विसर्जन एक अद्वतीय प्रक्रिया | Immersion is a unique process

विसर्जन का रहस्य

इस सँसार में जो चीज बनती है वह अनिवार्यतः मिटती भी है। | Use the method, don't be too tied to the method | Dance in birth and dance in death

आइए जीवन के इस अनमोल विषय "विसर्जन" को जानते हैं 

विसर्जन एक अद्वतीय प्रक्रिया | Immersion is a unique process

माँ का विसर्जन

विसर्जन क्या है??

विसर्जन क्यों करते हैं??

विसर्जन के क्या सांकेतिक अर्थ हैं??

विसर्जन का सार क्या है???

सँस्कृत भाषा की दृष्टि से

             विसर्जन शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है कि 'पानी में विलीन होना', ये प्रिय मूर्ति स्वरूप  देवी | देवता के लिए अंतिम विशेष सम्मानजनक  सूचक प्रक्रिया का शब्द है इसलिए समूह में, घर में पूजा के लिए प्रयोग की गई मूर्तियों को विसर्जित करके उन्हें अंतिम सम्मान दिया जाता है।

विधि का तो एक दिन विसर्जन कर ही देना है।

            हम सभी जानते हैं कि सम्पूर्ण विश्व मे, हिंदू सम्प्रदाय इस संबंध में बड़े कुशल हैं। देवा/देवी जी की प्रतिमा बना ली और पूजा की और हिन्दू स्वयँ जा कर जल में विसर्जित कर देते हैं। दुनिया में हिदू सम्प्रदाय के अलावा इतना साहस किसी मे नहीं है। क्योंकि मंदिर में मुर्ति  हिंदुओं  के सम्प्रदाय ने रख ली तो फिर सिराने की बात ही नहीं उठती। फिर वे कहते हैं अब इसकी पूजा जारी रहेगी। हिंदुओं के इस सम्प्रदाय की हिम्मत देखिए तो सही,पहले, मिट्टी के देवा/देवी बना लिए। मिट्टी के बना कर उन्होंने भगवान का आरोपण कर लिया। सम्पूर्ण उत्साह से नाच—कूद, गीत, प्रार्थना—पूजा सब हो गई। फिर अब वह कहते हैं, अब चलों देवा/देवी, अब हमें दूसरे काम भी करने हैं । अब आप जल में विश्राम करो, फिर अगले साल उठाएंगे।

इस सँसार में जो चीज बनती है वह अनिवार्यतः मिटती भी है। | Use the method, don't be too tied to the method | Dance in birth and dance in death

विसर्जन का सांकेतिक व्याख्या 

          क्या आप जानते हैं कि विसर्जन करने के साहस का अर्थ क्या होता है? विसर्जन का बड़ा सांकेतिक अर्थ है। अनुष्ठान का उपयोग कर लो और जल में विसर्जित कर दो । विधि का उपयोग कर लो, फिर विधि से बंधे मत रह जाओ। जहां हर चीज आती है, जाती है, वहा भगवान को भी बना लो, मिटा दो। जो भगवान आपके साथ करता है वही आप भगवान के साथ करो—यही सज्जन का धर्म है। वह आपको बनाता, मिटाता है ।  उसकी कला आप भी सीखो। आप उसे बना लो, उसे विसर्जित कर दो।

भाव की गहराई से यह है कि जन्म हो नाच में और मृत्यु हो नाच में

             एक खुशी की बात आप जानते हैं कि हिंदू सम्प्रदाय में तो कितने गहरे भाव से लोग,मूर्ति का निर्माण,पूजा, पाठ  व विसर्जन करते हैं,परन्तु यह देख दूसरे सम्प्रदाय के लोगों को बड़ी हैरानी होती है। क्योंकि वे कितने भाव से बनाते, कैसा रंगते, मूर्ति को कितना सुंदर बनाते, कितना खर्च करते। महीनों मेहनत करते हैं। जब मूर्ति बन जाती, तो कितने भाव से पूजा करते, फूल—अर्चन, भजन, कीर्तन। मगर अदभुत लोग हैं। फिर आ गया देवा/देवी का विसर्जन का दिन। फिर वे चले सम्पूर्ण उत्साह के साथ बैंड—बाजा बजाते, ध्यान रखें:-  विसर्जन में भी भी नाचते जाते हैं। इससे एक बात साफ हो गई है कि जन्म भी एक प्रकार का नाच है,मृत्यु भी एक प्रकार का नाच होना ही चाहिए। चले मूर्ति स्वरूप परमात्मा को सिरा देने। जन्म कर लिया था, मृत्यु का वक्त आ गया।

इस सँसार में जो चीज बनती है वह अनिवार्यतः मिटती भी है। | Use the method, don't be too tied to the method | Dance in birth and dance in death

जरूर पढ़िये

पढ़िये,समझिए,और सम्पूर्ण मनोयोग से मनाए गणेश उत्सव 

क्योंकि गणेश उत्सव ,विवेक का उद्भव है।

इस सँसार का एक अद्वतीय सत्य यह है कि

         इस सँसार में जो भी चीज बनती है वह निश्चित्त ही मिटती भी है। कितनी किमती बात यह है कि इस सँसार में हर चीज का उपयोग कर लेना है और किसी चीज से बंधे नहीं रह जाना है—और तो और अब परमात्मा से भी बंधे नहीं रह जाना है। 

एक विशेष प्रयोजन था मनिषियों का

         हिंदुओं के सम्प्रदाय को यह ठीक—ठीक बोध है कि वे क्या कर रहे हैं। लेकिन जिन्होंने शुरू की होगी,प्रथम बार यह यात्रा उन मनीषियों और चिन्तकों को जरूर यह बोध रहा होगा। निश्चित ही वर्तमान के परिवेश में लोग भूल गये होंगे। अब उन्हें कुछ भी पता न होगा,कि वे क्या कर रहे हैं। अब तो अधिकतर लोग यह कार्य मूर्च्छा में कर रहे होंगे। पुरानी परंपरा है कि विसर्जन करना है,तो विसर्जन कर लिया। 

इसे भी पढ़िये

तप की गहराई और जप में समर्पण की धारा जब एक हो जाती है तब एक ही तत्व में एकाग्र होकर व्यक्ति शिवत्व को प्राप्त होता है।जाने कैसे यह होता होगा तीजा  व्रत के सूक्ष्म अवलोकन से देखें,और समझें ।

विसर्जन का सार

          लेकिन अब तो विसर्जन का सार तो समझ ही लीजिए। वह सार इतना ही है कि विधि का उपयोग कर लेना है । और फिर इसके बाद किसी विधि से बंधे भी नहीं रह जाना है। अब दैवीय अनुष्ठान पूरा हो गया, विसर्जन कर दिया।

जरूर पढ़िये एक जबरदस्त रोचक विषय जब प्रार्थना शुद्ध होती है तो जीवन मे क्या होता है । 

लक्ष्य तक पहुंचने हेतु कैसे छोडूं मार्ग को??

            वही एक आत्मा के धरातल में पहुंचा व्यक्तित्व कहता है कि : नाचो, कूदो,ध्यान करो,पूजा, प्रार्थना—ये मार्ग जरूर हैं किसी राह में जाने के,लेकिन आप इसमें उलझे मत रह जाना। यह पथ है, मार्ग है, लक्ष्य नहीं। जब लक्ष्य आ जाए तो आप यह मत कहना कि 'मैं इतना पुराना यात्री,अब मार्ग को कैसे छोड़ दूं? छोड़ो भी अब ! इतने दिन जन्मों—जन्मों तक मार्ग पर चला, अब आज लक्ष्य आ गया, तो मार्ग को धोखा दे दूं? दगाबाज, हो जाऊं। जिस मार्ग से इतना साथ रहा और जिस मार्ग ने यहां तक पहुंचा दिया, उसको छोड़ दूं?लक्ष्य को छोड़ सकता हूं, मार्ग नहीं छोड़ सकता।

            'तब आप समझोगे कि कैसी मूढ़ता की स्थिति हो जाएगी। इसी लक्ष्य को पाने के लिए मार्ग पर चले थे,और अब लक्ष्य से ज्यादा मार्ग सब कुछ हो गया।'

नोट :- अगर आपको यह "विसर्जन एक अद्वतीय प्रक्रिया" लेख पसंद आया है तो इसे शेयर करना ना भूलें और मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे Whatsup group में join हो और मेंरे Facebook page को like  जरूर करें।आप हमसे Free Email Subscribe के द्वारा भी जुड़ सकते हैं। अब आप  instagram में भी आप follow कर सकते हैं ।


लेख पढ़ने के बाद अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें।नीचे कमेंट जरूर कीजिये, आपका विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ