कुछ प्रश्न के उत्तरों के साथ हम जानते हैं और उन उत्तरों को समझते हैं
1) जब प्रत्येक जीव ईश्वर का अंश है तो फिर क्या कारण है कि जीवन मे मानसिक सन्ताप,शोक,चिंता और व्यग्रता घर कर जाती है ?
2) क्यों कोई जीव ईश्वर का अंश होते हुए भी ईश्वर से काफी दूर होता है?
3) क्यों वह कठिनाइयों में पड़ जाता है, चिंता व शोक में डूब जाता है?
इन सवालों का उत्तर इस उदाहरण से समझा जा सकता कि जैसे :-
कोई मकड़ी अपना जाल बनाना प्रारम्भ करती है,बनाते-बनाते जब वह जाल बहुत बड़ा हो जाता है,तो वही मकड़ी स्वयं अपने बनाये हुए जाल में घिर जाती है। ठीक भिन्न भिन्न प्रकार से वह उस जाल से निकलने का प्रयास करती है और अन्तोगत्वा उसके सारे प्रयास निरर्थक हो जाते हैं।
मनुष्य के जीवन मे भी ऐंसी ही स्थितियां होती है।जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह ईश्वर के काफी निकट होता है,क्योंकि वह अपने चारों तरफ किसी भी प्रकार का जाल बनाने में सक्षम नही है। लेकिन वह ज्यों-ज्यों बड़ा होते जाता है,त्यों-त्यों वह दुनिया से परिचित होने लगता है और स्वयं अपनी दुनिया बसाता है उजाड़ता है।हम देखते हैं कि वैसे लोगों का जीवन बहुत असहज और उपेक्षित होता है जो प्रकृति से दूरी बनाकर रहते हैं।
प्रकृति तो जीवनदायिनी मां है। और हम उसके बच्चे हैं। किसी मां को उसका बच्चा कितना प्यारा होता है,और किसी बच्चे के लिए 'मां' शब्द क्या मायने रखता है, उन दोनों से बेहतर कोई और नही जान सकता , यदि हम भी प्रकृति रूपी मां से जुड़कर रहें, तो हम भी सहज और निर्मल बन सकते हैं।
लेकिन प्रकृति से जुड़ने के लिए हमे भी बच्चों जैसा अबोध होना पड़ता है। अबोधता से आशय :- अज्ञानता से नही ।
अबोधता से आशय मन की निर्मलता से है,मन की निर्मलता के लिए आपको,
1) रोग(शरीर और मन की अस्थिरता का परिणाम),
2) द्वेष(मन, वाणी,कर्म से अपनो को नीचा गिराने का भाव के निष्कासन का भिन्न भिन्न तरीके से प्रयास करना ),
3) नकारात्मक विचारों(वे विचार जो सहज या असहज आ जाएं और छोटे- छोटे रूप से हमारे मन का नियंत्रण कर हमारे अस्तित्व को नाश करने के लिए प्रायोजित हों)
उपरोक्त तीनों अवगुणों की ऊर्जा को स्वयं में सकारात्मक ऊर्जा के उपयोग के रूप में स्थानन्तरित करना जरूरी है।
अर्थात :- उपरोक्त दुर्गुणों से पूरित विचारों से जन्मी ऊर्जा को आपको स्वयं ही किसी विधि के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा के रूप में रूपांतरित करना होगा , जिससे आपके मन की सहजता और नैसर्गिकता समाप्त न हो जाये।
नही तो ये दुर्गुणों से निर्मित ऊर्जाएं जीवन की सहजता और नैसर्गिकता को समाप्त कर देंगी ।
अब तो विज्ञान भी इस तथ्य को प्रमाणित कर कहने लगा है , कि जो लोग नकारात्मक विचारों से ग्रस्त रहते हैं,वे ही सबसे ज्यादा तनाव ग्रस्त होते हैं। वही सकारात्मक विचारों का आपके मन पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक विचार आपको किसी भी क्षेत्र में कामयाबी की ओर ले जाते हैं ।
लेखिका
श्रीमति माधुरी बाजपेयी
मण्डला,
मध्यप्रदेश,
भारत
Gmail:- bhayeebheen@gmail.com
2 टिप्पणियाँ
सुसंगत आलेख ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका और आपके द्वारा पढ़े गए मूल्यवान समय का
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