर्य का माहुल हो गया सभी कहने लगे -"कैसे इतनी जल्दी बहाव (उफान) कम हुआ,और पानी का उफान समाप्त हो गया ।"
मेरी यात्रा सुख मय पूरी हुई। और उस समय मेने पूरे भाव से ,अपने भाईया जी को रक्षा सूत्र(राखी) को बंधा।
यह मेरे जीवन का अत्यंत ही सुखमय पल था जो इतनी कठिनाइयों के बाद मेरे भैया जी के पास मुझे ले आया।
अब में मेरे भैया जी के बारे में बताना चाहती हूं,मेरे जीवन के दिशा निर्देशक रहे हैं, हर निरुत्साह के पलों को उत्साह में बदलने वाले हैं,"मेरे बड़े भैया जी योग सम्राट आचार्य महेंद्र मिश्र जी हैं।"
मेरे कक्षा प्रथम के अध्यन से लेकर मेरे जीवन के स्कूल के समय की मेरी काव्य की रचना की तथा नाट्य की प्रस्तूती , का ढंग सिखाना हो,
चाहे मेरे विद्दालय के समय मेरे हॉकी की तकनीकी ज्ञान को सिखाकर मुझे राष्ट्रीय स्तर पर खेलने हेतु उत्साहवर्धन करना हो।
व्यक्तियों के पहचानने की कला
को समझना हो,
चाहे अत्यंत बुरे दिनों में मन को नियंत्रित करना हो,जीवन के आर्थिक आभाव वाले क्षणों को जीना हो और उनसे मुक्ति के उपाय को खोजना हो।
हर समय "साहस बनकर मेरे साथ मेरे भैया जी खड़े रहे हैं।"
इतना ही नही , मैने,उन्ही की आत्मिक इच्छा शक्ति के प्रभाव में M.A तक की शिक्षा पूर्ण कर पाई।
मेरे जीवन की हर कठिनाइयों,हर दुख के क्षणों को मेरे भैया जी के आशीष की शक्ति ने हर लिया।
" मेरे बडे भाई जी हमेशा से मुझे कहते हैं,हर समय विपरीत परिस्थिति नही होगी,यदि आज साहस पूर्ण जिया तो जीत तुम्हारी ही होगी , इसमें कोई संदेह नहीं।"
" करो खुद का विकास , तुम योग्य हो बस तुम्हारी प्रस्तूति तुमको खास बनाना है ,भय किस बात का में तो तुम्हारे साथ हूँ,और सदा हूँ।।"
ये वाक्यांश आज भी मेरे ह्रदय में सदा के लिए समाहित हो चुके हैं ।।
मेरे बडे भैया जी से आज भी मेरी प्रार्थना है,कि अपना आशीर्वाद मेरे ऊपर सदैव रखियेगा ।।
श्री मति माधुरी बाजपेयी
मण्डला,
मध्यप्रदेश,
भारत
Gmail:-bhayeebheen@gmail. com
1 टिप्पणियाँ
Bahut achcha
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